भोपाल, 3 दिसम्बर 2025: मध्यप्रदेश की सदियों पुरानी शिल्प कला को आज एक बड़ा गौरव मिला है। खजुराहो स्टोन क्रॉफ्ट, छतरपुर फर्नीचर, बैतूल भरेवा मेटल क्रॉफ्ट, ग्वालियर पत्थर शिल्प और ग्वालियर पेपर मैशे क्रॉफ्ट को आखिरकार Geographical Indication (GI Tag) मिल गया। जीआई रजिस्ट्री चेन्नई की वेबसाइट पर इन पांचों के सामने ‘Registered’ का स्टेटस आते ही शिल्पकारों में खुशी की लहर दौड़ गई।
मध्यप्रदेश की कला-संस्कृति के लिए ऐतिहासिक पल: पद्मश्री डॉ. रजनीकांत
एमएसएमई मंत्री चैतन्य काश्यप ने इस उपलब्धि के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का आभार जताया और पूरे विभाग को बधाई दी। जीआई मैन ऑफ इंडिया कहे जाने वाले पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने इसे मध्यप्रदेश की कला-संस्कृति के लिए ऐतिहासिक पल बताया। उनके तकनीकी सहयोग और मार्गदर्शन के बिना यह संभव नहीं था। लगभग एक साल पहले नाबार्ड और सिडबी ने इन आवेदनों के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट दिया था, जबकि एमएसएमई विभाग ने पूरा प्रोसेस को आगे बढ़ाया। अब इन शिल्पों को कानूनी रूप से भारत की बौद्धिक संपदा का हिस्सा मान लिया गया है।
GI Tag क्या होता है और फायदा क्या है?
GI Tag एक तरह का सर्टिफिकेट होता है जो किसी खास भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पाद को मिलता है। जैसे दार्जिलिंग चाय या बनारसी साड़ी। इससे ये साबित होता है कि ये प्रोडक्ट सिर्फ उसी इलाके में उसी खास तरीके से बन सकता है। इसके फायदे कई हैं:-
- नकली माल पर रोक,
- शिल्पकारों को बेहतर कीमत,
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान और सबसे बड़ी बात,
- हमारी विरासत को कानूनी सुरक्षा।
अब कोई बाहर का व्यक्ति इन नामों का गलत इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।
हाल की दूसरी GI खबरें मध्यप्रदेश से:
- नवंबर 2025 में ही पन्ना डायमंड को GI Tag मिल चुका है।
- अभी करीब 25 और प्रोडक्ट्स (जैसे चंदेरी साड़ी के कुछ नए वैरिएंट, महेश्वरी साड़ी, बघ प्रिंट आदि) अंतिम स्टेज में हैं, जल्दी ही रजिस्टर्ड होने वाले हैं।
इसके साथ ही मध्यप्रदेश अब देश में सबसे ज्यादा GI टैग वाले राज्यों की लिस्ट में तेजी से ऊपर चढ़ रहा है। शिल्पकारों के लिए ये सिर्फ एक टैग नहीं, उनकी मेहनत और पहचान की जीत है। रिपोर्ट: राजेश बैन
.webp)
