BHARAT में आरक्षण के कारण बड़ा बदलाव: 5 चौंकाने वाले आँकड़े जो आपको जानने चाहिए

नई दिल्ली, 4 दिसंबर 2025: 
भारत में उच्च शिक्षा को लेकर दशकों से चली आ रही सार्वजनिक बहसें अक्सर जाति, आरक्षण और अवसरों की समानता जैसी पुरानी मान्यताओं के इर्द-गिर्द घूमती हैं। आम तौर पर यह माना जाता है कि ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे समुदायों के लिए अवसर सीमित हैं और सामान्य वर्ग का दबदबा आज भी कायम है। यह मान्यता अक्सर हमारी सरकारी नीतियों और सामाजिक विमर्श को आकार देती रही है। लेकिन क्या होगा अगर आधिकारिक आँकड़े इस स्थापित धारणा को न केवल चुनौती दें, बल्कि उसे पूरी तरह से पलट दें? न केवल पलट दें बल्कि एक ऐसी स्थिति सामने रख दें जब आपको कहना पड़े कि, सामान्य श्रेणी के बच्चों को संरक्षण की आवश्यकता है।

AISHE की रिपोर्ट के 5 सबसे आश्चर्यजनक और प्रभावशाली निष्कर्ष

कोई प्राइवेट संस्था नहीं बल्कि अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE - Government of India) के नवीनतम आँकड़े एक ऐसी तस्वीर पेश करते हैं जो कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक हो सकती है। ये आँकड़े एक गहरे और तेज़ बदलाव की ओर इशारा करते हैं जो भारत के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के सामाजिक ताने-बाने को हमेशा के लिए बदल रहा है। इस न्यूज़ आर्टिकल का उद्देश्य AISHE द्वारा 2010-11 से 2022-23 तक जुटाए गए आँकड़ों से निकले पाँच सबसे आश्चर्यजनक और प्रभावशाली निष्कर्षों को आपके सामने रखना है। ये निष्कर्ष न केवल हमारी पुरानी धारणाओं पर सवाल उठाते हैं, बल्कि भारत में शैक्षिक समानता और सकारात्मक कार्रवाई की नीतियों के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत देते हैं।

1. बड़ा उलटफेर: SC/ST/OBC छात्र अब बहुमत में

सबसे मौलिक बदलाव छात्र आबादी की संरचना में आया है। अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के छात्रों का संयुक्त नामांकन अब एक ऐसी ऐतिहासिक सीमा को पार कर गया है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना करना भी मुश्किल था।

मुख्य आँकड़े इस बदलाव को स्पष्ट करते हैं: 2022-23 में, उच्च शिक्षा में कुल नामांकन में SC/ST/OBC छात्रों की हिस्सेदारी बढ़कर 60.8% हो गई, जो 2010-11 में मात्र 43.2% थी। इसके ठीक विपरीत, इसी अवधि में सामान्य श्रेणी (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग - EWS सहित) की हिस्सेदारी 56.8% से घटकर 39.2% रह गई है।

SC/ST/OBC और सामान्य श्रेणी के छात्रों की संख्या में लगभग एक करोड़ का अंतर

यह बदलाव केवल प्रतिशत में ही नहीं, बल्कि वास्तविक संख्या में भी बहुत बड़ा है। आज, SC/ST/OBC छात्रों का नामांकन सामान्य श्रेणी के छात्रों से 95 लाख से भी अधिक है। नीतिगत दृष्टिकोण से, यह भारत के परिसरों में एक ऐतिहासिक जनसांख्यिकीय उलटफेर का प्रतीक है, जहाँ अब तक वंचित माने जाने वाले समुदाय बहुमत में हैं।

2. विकास दर की दो कहानियाँ: विस्फोटक वृद्धि बनाम लगभग ठहराव

उच्च शिक्षा में समग्र विस्तार सभी सामाजिक समूहों के लिए एक समान नहीं रहा है। यह समझने के लिए कि यह ऐतिहासिक उलटफेर इतनी तेज़ी से कैसे हुआ, हमें दोनों समूहों की विकास दरों के बीच के ज़मीन-आसमान के अंतर को देखना होगा।

आँकड़े चौंकाने वाले हैं: 2010-11 और 2022-23 के बीच, SC/ST/OBC छात्रों के नामांकन में 125.2% की विस्फोटक वृद्धि हुई। इसकी तुलना में, इसी अवधि में सामान्य श्रेणी की वृद्धि दर मात्र 9.5% रही।

यह कोई सामान्य आँकड़ा नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक और शैक्षिक क्रांति की गति को दर्शाता है जो दशकों से खामोशी से आकार ले रही थी। यह भारी अंतर ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े समूहों के बीच तेजी से हो रही शैक्षिक गतिशीलता को रेखांकित करता है।

3. आरक्षण से परे: खुली प्रतिस्पर्धा और निजी संस्थानों में सफलता

एक आम धारणा यह है कि SC/ST/OBC छात्रों की यह अभूतपूर्व वृद्धि केवल सरकारी कॉलेजों में आरक्षित सीटों के कारण ही संभव हुई है। हालाँकि, आँकड़े इस धारणा को पूरी तरह से गलत साबित करते हैं और एक कहीं ज़्यादा शक्तिशाली कहानी बताते हैं।

SC/ST/OBC छात्र अब सरकारी आरक्षण की कृपा पर निर्भर नहीं

आँकड़े हैरान करने वाले हैं: 2022-23 में, निजी संस्थानों में कुल नामांकन में SC/ST/OBC छात्रों की हिस्सेदारी 60% थी, जो सरकारी संस्थानों में उनकी 62.2% हिस्सेदारी के लगभग बराबर है। इन आँकड़ों का गहरा महत्व है, क्योंकि यह दर्शाता है कि वह अब निर्धन नहीं है और सरकारी आरक्षण की कृपा पर निर्भर नहीं है।

SC/ST/OBC छात्र अब सामान्य श्रेणी में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस पूरी अवधि के दौरान वैधानिक आरक्षण कोटा मोटे तौर पर 50% पर अपरिवर्तित रहा है। चूँकि कोटा नहीं बढ़ा, फिर भी इन समुदायों की कुल हिस्सेदारी लगभग 61% तक पहुँच गई है, जिसका सीधा मतलब है कि एक बड़ी संख्या में छात्र खुली प्रतिस्पर्धा के माध्यम से सामान्य श्रेणी की सीटें और निजी संस्थानों में प्रवेश हासिल कर रहे हैं। जैसा कि स्रोत दस्तावेज़ में बताया गया है:

The fact that many students from disadvantaged backgrounds are securing a significant share of admissions to higher education seats over and above the reservation quota through open competition and also in private institutions illustrates that education has substantially narrowed down caste-based gaps and promoted merit-based competition.

(हिंदी अनुवाद: यह तथ्य कि वंचित पृष्ठभूमि के कई छात्र खुली प्रतिस्पर्धा के माध्यम से और निजी संस्थानों में भी आरक्षण कोटे से ऊपर उच्च शिक्षा सीटों में प्रवेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सुरक्षित कर रहे हैं, यह दर्शाता है कि शिक्षा ने जाति-आधारित अंतरालों को काफी हद तक कम कर दिया है और योग्यता-आधारित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है।)

4. अनदेखा ट्रेंड: सामान्य श्रेणी के छात्र उच्च शिक्षा से दूर हो रहे हैं

जहाँ एक ओर आरक्षित श्रेणियों के छात्रों का नामांकन रॉकेट की गति से बढ़ रहा था, वहीं दूसरी ओर एक और अप्रत्याशित कहानी सामने आ रही थी: सामान्य श्रेणी के नामांकन में ठहराव और फिर गिरावट। यह एक ऐसा ट्रेंड है जिस पर बहुत कम ध्यान दिया गया है।

यह प्रवृत्ति केवल धीमी वृद्धि की नहीं है, बल्कि हाल के वर्षों में वास्तविक संख्या में एक महत्वपूर्ण गिरावट की भी है। विशिष्ट आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं: केवल 2020-21 और 2022-23 के बीच, जब कुल नामांकन में वृद्धि हुई, उसी समय सामान्य श्रेणी के नामांकन में लगभग 11 लाख छात्रों की गिरावट आई।

यह गिरावट कुछ राज्यों तक सीमित नहीं है। आँकड़ों के अनुसार, 2020-21 और 2021-22 के बीच 36 में से 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सामान्य श्रेणी के नामांकन में वास्तविक संख्या में कमी देखी गई। यह चिंता की स्थिति है और अनुसंधान आवश्यक है कि क्या उनका विश्वास उच्च शिक्षा से घट रहा है या फिर वह महंगी फीस देने की स्थिति में नहीं है या फिर SC/ST/OBC की संख्या बढ़ जाने के कारण उनके लिए सीट्स रिक्त नहीं बच रही है।

5. सभी नई सीटों में से 91% SC/ST/OBC छात्रों को मिलीं

यह समझने के लिए कि उच्च शिक्षा का विस्तार किस समूह को सबसे अधिक लाभ पहुँचा रहा है, यह जानना ज़रूरी है कि नई जोड़ी गईं सीटें कहाँ गईं। आँकड़े इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट और निर्णायक हैं।

प्रत्येक 100 में से सीटें 91 SC/ST/OBC छात्रों को

2010-11 और 2022-23 के बीच, उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 1.63 करोड़ बढ़ा। इसे दूसरे शब्दों में समझें: पिछले तेरह वर्षों में उच्च शिक्षा में जोड़ी गई हर 100 सीटों में से 91 सीटें अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को मिलीं। कुल 1.63 करोड़ की वृद्धि में से, एक चौंका देने वाला 1.49 करोड़ का हिस्सा SC, ST, और OBC समुदायों के छात्रों ने हासिल किया।

भारत के उच्च शिक्षा परिसरों की संरचना पूरी तरह से बदल गई

इसे और भी गहराई से देखें तो, अकेले OBC समुदाय के छात्रों ने इस कुल नामांकन वृद्धि का 58% हिस्सा हासिल किया। इसका सीधा सा मतलब है: पिछले तेरह वर्षों में भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के विस्तार का भारी लाभ आरक्षित श्रेणियों के छात्रों को मिला है, जिसने भारत के परिसरों की सामाजिक संरचना को पूरी तरह बदल दिया है।

2027-28 तक SC/ST/OBC छात्र कुल नामांकन का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा बना सकते हैं और 2035-36 तक यह आँकड़ा तीन-चौथाई को भी पार कर सकता है। 

निष्कर्ष: आरक्षण नीतियों के पुनर्मूल्यांकन की तत्काल आवश्यकता 

आँकड़े झूठ नहीं बोलते। वे भारत के उच्च शिक्षा परिदृश्य में एक गहरे और तीव्र परिवर्तन का खुलासा करते हैं। दशकों के आरक्षण का परिणाम अब भारत के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की जनसांख्यिकी में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। मौजूदा विकास दर के आधार पर, यह अनुमान लगाया गया है कि 2027-28 तक SC/ST/OBC छात्र कुल नामांकन का दो-तिहाई (66%) से अधिक हिस्सा बना सकते हैं और 2035-36 तक यह आँकड़ा तीन-चौथाई (75%) को भी पार कर सकता है। यह ज़मीनी हकीकत भारत की आरक्षण नीतियों के पुनर्मूल्यांकन की तत्काल आवश्यकता पर बल देती है ताकि वे संतुलित, निष्पक्ष और प्रभावी बनी रहें।
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