नई दिल्ली, 10 दिसंबर 2025: आज दुनिया एक बड़े संघर्ष का सामना कर रही है: जेनरेटिव AI मॉडल्स को सीखने के लिए भारी मात्रा में मानव-निर्मित कंटेंट (कला, संगीत, लेख) की ज़रूरत होती है, लेकिन इन कंटेंट को बनाने वाले क्रिएटर्स अपने काम के लिए मुआवज़े के हक़दार हैं। यह एक वैश्विक दुविधा है जो इनोवेशन को क्रिएटिविटी के खिलाफ खड़ा कर देती है। इस चुनौती के बीच, भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा गठित एक समिति के एक नए वर्किंग पेपर ने एक अनोखा और हैरान करने वाला समाधान प्रस्तावित किया है।
Working Paper on Generative AI and Copyright: Part 1
यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह अभी तक कोई अंतिम कानून नहीं है, बल्कि हितधारकों के साथ परामर्श के लिए जारी किया गया एक दस्तावेज़ है। एक जटिल नीतिगत बातचीत में एक साहसिक पहला कदम। इस न्यूज़ आर्टिकल में हम आपको इस प्रस्तावित ढांचे से निकली चार सबसे प्रभावशाली और महत्वपूर्ण बातों को सरल भाषा में समझा रहे हैं।
1. Mandatory access, mandatory payment: India's unique 'hybrid model'
DPIIT समिति का प्रस्तावित "हाइब्रिड मॉडल" अनिवार्य पहुँच (mandatory access) और अनिवार्य भुगतान (mandatory payment) के दो पिलर्स पर आधारित है, जो इसे टेक्नोलॉजी और क्रिएटिव उद्योगों की मांगों के बीच एक रणनीतिक संतुलन बनाने का प्रयास बनाता है। इस मॉडल के तहत, AI डेवलपर्स को एक "अनिवार्य कंबल लाइसेंस" (mandatory blanket license) मिलेगा। इसका मतलब है कि उन्हें अपने AI सिस्टम को प्रशिक्षित करने के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध सभी कॉपीराइटेड कार्यों का उपयोग करने का अधिकार होगा।
लेकिन इस पहुँच के बदले में, AI डेवलपर्स को अपने राजस्व का एक हिस्सा रॉयल्टी के रूप में क्रिएटर्स को देना होगा। यह कोई विकल्प नहीं है; यह एक वैधानिक आवश्यकता होगी।
इस मॉडल को 'हाइब्रिड' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दो अलग-अलग मॉडलों की विशेषताओं को जोड़ता है: यह टेक्नोलॉजी उद्योग द्वारा मांगी गई एक सुविधा (डेटा तक गारंटीकृत, कंबल पहुँच, जो टेक्स्ट और डेटा माइनिंग (TDM) अपवाद के समान है) को क्रिएटर्स द्वारा मांग की गई एक सुविधा (गारंटीकृत, गैर-परक्राम्य भुगतान, जो एक वैधानिक लाइसेंस के समान है) के साथ मिलाता है। इसका लक्ष्य AI नवाचार को बढ़ावा देने और क्रिएटर्स को उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के बीच एक संतुलन बनाना है। जैसा कि वर्किंग पेपर में कहा गया है, यह मॉडल उस मुख्य चुनौती को हल करने का प्रयास करता है जिसका सामना आज दुनिया कर रही है:
"मुख्य चुनौती यह है कि मानव-निर्मित मौलिक कार्यों में निहित कॉपीराइट की रक्षा कैसे की जाए, बिना तकनीकी प्रगति को रोके।"
2. The most shocking thing: Content creators can't say NO
इस प्रस्तावित ढांचे का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि कॉपीराइट धारकों के पास अपने कार्यों को AI ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल होने से रोकने या "ऑप्ट-आउट" करने का विकल्प नहीं होगा।
यह इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि कॉपीराइट कानून का मूल सिद्धांत क्रिएटर्स को अपने काम के उपयोग को दूसरों को प्रतिबंधित करने का विशेष अधिकार देना है। यह प्रस्ताव AI विकास में सार्वजनिक हित के लिए उस मूल सिद्धांत को मौलिक रूप से बदल देता है, जो इसे इतना अप्रत्याशित बनाता है।
इस निर्णय को सही ठहराने के लिए, समिति ने जिम्मेदार AI विकास के स्थापित सिद्धांतों का हवाला दिया:
1. यह सुनिश्चित करना कि AI डेवलपर्स के पास व्यापक और प्रतिनिधि डेटासेट तक पहुँच हो।
2. AI में पूर्वाग्रह (bias) और गलत जानकारी (hallucinations) के जोखिम को कम करना, जो सीमित ट्रेनिंग डेटा के कारण हो सकता है।
3. "होल्डआउट" को रोकना, जहाँ कुछ बड़े खिलाड़ी महत्वपूर्ण डेटा तक पहुँच को रोक सकते हैं और नवाचार को बाधित कर सकते हैं।
संक्षेप में, यह प्रस्ताव व्यक्तिगत सहमति के बजाय रॉयल्टी के माध्यम से मुआवजे को सुनिश्चित करते हुए, बड़े सार्वजनिक हित के लिए AI सिस्टम की गुणवत्ता और सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
3. Why was the opt-out model rejected? A trap for small creators
समिति ने यूरोपीय संघ में उपयोग किए जाने वाले "ऑप्ट-आउट" मॉडल (जहाँ क्रिएटर्स अपने काम को AI ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल होने से रोकने के लिए चिह्नित कर सकते हैं) को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। समिति ने इस मॉडल के खिलाफ कई शक्तिशाली तर्क दिए:
यह बोझ क्रिएटर्स पर डालता है: यह AI कंपनियों के बजाय कंटेंट क्रिएटर्स को अपने काम की सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने के लिए मजबूर करता है।
छोटे क्रिएटर्स को नुकसान: छोटे क्रिएटर्स के पास अक्सर जागरूकता, सौदेबाजी की शक्ति और तकनीकी साधन नहीं होते हैं कि वे प्रभावी ढंग से ऑप्ट-आउट कर सकें या यह सत्यापित कर सकें कि उनके ऑप्ट-आउट का सम्मान किया गया है या नहीं।
यह अप्रभावी है: जब तक AI कंपनियों पर अपने सभी ट्रेनिंग डेटा का खुलासा करने की सख्त पारदर्शिता की आवश्यकता नहीं होती, तब तक क्रिएटर्स के लिए यह जानना लगभग असंभव है कि उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है या नहीं।
यह तकनीकी रूप से अप्रभावी है: एक बार जब कंटेंट से उसका मेटाडेटा हटा दिया जाता है और उसे बदल दिया जाता है, तो ऑप्ट-आउट भविष्य में उसके पुन: उपयोग को नहीं रोक सकता। इस तरह डेटा पर खोया हुआ नियंत्रण वापस पाना असंभव हो जाता है।
समिति ने निष्कर्ष निकाला कि यह मॉडल संरचनात्मक रूप से व्यक्तिगत क्रिएटर्स के बजाय बड़े निगमों के पक्ष में है, और यह छोटे और स्वतंत्र कलाकारों के हितों की रक्षा करने में विफल रहता है।
4. A new path for startups: No upfront fees, just revenue sharing
यह प्रस्तावित मॉडल रॉयल्टी भुगतान के लिए एक बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाता है, जो विशेष रूप से स्टार्टअप्स के लिए फायदेमंद है।
रॉयल्टी AI डेवलपर के AI सिस्टम से होने वाले सकल वैश्विक राजस्व (करों को छोड़कर) का एक निश्चित प्रतिशत होगी।
सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि AI डेवलपर्स को ट्रेनिंग चरण के दौरान कोई अग्रिम लाइसेंसिंग शुल्क (upfront licensing fees) नहीं देना होगा। भुगतान तभी शुरू होगा जब AI सिस्टम राजस्व उत्पन्न करना शुरू कर देगा।
इस दृष्टिकोण के पीछे का तर्क भारत में स्टार्टअप्स और छोटे खिलाड़ियों के लिए प्रवेश की बाधा को कम करना और एक समान अवसर प्रदान करना है, ताकि वे बड़ी तकनीकी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें। दरों को निष्पक्ष और अनुमानित बनाने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
Conclusion: Maintain a steady flow of compensation in the creative ecosystem
भारत का प्रस्तावित हाइब्रिड मॉडल AI इनोवेटर्स और मानव क्रिएटर्स के बीच एक सहजीवी संबंध बनाने का एक साहसिक प्रयास है। इसका उद्देश्य AI विकास के लिए कानूनी निश्चितता प्रदान करना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि रचनात्मक पारिस्थितिकी तंत्र में मुआवजे का एक स्थिर प्रवाह बना रहे। जहाँ यूरोपीय संघ और अमेरिका 'ऑप्ट-आउट' बनाम 'उचित उपयोग' (fair use) पर कानूनी लड़ाइयों और बहसों में उलझे हुए हैं, वहीं भारत का प्रस्तावित ढांचा एक वैधानिक लाइसेंसिंग प्रणाली बनाकर इस बहस को पूरी तरह से दरकिनार कर देता है। यह भारत को एक संभावित पथ-प्रदर्शक के रूप में स्थापित करता है, जो एक तीसरा रास्ता पेश करता है।
अब सोचने वाला सवाल यह है: क्या भारत का यह साहसिक प्रयोग दुनिया के लिए एक नया रास्ता बना पाएगा, या यह इनोवेशन और क्रिएटिविटी के बीच संतुलन साधने की एक और जटिल कोशिश बनकर रह जाएगा? कृपया इस न्यूज़ पोस्ट के साथ अपने विचार सोशल मीडिया पर शेयर कीजिए ताकि एक माहौल बने और सरकार के पास तक क्लियर मैसेज पहुंच पाए।
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