आखों का डॉक्टर करता है 5500 नगरनिगम कर्मचारियों के दिल का इलाज

भोपाल। नगर निगम में कार्यरत नियमित और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को स्वस्थ्य रखने भार सिर्फ एक डॉक्टर पर है, जोकि नेत्र विशेषज्ञ है। हालांकि, सालाना 22 लाख रुपए के बजट वाली म्युनिसिपल डिस्पेंसरी के आधा दर्जन कमरों के लिए प्रति कमरा एक यानि कुल 6 सफाईकर्मी जरूर सालों से तैनात हैं।

नगर निगम डिस्पेंसरी में बीते साढे चार साल से सिर्फ एक डॉक्टर ही निगम के साढे पांच हजार से ज्यादा कर्मचारियों को रोगमुक्त करके स्वस्थ्य रखने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। वैसे नगर निगम में एक महिला डॉक्टर सहित कम से कम पांच डॉक्टर होने चाहिए। अभी पदस्थ डॉ. प्रशांत बाजपेयी नेत्र विशेषज्ञ हैं।

गौरतलब होगा कि, वर्ष 2008 में डॉ. हबीबा सुल्तान के रिटायरमेंट के बाद से निगम डिस्पेंसरी में एक भी नया डॉक्टर नहीं आया। ऐसे में मेडिकल सर्टिफिकेट से लेकर तमाम स्वास्थ्य संबंधी जिम्मेदारियों को डॉ. बाजपेयी ही निभाते आ रहे हैं। निगम डिस्पेंसरी में दर्जनभर कर्मचारी हैं, लेकिन स्वास्थ्य कर्मचारी आधा दर्जन हैं। हालांकि, इसके बाद भी निगम डिस्पेंसरी का बाथरूम बीते दो दशकों से बंद पड़ा है। आसपास फैली गंदगी के कारण बदबू के झोंके आते रहते हैं। गौरतलब होगा कि सिर्फ डॉ. बाजपेयी का कमरा बीते साल करीब 3 लाख रुपए खर्च करके लग्जरी बना दिया गया है, लेकिन बांकी डिस्पेंसरी बदहाल है।

नहीं हो पा रहा नियमित परीक्षण

नगर निगम में करीब साढे पांच हजार कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें नियमित और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी शामिलहैं। इनमें करीब 28 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएं हैं। इन सभी कर्मचारियों का नियमित हेल्थ चेकअप और नि:शुल्क दवाएं देने का काम निगम डिस्पेंसरी से होता है। खासकर, सफाई कामगारों का चेकअप हर महीने होना जरूरी है, क्योंकि सफाई के दौरान नालियों और अन्य अस्वस्थ्य कर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। इसके बाद भी कर्मचारियों का नियमित चेकअप नहीं हो पा रहा है।

मेडिकल रीएंबर्समेंट सबसे ज्यादा

डिस्पेंसरी का सालाना बजट 22 लाख रुपए है, जिसका करीब 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ मेडिकल रीएंबर्समेंट में चला जाता है। गंभीर बीमारी होने पर डिस्पेंसरी से रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में कर्मचारियों द्वारा पेश किए जाने वाले भारी भरकम चिकित्सा प्रतिपूर्ति के देयकों को जिला मेडिकल बोर्ड की मुहर लगने के बाद भुगतान करना ही पड़ता है। नतीजे में आधा साल बीतते-बीतते कर्मचारियों को कई महत्वपूर्ण जीवन रक्षक दवाओं को अपनी जेब से ही खरीदना पड़ता है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!