लावारिस शहर@उपदेश अवस्थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि आपने अपने सार्वजनिक जीवन को बहुत ठीक से निभाया और निभा रहे हैं। संगठन की संरचना में आपका कोई विकल्प नहीं है और सिद्धांतों की राजनीति भी आपके आसपास ही दिखती है, लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि आपके पुत्रों में वो संस्कार क्यों नहीं दिखते जो आपके पिता ने आपमें डाले।
प्रभात जी, दुनिया का हर पुत्र अपने पिता के लिए अभिमान का विषय होना चाहिए। अपने भारत के संस्कार तो कुछ ऐसे ही हैं। आप खुद अपने पिता के लिए अभिमान का केन्द्र हैं। धन्य है वो मॉ जिसने आपको जन्म दिया। राजनीति में आप हमेशा से ही मोह माया से दूर रहे और एक निश्कलंक सार्वजनिक जीवन का उदाहरण पेश किया परंतु यह पुत्रमोह आपमें कहां से आ गया समझ नहीं आ रहा।
जहां तक मुझे याद है, प्रदेश अध्यक्ष के बतौर आपकी दूसरी पारी को रोकने के लिए भी आपके पुत्रमोह को ही हथियार बनाया गया। हालात यह बने कि आपकी राजनैतिक हत्या का षडयंत्र तक इस मोह के चलते रचा गया और काफी हद तक सफल हुआ। यदि सुरेश सोनी जी का संरक्षण नहीं होता तो शायद भोपाल और ग्वालियर में आपका वो धमाकेदार स्वागत का अवसर ही नहीं प्राप्त हो पाता जो आज आपको मिल गया।
लोग बताते हैं कि आपके चिरंजीव बड़े ही बेलगाम हैं। जब आप प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे तब भी उन्होंने आपकी राजनीति को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आपके प्रदेश अध्यक्ष रहते 2010 में रायपुर में हुआ एक कांड तो आज भी लोग बड़े मजे ले लेकर सुनाया करते हैं। एक ऐसी जगह जहां लोग अपनी पहचान छिपाकर जाया करते हैं, लेनदेन को लेकर अपने चिरंजीव ने अपनी पूरी पहचान उजागर कर डाली।
इसके अलावा भी कई सारे किस्से कहानियां हैं जो भाजपा में आपके विरोधी आज खूब प्रचारित कर रहे हैं। कितना सही है और कितना गलत यह तो बाद की बात है। मामले दर्ज हुए या नहीं, समीक्षा का विषय यह भी नहीं है परंतु जब धुआं उठ रहा है तो माना जाता है कि आग भी लगी होगी।
2010 में ही ग्वालियर के एक ढाबे पर हुआ हंगामा भी लोग भुला नहीं पाए हैं और अब आपके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनते ही एक अदने से सुरक्षा गार्ड को यह धमकी देना कि 'मैं प्रभात झा का बेटा हूं, जो चाहूंगा वो होगा' अपने आप में बड़ा अजीब सा लगता है। एक पिता जो लोकतंत्र का हामी हो, उसका पुत्र इतना बेलगाम कैसे हो गया।