व्हीआईपी रोड की रेलिंग बचाने भोपाल की बेगम पहुंची हाईकोर्ट

जबलपुर। राजधानी भोपाल की वीआईपी रोड से रेलिंग हटाकर आने-जाने का रास्ता दिए जाने की मांग को लेकर शर्मिला टैगोर सहित अन्य ने हाईकोर्ट में रिट अपील दायर की है। कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन, सचिव आवास एवं पर्यावरण, कार्यपालक निदेशक झील संरक्षण प्राधिकरण और कलेक्टर भोपाल को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है।

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश शरद अरविन्द बोबडे़ व जस्टिस राजेन्द्र मेनन की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान अपीलकर्ता भोपाल के नवाब मरहूम मंसूर अली खां पटौदी की बेगम सिने तारिका शर्मिला टैगोर, सैफ अली खान, सबा अली खान व सोहा अली खान का पक्ष अधिवक्ता राजेश पांचोली ने रखा। उन्होंने दलील दी कि वीआईपी रोड बनाने के बाद सरकार ने दोनों ओर लोहे की रेलिंग लगा दी हैं। इस वजह से पटौदी परिवार के बंगले से बाहर आने-जाने का रास्ता बंद हो गया है।

लिहाजा, 20 फीट का मार्ग खोला जाना अपेक्षित है। पूर्व में याचिका दायर की गई थी जिस पर राहतकारी निर्देश जारी किया गया था। इसके बावजूद राहत न मिलने पर नए सिरे से अपील दायर करनी पड़ी। बड़ा ताल मामले में चार हफ्ते का समय-जस्टिस संजय यादव की सिंगल बेंच ने भोपाल के बड़े ताल में नवाब खानदान के स्वामित्व वाले हिस्से में दखलंदाजी के रवैये को कठघरे में रखे जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन, सचिव राजस्व, नगरीय प्रशासन व नगर एवं ग्राम निवेश, नगर निगम और कलेक्टर भोपाल को पूर्व में जारी नोटिस का जवाब पेश करने चार सप्ताह की मोहलत दे दी है।

अधिवक्ता राजेश पांचोली ने अवगत कराया कि 2500 एकड़ दायरे वाले भोपाल के बडे़ ताल का 800 एकड़ एरिया नवाब खानदान के हक का है। इस पर मछली पालन व सिंघाडे की खेती की जाती थी। लेकिन एक साल से अधिकारी दखलंदाजी पर उतारू हैं। वे तालाब का उपयोग करने के दौरान दल-बल के साथ मौके पर पहुंचकर काम बंद करा देते हैं और धमकाते हैं कि दोबारा नजर आए तो सामान जब्त कर लेंगे। एक-दो बार सामान जब्त भी किया जा चुका है।

जहां एक ओर शासन-प्रशासन द्वारा भोपाल के बडे़ ताल में विभिन्न तरीकों से व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करके करोड़ों रुपए कमा रहे हैं वहीं दूसरी ओर असली मालिकों को अपने हिस्से में परम्परागत मत्स्य व सिंघाड़ों की खेती करने से रोक रहे हैं। चूंकि यह रवैया संवैधानिक अधिकारों के हनन की श्रेणी में आता है अत: न्यायहित में हाईकोर्ट की शरण ली गई है। इसके जरिए मुख्य राहत यही चाही गई है कि सरकार को निजी मिल्कियत पर अडं़गा लगाने से रोका जाए। नियमानुसार नवाब खानदान को उसके हिस्से वाले तालाब का अपनी मर्जी से उपयोग करने का पूरा हक है।

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