DELHI के बाद चंडीगढ़ हाईकोर्ट का फैसला सुर्खियों में: 5 साल की मासूम का रेप और मर्डर करने वाले की फांसी माफ

नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2025
: दिल्ली हाई कोर्ट का एक फैसला (कुलदीप सेंगर को जमानत) लगातार हेडलाइंस में है। सीबीआई ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की बात की है। इसी बीच चंडीगढ़ हाई कोर्ट का एक फैसला सुर्खियों में आ गया। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 2018 के उस दिल दहला देने वाले केस में दोषी की मौत की सजा को बदलकर 30 साल की सख्त कैद (बिना किसी छूट के) कर दिया है। जिसमें पलवल की पांच साल की मासूम बच्ची का रेप और मर्डर किया गया था और शव को आटे की टंकी में छिपा दिया था।

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी

निचली अदालत ने इसे rarest of rare केस मानकर फांसी सुनाई थी, लेकिन हाईकोर्ट की बेंच (जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर) ने कहा कि सिर्फ डर पैदा करने या बदले की भावना से फांसी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने साफ कहा कि जब कानून में मौत या लंबी सजा के दोनों विकल्प हों, तो वो रास्ता चुनना चाहिए जो अपरिवर्तनीय सजा से बचाए। रिकॉर्ड में कोई सबूत नहीं कि आरोपी सुधार से परे है या समाज के लिए इतना बड़ा खतरा कि सिर्फ फांसी ही विकल्प हो।

हत्या प्लान्ड नहीं थी, सबूत मिटाने की घबराहट में हुई

कोर्ट ने ये भी देखा कि आरोपी का कोई पुराना क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं, जेल में उसका व्यवहार ठीक रहा, कोई मेंटल इलनेस नहीं और हत्या प्लान्ड नहीं थी, बल्कि अपराध के बाद सबूत मिटाने की घबराहट में हुई। सजा तय करते वक्त अपराध की गंभीरता के साथ-साथ पीड़िता, अपराधी, उसके परिवार और पूरे समाज का बैलेंस रखना जरूरी है। समाज को ऐसे लोगों से बचाने के लिए उन्हें उनकी यौन सक्रियता खत्म होने तक जेल में रखना काफी है।

सजा का मकसद सिर्फ revenge नहीं, बल्कि न्याय

अंत में कोर्ट ने जुर्माने को बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दिया, जो पीड़िता के परिवार को मिलेगा। हाई कोर्ट ने कहा कि, सजा का मकसद सिर्फ revenge नहीं, बल्कि न्याय, बैलेंस और reform की संभावना भी है।

death penalty को सोच-समझकर ही इस्तेमाल किया जाता है

ये फैसला 24 दिसंबर 2025 को आया है और ये दिखाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में death penalty को बहुत सोच-समझकर ही इस्तेमाल किया जाता है। हाल के दिनों में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कई ऐसे मामलों में death sentence को life imprisonment में बदला है, जैसे एक पिता द्वारा अपनी 6 साल की बेटी के रेप-मर्डर केस में 30 साल बिना रिहाई की सजा, या फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक इन्फैंट रेप-मर्डर केस में भी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। ये ट्रेंड बताता है कि कोर्ट rarest of rare डॉक्ट्रिन को स्ट्रिक्टली फॉलो कर रही हैं।

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