भारतीय मरीजों की सोचो सरकार.......!

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में विभिन्न बीमारियों जैसे मधुमेह, ह्रदय रोग , कैंसर . तपेदिक के बीमारों की संख्या बढती जा रही है| विभिन्न स्वास्थ्य संगठन अपने आंकड़े जो भी देते हो, विश्व स्वास्थ्य सन्गठन के आंकड़े हकीकत के एक दम नजदीक होते हैं|


विदेशी कम्पनियों के लिए बाज़ार खोलते समय जो भी हुआ उसे छोडिये | अब हर दिन कोई न कोई अदालत जो कह रही है, उस पर गौर कीजिये और भारतीय कम्पनियों की की दवा सहजता और सरलता से उपलब्ध कराने की सोचिये |

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय का  जो निर्णय आया है| वह विदेशी कम्पनियों की नियत और रणनीति को उजागर करने और यह सोचने का पर्याप्त आधार है कि भारतीय मरीज कितनी बुरी  स्थिति से गुजर रहे हैं| अमेरिकी कम्पनी मर्क सार्प एंड डॉम भारत के मरीजों को 30% ऊँची कीमत पर दवाये तो बेच ही रही है और न्यायालय से सस्ती दवा बनाने वाली भारतीय कम्पनी के खिलाफ दवा बेचने पर पाबंदी भी चाहती थी |यह दवा मधुमेह के रोगियों के इलाज में उपयोग  होती  है |  यह तो जबरा मारे और रोने न दे वाली बात हो गई |

दिल्ली उच्च न्यायालय ने विदेशी कम्पनी की दवाओं “जनुविया” और ‘जनुमेट’ के मुकाबले में भारतीय कम्पनी की दवाओं के विरुद्ध कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया है | इन दो मामलों से साफ है कि विदेश व्यापर के दरवाजे खोलते समय सरकार ने कितनी बड़ी गलती की है | सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए और कम से कम ज्यादा तादाद में उपयोग आ रही दवाएं भारत में बने  और उनकी गुणवत्ता ठीक रहे | विदेशी कम्पनियों को तो उपभोक्ता ही बाजार से बाहर कर  देंगे |


  • लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं। 
  • संपर्क  9425022703 
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