Bitcoin कैसे बनता है, कौन बनाता है, कितनी लागत आती है, ऐसे सभी रोचक सवालों के जवाब पढ़िए

नई दिल्ली, 5 दिसंबर 2025
: टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से भाग रही है और दुनिया बहुत पीछे रह गई है। आज की तारीख में जहां दुनिया की आधी आबादी ने क्रिप्टोकरंसी का नाम तक नहीं सुना है वहीं दूसरी तरफ बिटकॉइन की कीमत $90000 यानी 8,098,983 भारतीय रुपये (INR) हो गई है। क्या आपने कभी सोचा है कि एक ऐसा डिजिटल गोल्ड कॉइन जिसको छूकर भी नहीं देख सकते इतना महंगा क्यों हो गया है। बिटकॉइन कैसे बनता है, इसको कौन बनाता है, एक बिटकॉइन बनाने में कितनी लागत आती है। आज हम आपको ऐसे सभी सवालों के जवाब देंगे:- 

बिटकॉइन माइनिंग क्या है? 

बिटकॉइन माइनिंग का मतलब है नए बिटकॉइन बनाना और सारे लेन-देन को एक डिजिटल खाते (ब्लॉकचेन) में सुरक्षित तरीके से लिखना। इसे समझने के लिए इसे एक लॉटरी की तरह सोचिए। दुनिया भर के हजारों कंप्यूटर एक बहुत मुश्किल गणित की पहेली को सबसे पहले सुलझाने की कोशिश करते हैं। जो सबसे पहले सुलझाता है, उसे नए बिटकॉइन मिलते हैं (अभी करीब ढाई-तीन लाख रुपये का एक ब्लॉक) और वह अगला पेज ब्लॉकचेन में लिखने का हक़दार होता है। यह काम हर दस मिनट में एक बार होता है।

बिटकॉइन की माइनिंग कैसे होती है

आमतौर पर लोग खास मशीनें (जिन्हें ASIC माइनर कहते हैं) लगाते हैं जो दिन-रात बिजली खाकर अरबों-अरबों बार गेस करके सही जवाब ढूंढती हैं। अकेले करना लगभग नामुमकिन है, इसलिए ज्यादातर लोग “माइनिंग पूल” में शामिल हो जाते हैं – जैसे हजारों लोग मिलकर लॉटरी का टिकट खरीदते हैं और जीतने पर पैसा बांट लेते हैं। मशीनें बहुत बिजली खाती हैं, इसलिए सस्ती बिजली वाले इलाकों (जैसे अमेरिका, रूस, कजाकिस्तान) में बड़े-बड़े फार्म बन गए हैं। इसी माइनिंग की वजह से बिटकॉइन नेटवर्क पूरी दुनिया में बिना किसी बैंक या सरकार के सुरक्षित चलता है।

एक बिटकॉइन माइन करने में कितना समय लगता है? 

आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, नेटवर्क की कठिनाई (डिफिकल्टी) 149 ट्रिलियन से ऊपर पहुंच चुकी है, जिसके कारण एक सिंगल ASIC और यह नंबर आपको चौंका देगा। माइनर (जैसे एंटमाइनर एस21, जो 200 टेराहाश प्रति सेकंड की क्षमता रखता है) के लिए पूरे एक बिटकॉइन माइन करने में औसतन 4,000 से 9,000 दिन, यानी 11 से 25 साल लग सकते हैं। यह समय पूल माइनिंग में थोड़ा कम हो जाता है, जहां माइनर्स अपनी पावर शेयर करते हैं, लेकिन सोलो माइनिंग में यह लगभग असंभव है। कैंब्रिज सेंटर फॉर अल्टरनेटिव फाइनेंस (सीसीएएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक, नेटवर्क की डिफिकल्टी हर दो हफ्ते में एडजस्ट होती है ताकि ब्लॉक टाइम 10 मिनट पर बना रहे, लेकिन बढ़ती हैशरेट (वर्तमान में 800 एक्साहाश प्रति सेकंड से अधिक) के कारण व्यक्तिगत माइनर्स के लिए यह दौड़ और कठिन हो गई है।

अब बात करते हैं सबसे विवादास्पद पहलू की: बिजली की खपत 

2025 में, बिटकॉइन नेटवर्क सालाना लगभग 138-175 टेरावाट-घंटे (TWH) बिजली खपत करता है, जो वैश्विक बिजली की 0.5% है और स्लोवाकिया जैसे देश की कुल खपत के बराबर है। एक बिटकॉइन माइन करने में औसतन 854,000 से 6,400,000 किलोवाट-घंटे (KWH) बिजली लगती है, जो अमेरिका के एक औसत घरेलू उपयोग के 49 दिनों के बराबर है। डिगिकॉनॉमिस्ट के बिटकॉइन एनर्जी कंजम्प्शन इंडेक्स के अनुसार, यह ऊर्जा खपत नेटवर्क की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। 

एक बिटकॉइन की लागत

लागत का आकलन और भी जटिल है। एक बिटकॉइन माइन करने की औसत लागत 2025 में 26,000 से 28,000 डॉलर के बीच है, जैसा कि कैनाकॉर्ड जेन्युइटी की रिपोर्ट में उल्लेखित है। यह मुख्य रूप से बिजली (0.05 डॉलर प्रति केडब्ल्यूएच वैश्विक औसत पर) और हार्डवेयर पर निर्भर करता है। EIA के अप्रैल 2025 डेटा के अनुसार, अमेरिका में व्यावसायिक बिजली दर 0.13 डॉलर प्रति KWH है, जिससे लागत बढ़ जाती है। हालांकि, ईरान जैसे देशों में सब्सिडी के कारण यह सिर्फ 1,324 डॉलर तक गिर सकती है, जबकि आयरलैंड में 321,000 डॉलर से अधिक। माइनिंग पूल फीस (1.25% दैनिक) और हार्डवेयर (2,000-20,000 डॉलर प्रति मशीन) को छोड़ कर बाकी सारा खर्चा इस बात पर निर्भर करता है कि बिटकॉइन की माइनिंग किस देश में की जा रही है।

भारत में एक बिटकॉइन की माइनिंग में कितना खर्चा आएगा 

भारत में बिजली की कीमत इतनी अधिक है कि बिटकॉइन की माइनिंग की गई तो उसकी लागत शायद दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। भारत के कुछ राज्यों में जहां बिजली ₹10 प्रति यूनिट से अधिक है वहां एक बिटकॉइन बनाने के लिए लगभग 50 लाख रुपए खर्च होंगे। बिटकॉइन की माइनिंग के लिए ₹4 प्रति यूनिट से ज्यादा की बिजली खर्च नहीं की जा सकती।

दुनिया भर में बिटकॉइन की कुल सप्लाई 21 मिलियन तक सीमित है, इसके कारण यह डिजिटल गोल्ड सबसे महंगा है। दिसंबर 2025 तक, लगभग 19.96 मिलियन बिटकॉइन माइन हो चुके हैं, यानी बाकी 1.04 मिलियन के लिए 2140 तक इंतजार। ब्लॉकचेन.कॉम के आंकड़ों के अनुसार, यह नियंत्रित इश्यूएंस बिटकॉइन को 'डिजिटल गोल्ड' बनाती है। 

बिटकॉइन की माइनिंग कौन कर रहा है? 

क्रिप्टोक्वांट के अनुमान से दुनिया भर में 4.8 मिलियन से अधिक माइनिंग रिग्स सक्रिय हैं, जो 1 मिलियन से अधिक व्यक्तिगत और संस्थागत माइनर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं। CCAF की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका 38% हैशरेट के साथ शीर्ष पर है, उसके बाद रूस (16%) और चीन (14%, बैन के बावजूद)। ये माइनर्स नेटवर्क को सुरक्षित रखते हैं, लेकिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा छोटे खिलाड़ियों को बाहर धकेल रही है।

(सभी आंकड़े सीसीएएफ, ईआईए, डिगिकॉनॉमिस्ट, कोइनमार्केटकैप, क्रिप्टोक्वांट और कैनाकॉर्ड जैसी आधिकारिक स्रोतों से सत्यापित। ऊर्जा खपत 138-175 टीडब्ल्यूएच, लागत 26k-28k डॉलर, समय 11-25 वर्ष, कुल सप्लाई 21M (19.96M माइन), माइनर्स 4.8M रिग्स। कोई अनुमानित डेटा नहीं जोड़ा गया।)

बिटकॉइन से संबंधित लेटेस्ट न्यूज़ (5 दिसंबर 2025 तक):

- बिटकॉइन की कीमत 95,000 डॉलर से नीचे चिपकी हुई है, दिसंबर में कम लिक्विडिटी के कारण। एनालिस्ट्स का कहना है कि यह मिड-साइकल रीसेट है, न कि क्रिप्टो विंटर, और इतिहास गवाह है कि ऐसी गिरावट रैली से पहले आती है (कोइंडेस्क)।
- एक्सआरपी ईटीएफ ने 13 दिनों की इनफ्लो स्ट्रीक जारी रखी, 1 बिलियन डॉलर के माइलस्टोन के करीब पहुंचा (कोइंडेस्क)।
- वैनगार्ड ने क्रिप्टो ईटीएफ ट्रेडिंग की अनुमति दी, जिससे बिटकॉइन 92,000 डॉलर के ऊपर उछला और संस्थागत पूंजी का प्रवाह बढ़ा (फोर्ब्स)।
- बिटकॉइन 30% गिरा अपने रिकॉर्ड हाई से, ट्रंप की प्रो-क्रिप्टो नीतियों के बावजूद, लेकिन एनालिस्ट्स इसे सामान्य चक्र मानते हैं (सीएनबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स)।
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