बेलेम के इस गजब के COP30 में तो देखो, नेताओं की भीड़ लगी हुई है, पॉलिसी पर झगड़े चल रहे हैं, हर तरफ चाय की दुकान जैसी गपशप। तभी एक ऐसी खबर फूट पड़ी कि सबका फोकस उलट-पुलट हो गया।
Belem Health Action Plan for Health and Climate Adaptation
ब्राजील वाले प्रेसीडेंट ने ठहाका लगाते हुए लॉन्च किया Belem Health Action Plan for Health and Climate Adaptation. ये वही प्लान है, जिसके लिए WHO में महीनों चिल्ल-पों मचाई गई थी पब्लिक कंसल्टेशन में। अब ये प्लान अस्सी से ज्यादा देशों और ग्रुप्स के साथ खड़ा है, और ऊपर से चैरिटी वाले और सिविल सोसाइटी के भाई-बहनों का भी फुल सपोर्ट।
ये बेलेम वाली शुरुआत कोई कागज का टुकड़ा नहीं है। ये सिग्नल है कि दुनिया अब जलवायु के तूफान को हेल्थ के चश्मे से देखने लगी है, वरना तो बस बातें ही करती रही।
ग्लोबल हेल्थ फाइनेंस में एडैप्टेशन अभी भी अंधेरी गली में घूम रहा
क्लाइमेट एडैप्टेशन की बात तो दुनिया भर में हो रही है, हर मीटिंग में, लेकिन जब पैसे की बारी आती है, तो हेल्थ वाला सेक्टर पीछे छूट जाता है। Adelphi की फ्रेश स्टडी बता रही है कि मल्टीलैटरल क्लाइमेट फंड्स ने टोटल क्लाइमेट फाइनेंस का महज 0.5 परसेंट और एडैप्टेशन फाइनेंस का 2 परसेंट ही हेल्थ पर उड़ाया है। इनमें भी Green Climate Fund अकेला सत्तर परसेंट से ज्यादा का बोझ उठा रहा है।
कंट्री-स्पेसिफिक प्रोजेक्ट्स को एक पैसा भी नहीं
पैसे का बंटवारा भी तो देखो, कितना बेईमानी का। हेल्थ-एडैप्टेशन प्रोजेक्ट्स का दो-तिहाई हिस्सा ईस्ट एशिया और पैसिफिक में चला गया। एक-चौथाई सब-सहारन अफ्रीका को मिला। लेकिन साउथ एशिया, जहां क्लाइमेट से हेल्थ की मुसीबतें रॉकेट की स्पीड से बढ़ रही हैं, वहां कंट्री-स्पेसिफिक प्रोजेक्ट्स को एक पैसा भी नहीं।
फिर भी तस्वीर उल्टी-सीधी है। दुनिया के 87 परसेंट NAPs में हेल्थ को एडैप्टेशन का हिस्सा बना दिया गया है। और 39 परसेंट में हेल्थ के लिए अलग से बजट भी रखा है।
UNEP की इस साल की Adaptation Gap Report साफ बता रही है कि 2019 से 2023 तक मल्टीलैटरल एडैप्टेशन फंडिंग का सिर्फ 4 परसेंट ही हेल्थ पर गया। एडेल्फी के लेटेस्ट एनालिसिस में फिर वही बात, क्लाइमेट फाइनेंस में हेल्थ का शेयर अभी भी 0.5 परसेंट, जबकि हेल्थ सिस्टम तो पहले से ही घुटने टेक रहा है।
Lancet Countdown Report ने तो हालात की पोल खोल दी। गर्मी, सूखा, चरम तूफान और बरसात की तबाही मिलकर दुनिया भर में लाखों जिंदगियां लील रही हैं। और साल दर साल ये खतरा बढ़ता जा रहा है, जैसे मुंबई की ट्रैफिक जाम।
बेलेम में दुनिया की पुकार, हेल्थ बचाने को एडैप्टेशन फाइनेंस चाहिए
COP30 के दौरान एक स्पेशल प्रेस कॉन्फ्रेंस में हेल्थ एक्सपर्ट्स ने सबको सुना दिया। क्लाइमेट क्राइसिस अब हेल्थ सिस्टम को सीधा मार रहा है। बिना फंडिंग के ये सिस्टम तो डूब जाएगा, जैसे बोटलेग में पानी भर जाए।
लैंसेट काउंटडाउन की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. मरीना रोमानेलो ने कहा, “क्लाइमेट इम्पैक्ट तेजी से बढ़ रहे हैं और हेल्थ सेक्टर पहले से दबाव में है। फंडिंग न मिली तो आने वाले झटकों को झेलना मुश्किल हो जाएगा।”
भारत के बारे में श्वेता नारायण, ग्लोबल क्लाइमेट एंड हेल्थ अलायंस की कैंपेन लीड, ने बेलेम में बता दिया, “भारत तो डिसाइडिंग पॉइंट पर खड़ा है। गवर्नमेंट ने Belem Health Action Plan को सपोर्ट देकर दिखा दिया कि क्लाइमेट एक्शन का असली मतलब लोगों की सेहत है। हवा में जहर घुला पड़ा है, हर रोज करोड़ों लोग उसे सांसों में भरते हैं। ये कोई अचानक वाली बात नहीं, हालात बिगड़ने की चेतावनी है। बेलेम प्लान से भारत मॉनिटरिंग सिस्टम को टाइट कर सकता है, अर्ली वार्निंग को शार्प बना सकता है, और ऐसी पॉलिसी ला सकता है जो तुरंत फायदा दे। जैसे साफ हवा, कम बीमारियां, और मजबूत हेल्थ सेटअप। ये कोई ग्लोबल इमेज का खेल नहीं, 1.4 अरब लोगों की सेफ्टी का सवाल है।”
Conclusion of the story
बेलेम हेल्थ एक्शन प्लान कोई खाली घोषणा नहीं भाई। ये वो झटका है जो याद दिला रहा है कि क्लाइमेट क्राइसिस और हेल्थ क्राइसिस अलग-अलग नहीं, एक ही सिक्के के दो पहलू। हर बाढ़ अस्पतालों को भर देती है। हर हीटवेव इमरजेंसी रूम तक पहुंच जाती है। हर सूखा कुपोषण को जन्म देता है। और हर तूफान पब्लिक हेल्थ सिस्टम की जड़ें हिला देता है।
COP30 की ये चाल ने आखिरकार वो बात चिल्ला दी, जिसे दुनिया सालों से टाल रही थी। अगर हेल्थ सेफ नहीं, तो कोई कंट्री क्लाइमेट सेफ नहीं। रिपोर्ट: निशांत सक्सेना।
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