इंदौर, 25 दिसंबर 2025: नगर निगम इंदौर के आयुक्त श्री दिलीप कुमार यादव ने जोन नंबर 14 (हवा बंगला) के अंतर्गत वार्ड 82 में कार्यरत प्रभारी उपयंत्री यशवीर सिंह यादव को आर्थिक अनियमितता और कार्य में लापरवाही के आरोप में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। साथ ही विभागीय जांच भी शुरू कर दी गई है।
ना ऑर्डर ना परमिशन ड्रेनेज लाइन का काम करवा दिया
दरअसल, वार्ड 82 के सुदामा नगर क्षेत्र में अमृत 2.0 योजना के तहत ड्रेनेज लाइन और अन्य कार्य प्रस्तावित हैं। योजना की जानकारी होने के बावजूद उपयंत्री यशवीर सिंह यादव ने बिना वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति या संज्ञान में लाए ड्रेनेज संबंधी काम करवा दिया। यह कृत्य न केवल अनुशासनहीनता दिखाता है, बल्कि आर्थिक अनियमितता का भी संकेत देता है। निगम हित के खिलाफ यह लापरवाही और स्वैच्छिक तरीके से काम करना गंभीर मामला माना गया। आयुक्त श्री यादव ने इसे देखते हुए फौरन निलंबन का आदेश जारी किया।
आयुक्त श्री दिलीप कुमार यादव ने कहा कि, अमृत 2.0 योजना शहर के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें पानी की सप्लाई और ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत बनाने का लक्ष्य है। ऐसे में किसी भी स्तर पर लापरवाही या अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। निगम प्रशासन का यह कदम दिखाता है कि विकास कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दी जा रही है।
यह तो अच्छी बात है, इंजीनियर ने पहले ही काम करवा दिया इसमें भ्रष्टाचार कैसे हुआ?
सवाल बिलकुल जायज है। पहले तो लगता है कि उपयंत्री यशवीर सिंह यादव ने सुदामा नगर में ड्रेनेज का काम जल्दी करवा दिया, तो इसमें अच्छाई ही है ना? शहरवासियों को फायदा जो हुआ। लेकिन मामला यहां थोड़ा गहरा है।
देखिए, अमृत 2.0 एक बड़ी सेंट्रल स्कीम है, जिसमें पानी की सप्लाई और ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत करने के लिए फंडिंग होती है। ऐसे प्रोजेक्ट्स में सख्त रूल्स होते हैं – टेंडर प्रोसेस, अप्रूवल, बजट अलोकेशन, क्वालिटी चेक और वरिष्ठ अधिकारियों की परमिशन अनिवार्य है। बिना इनके काम शुरू करना मतलब प्रोसीजर का उल्लंघन।
अब भ्रष्टाचार या आर्थिक अनियमितता कैसे जुड़ती है? कई संभावनाएं हैं:
- बिना अप्रूवल के काम करवाया, तो हो सकता है टेंडर बिना निकाले किसी फेवरिट ठेकेदार को दे दिया गया हो, जिससे रेट्स हाई हो सकते हैं या कम क्वालिटी का मटेरियल यूज हुआ।
- फंड्स का मिसयूज – अमृत स्कीम का पैसा स्पेसिफिक अप्रूवल के बाद ही खर्च होता है। अनअप्रूव्ड काम पर खर्च करने से अकाउंटिंग में गड़बड़, ओवर पेमेंट या फर्जी बिलिंग की गुंजाइश बनती है।
- लापरवाही का ऐंगल – स्वैच्छिक तरीके से काम करना, यानी रूल्स को इग्नोर करके, निगम को फाइनेंशियल लॉस का रिस्क। अगर काम में कोई डिफेक्ट निकला तो दोबारा खर्चा।
आयुक्त दिलीप कुमार यादव ने इसे अनुशासनहीनता और निगम हित के खिलाफ माना, इसलिए निलंबन प्लस विभागीय जांच का आदेश दिया है। जांच में ही पता चलेगा कि सिर्फ प्रोसीजर ब्रेक था या कोई बड़ा फाइनेंशियल इररेगुलैरिटी।
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