राकेश दुबे@प्रतिदिन। आज भाजपा के शीर्ष जागृत पुरुष लालकृष्ण आडवाणी कह ही गये की पार्टी में जो कुछ चल रहा है, उनके विचार से ठीक नहीं है| जो भी भाजपा या उसके पूर्व जनसंघ की कार्य शैली को जानते या समझते हैं, यह बात नहीं मान सकते कि भाजपा बगैर विचार के चल सकती है|
हाँ अंतर जरुर आया है पहले निर्णय समूहिक होते है अब समूह सिमट कर गुट में तब्दील हो गये है और इस गुटागुटी का नतीजा ही आडवाणी के दुःख का कारण है| अटल जी तो पहले से ही गुट की चिंता नहीं करते थे और अब भाजपा के सूत्र उन्हें परम हंस प्रवृति का पिछले की सालों से मान बैठे हैं|
आडवाणी जी आखिर ऐसे क्यों बोल रहे हैं| बीते दिन की गतिविधि पर नजर डाले तो सामने दो बयान और तीन प्रतिक्रिया है| बिहार भाजपा के नेता सुशील मोदी ने कल बिहार में घोषणा कर दी कि अगला प्रधानमंत्री भाजपा का होगा और वे नरेंद्र मोदी होंगे| दूसरा बयान दिल्ली के विजय गोयल का है उन्होंने आडवाणी को प्रधान मंत्री बनाने की बात कही और राजनाथ सिंह के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने संशोधन भेजा|
इसके बाद तो इधर उधर दोनों ओर से बयानों की भीड़ लग गई| सुषमा स्वराज , शिवराज सिंह ,रमन सिंह सबके सब आडवाणी के पक्ष में खड़े दिखाई दिए| अहमदाबाद में भाजपा के समारोह में आडवाणी जी अनुपस्थिति ने भी सोच को नये आयाम दिए| भाजपा के बनने से अब तक ऐसा दृश्य नहीं देखा कहने वाले आडवाणी जी को यह बताना चाहिए वर्षों पूर्व हुई विरार बैठक में इस अवहेलना के बीज है| अगर उस बैठक के निर्णय लागू होते तो कुछ और स्थिति होती| अब तो वही होगा जो एक गुट चाहेगा, आडवाणी जी तीन उँगलियाँ आपकी ओर है| अब आप ही बता सकते है यह विचार कहाँ आये|