आंचलिक पत्रकारों को मिलेगा 11 हजार रुपए का पुरस्कार

भोपाल। तकनीकी क्रांति और वैश्विक अर्थव्यवस्था ने आंचलिक पत्रकारिता का स्वरूप बदल दिया है। दूरदराज के गांवों में काम करने वाले आंचलिक पत्रकारों को इस बदलते माहौल को समझना होगा और अपनी शैली में थोड़ा सा बदलाव लाना होगा तभी वे खुद को इस परिवेश में सफल बना पाएंगे।

स्वर्गीय पत्रकार भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यानमाला में आंचलिक पत्रकारिता की चुनौतियां विषय पर मूल्य आधारित पत्रकारिता के आग्रह के उत्तर में भास्कर पत्र समूह के मराठी अखबार दिव्य मराठी के स्टेट एडीटर अभिलाष खांडेकर ने ये विचार व्यक्त किए। ये व्याख्यानमाला माधव राव सप्रे संग्रहालय सभागार में आयोजित की गई थी। उन्होंने कहा कि यदि हम भारतीय मूल्यों को बचाए रखना चाहते हैं तो हमें दुनिया के बदलते परिवेश से शिक्षा लेकर खुद को बदलना होगा ।

इस व्याख्यानमाला में पूर्व मंत्री महेश जोशी, मूल्यानुगत मीडिया पत्रिका के संपादक कमल दीक्षित, राष्ट्रीय एकता परिषद के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा, पत्रकारिता विवि की पूर्व प्राध्यापिका सुश्री दविंदर कौर उप्पल, लोकमत समाचार के ब्यूरो प्रमुख शिव अनुराग पटैरिया, माखनलाल विवि के पत्रकारिता विभाग के प्राध्यापक पुष्पेन्द्र पाल सिंह, नव दुनिया के संयुक्त संपादक राजेश सिरोठिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक और स्व. देवलिया जी की स्मृति में प्रकाशित स्मारिका के संपादक अशोक मनवानी ने कार्यक्रम का संचालन किया। आभार प्रदर्शन राजेश सिरोठिया ने किया।समिति की ओर से सभी वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।

भास्कर पत्र समूह के मराठी अखबार दिव्य मराठी के स्टेट एडीटर अभिलाष खांडेकर ने कहा कि जो लोग पत्रकारिता को बाहर से देखते हैं उनकी राय में मूल्य आधारित पत्रकारिता का आशय स्वाधीनता संग्राम के दौरान होने वाली पत्रकारिता से ही होता है। मीडिया संस्थानों में आज भी समाज से ही निकले लोग मौजूद हैं और वे भारतीय समाज को कहीं से भी असफल होते देखना नहीं चाहते। समस्या ये है कि वैश्विक परिवेश बदल जाने से समाज में आमूल चूल परिवर्तन हो गए हैं। 

पत्रकारिता को इन हालात पर गौर करना होगा। आज हम यदि भारतीय मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता को जीवित रखना चाहते हैं तो हमें वैश्विक परिवेश में हो रहे बदलावों में ही अपनी जीत का फार्मूला तलाशना होगा। उन्होंने कहा कि सागर में स्व. देवलिया जैसे आंचलिक पत्रकार ने मध्यप्रदेश की पत्रकारिता को कई सफल पत्रकार दिए हैं। इसी प्रकार इंदौर ने देश को कई सफल संपादक दिए हैं।

विशेष अतिथि के तौर पर आयोजन में शामिल पूर्व मंत्री महेश जोशी ने कहा कि अंचलों में चुनौतियों के बीच काम करने वाले पत्रकार कभी हतोत्साहित न हों इसके लिए जरूरी है कि स्व. देवलिया जी की स्मृति में इस तरह के आयोजन लगातार हों। उन्होंने इस तरह के आयोजनों के लिए एक लाख रुपए का सहयोग देने की घोषणा की और कहा कि वे इसके अलावा भी क्षमता अनुसार संसाधन उपलब्ध कराते रहेंगे। आयोजन समिति की ओर से शिव अनुराग पटैरिया ने भी आंचलिक पत्रकारों को हर साल 11 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की।

अध्यक्षीय संबोधन में स्व. देवलिया जी के साथ प्राध्यापक रहीं पत्रकारिता की शिक्षिका सुश्री दविंदर कौर उप्पल ने कहा कि अब्दुल गनी,मास्टर बल्देव प्रसाद और पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी जैसे स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के अनुभवों से पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों को प्रेरणा देने वाले स्व. देवलिया पत्रकारों में देशभक्ति के बीज बोने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। उनका मानना था कि बेशक तकनीकी या आर्थिक क्रांति हो जाए पर यदि पत्रकारों में भारतीय संस्कृति से लगाव नहीं होगा तो पत्रकारिता की चमक फीकी पड़ जाएगी। 

उन्होंने कहा कि बेशक आज की पत्रकारिता में धन की वर्षा हो रही हो पर हमें उस माहौल में सेंधमारी करके भारतीय मूल्यों का प्रचार प्रसार करना होगा ताकि पत्रकारिता की प्रतिष्ठा भी बढ़े और समाज का चहुंमुखी विकास भी हो। उन्होंने कहा कि आज जब मैं अपनी नौकरी से सेवा निवृत्त हो चुकी हूं तब मुझे इस बात का संतोष है कि हमने अपने विद्यार्थियों को मूल्यों से संस्कारित पत्रकार बनाने की चेष्ठा तो की है। उन्होंने कहा कि स्व. देवलिया जी की स्मृति में आयोजित ये व्याख्यान माला सागर में भी आयोजित होनी चाहिए ताकि वहां की नई पीढ़ी के पत्रकार भी प्रेरणा प्राप्त कर सकें।

मूल्यानुगत मीडिया के संपादक प्रो. कमल दीक्षित ने कहा कि बेशक वैश्विक परिवेश बदल गया है पर गांवों में संसाधन सीमित हैं इसलिए पिछड़ रही आंचलिक पत्रकारिता को सफल बनाने की जवाबदारी भी बड़े मीडिया संस्थानों को ही संभालनी होगी। उन्होंने कहा कि स्व. भुवन भूषण देवलिया जी एक्टिविस्ट जर्नलिस्ट थे। इस तरह के पत्रकार आज कम हो रहे हैं। आज बड़े अखबारों के कंप्रोमाईजिंग एजेंट के रूप में काम कर रहे पत्रकारों को नई पीढ़ी के पत्रकार अपना आदर्श मान रहे हैं जो चिंता का कारण है। स्व. देवलिया जी जैसे आंचलिक पत्रकार समाज के रोल माडल बनें इसके लिए उनकी स्मृति में आयोजित ये कार्यक्रम गांव गांव में होने चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि जिस तरह सागर में बैठकर खुरई आंचलिक नजर आता है उसी तरह दिल्ली में बैठकर भोपाल भी अंचल ही माना जाता है। इसलिए पत्रकारिता को आंचलिक न कहकर उसे वैश्विक माहौल से ही जोड़कर देखना होगा। पत्रकारिता को समाज की जरूरत के मुताबिक विकसित किया जाए तो आंचलिक पत्रकारिता की चुनौतियां भी समाप्त हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि शहरी चमक दमक से प्रभावित युवा संपादकों में गुलाम मानसिकता के कारण भाषा पर से नियंत्रण छूट रहा है। 

वे हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू जैसी कई भाषाओं के मिले जुले संवाद को पत्रकारिता की भाषा मान बैठे हैं जबकि अंचलों के पत्रकार हिंदी के ही कई नए खोजकर लाते हैं जिन्हें मुख्यधारा की पत्रकारिता में जगह मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आईंस्टीन का कहना था कि ऊर्जा न तो पैदा हो सकती है न ही नष्ट हो सकती केवल उसका रूपांतरण हो सकता है, उसी तरह ऋग्वेद में भी कहा गया है कि जड़, चेतन सभी में ब्रह्रम का वास है। इसी तरह बाजारवाद भी भारतीय मूल्यों और भारतीय दर्शन में पहले से मौजूद है। हमें उसे हमारे संदर्भों में ही अपनाना होगा तभी हम आंचलिक पत्रकारिता का लाभ समाज को पहुंचा पाएंगे।

लोकमत समाचार के ब्यूरो प्रमुख शिव अनुराग पटैरिया ने कहा कि टारगेट ग्रुप को ध्यान में रखकर चलने वाले बड़े अखबारों ने आंचलिक पत्रकारिता को ताक पर धर दिया है। चैनल टीआरपी के पीछे भागते हैं उन्हें गांवों की समस्याएं गंभीर नजर नहीं आतीं। जब संपादकों की पे के साथ पैकेज का दायित्व जुड़ जाता है तो वे रेंगते हुए चलने लगते हैं।इसी तरह कई बार गांव के पत्रकार के सामने पटवारी, अफसर, नेता, थानेदार सभी बडी़ बाधा बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि अखबारों को गांवों तक अपना ढांचा खड़ा करना होगा तभी आंचलिक पत्रकारों को मुख्य धारा की पत्रकारिता में शामिल किया जा सकेगा।

माखन लाल पत्रकारिता विवि के विभागाध्यक्ष पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि स्व. देवलिया जी अपने मिलने वालों के लिए हमेशा कुछ न कुछ देने की अभिलाषा रखते थे। उन्होंने कहा कि आज बेशक सूचना क्रांति का दौर है लेकिन समाज के लिए जरूरी सूचनाएं आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहीं हैं। इंटरनेट पर यदि जमीनी सूचनाएं अपलोड होती रहें तो ये अवरोध दूर किया जा सकता है इसके लिए युवाओं को विशेष प्रशिक्षण देना जरूरी है। आंचलिक पत्रकार खबरों को यदि वैश्विक परिवेश से जोड़कर देखेंगे तो पत्रकारिता को और असरकारी बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से लेकर आज तक आंचलिक पत्रकारों की आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, जैसी मूलभूत समस्याएं दूर नहीं हो पाई हैं। इस दिशा में सरकारों ने कोई प्रयास नहीं किए। जो छुटपुट प्रयास हुए वे कारगर साबित नहीं हो पाए। यदि अंचलों के पत्रकारों को वेतन नहीं मिलेगा तो वे अपना काम कैसे अच्छी तरह कर सकते हैं।

डॉ. सर हरिसिंह गौर विवि पूर्व छात्रकुल संघ के अध्यक्ष प्रो. राधेश्याम दुबे ने स्व. देवलिया जी के साथ बिताए अपने अनुभवों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि स्व. देवलिया की स्मृति अद्भुत थी और वे घटनाओं को याद रखकर समाचार लिख देते थे। समाज की तमाम घटनाओं पर उनकी पैनी नजर रहती थी। उनकी पत्रकारिता राष्ट्रवादी थी और उसे वे स्वाधीनता संग्राम सेनानियों से लगातार संवाद करके सक्रिय बनाए रखते थे।

आयोजन के प्रारंभ में व्याख्यानमाला समिति की ओर से सभी अतिथियों का पुष्प गुच्छ भेंटकर अभिनंदन किया गया। समिति की ओर से सर्वश्री राजेश सिरोठिया, सतीश -अपर्णा एलिया,अरुणा-डॉ.बी.के. दुबे,राजीव सोनी, सुनील-साधना गंगराड़े, अजय त्रिपाठी, आलोक सिंघईने भी अतिथियों को पुष्प गुच्छ भेंटकर उनका अभिनंदन किया।कार्यक्रम में गोविंद देवलिया, जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक लाजपत आहूजा,सेवा निवृत्त अपर संचालक आर.एम.पी.सिंह और सुरेन्द्र दिवेदी, प्रकाश साकल्ले, प्रो.कालिका प्रसाद,एबीपी न्यूज के ब्यूरो प्रमुख बृजेश राजपूत, हिंदुस्तान टाईम्स के स्टेट ब्यूरो चीफ रंजन श्रीवास्तव,कौशल चतुर्वेदी, मनीष दीक्षित, मनोज जोशी, अनिल गुप्ता, राजेश शर्मा,पुनीत पांडे, जगदीश द्विवेदी, जनजन जागरण के स्थानीय संपादक अजीत सिंह, मानवाधिकार आयोग में संयुक्त संचालक जनसंपर्क रोहित मेहता, मानव संग्रहालय से राजेश भट्ट,सहायक संचालक मनोज पाठक, मुख्यमंत्री प्रेस प्रकोष्ठ में सहायक संचालक अजय वर्मा, दश्य एवं श्रव्य प्रचार निदेशालय के अजय उपाध्याय,और बड़ी संख्या में पत्रकार गण व प्रतिष्ठित नागरिक गण वहां मौजूद थे।


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