राकेश दुबे@प्रतिदिन। संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट का प्रारूप लीक हो गया है| जैसा अंदेशा था वैसी ही खबरें सामने आईं है| प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री पी चिदम्बरम और अन्य को क्लीन चिट देकर सारे स्पेक्ट्रम घोटाला का ठीकरा ए राजा के सिर मढ़ दिया गया है|
भारतीय जनता पार्टी अपनी आदत के अनुसार विषय से भटक कर रिपोर्ट का मसौदा कैसे लीक हुआ तक ही बात कह रही है| इस मामले में भाजपा की ऐसी भूमिका कोई नई नहीं है, अभी मजबूरी भी है| ज्यादा होहल्ला नितिन गडकरी और गोपीनाथ मुंडे को कष्ट दे सकता है, क्योंकि महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने अपने आरोपों के प्रमाण जुटा लिए हैं|
नूरांकुश्ती की तर्ज़ पर चल रही दिल्ली की राजनीति संवैधानिक संस्थाओं की साख पर भी प्रश्नचिन्ह लगाने ने नहीं चूक रही है| संयुक्त संसदीय समिति ने लेखा महापरिक्षक के अनुमान को गलत तो ठहरा ही दिया बल्कि इस मामलें में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर टिप्पणी की बात कही जा रही है| संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष श्री चाको रिपोर्ट के फाइनल होने की बात कह रहे हैं| नियमानुसार यह रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत होना चाहिए|
संसद में कैसे कैसे सांसद आते हैं| यह किसी से छिपा नहीं है| विषयों की समझ और विशेषज्ञता से उनका सम्बन्ध आम आदमी से भी कम होता है और तकनीकी विषय जैसे जैसे यह विषय इतना पेचीदा है की उस पर बिना विशेषज्ञों की राय किसी भी प्रकार की रिपोर्ट के मायने क्या होते हैं| एक स्वभाविक प्रश्न है| इसके जवाब में एक ही उत्तर है हम ही परीक्षक और हम ही परीक्षार्थी| नतीजा साफ है, यह तो होना ही था| इसे बदलने के लिए बहुत कुछ बदलना होगा|