बेलेम की उमस भरी हवा में COP30 का शोर गूँज ही रहा था कि तभी एक नई रिपोर्ट ने माहौल और गर्म कर दिया। रिपोर्ट बताती है कि तेल कंपनियों ने पिछले दस महीनों में ब्राज़ील को टार्गेट करते हुए Google Ads पर ऐसा पैसा लगाया कि सितंबर से अक्टूबर के बीच ऐसे विज्ञापनों में 2,900% की बढ़ोतरी दर्ज हुई। कहानी साफ़ है, COP शुरू होने से ठीक पहले Big Oil ने डिजिटल दुनिया में अपनी पकड़ मज़बूत करने की आख़िरी कोशिशें झोंक दीं।
रिपोर्ट क्या कहती है
Climate Action Against Disinformation (CAAD) और ब्राज़ील के Climainfo Institute की इस नई स्टडी ने साफ़ दिखाया कि Big Oil सिर्फ़ तेल नहीं बेच रहा, वह भरोसा भी खरीदना चाहता है।
● ब्राज़ील की सरकारी तेल कंपनी Petrobras ने अकेले 2025 के पहले दस महीनों में 665 Google Ads चलाए।
● अक्टूबर में वैश्विक स्तर पर तेल कंपनियों के Google Ads 218% बढ़ गए।
● Saudi Aramco ने 469% की छलांग लगाई और महीने में 10,000 से ज़्यादा विज्ञापन चलाए।
● ExxonMobil के ऐड 156% बढ़े।
● BP ने तो साल की शुरुआत की तुलना में 1,369% की बढ़त दर्ज की।
CAAD के कम्युनिकेशन को-चेयर फिलिप न्यूवेल ने कहा कि हर साल तेल कंपनियाँ ग्रीनवॉश और गलत जानकारी फैलाने पर करोड़ों उड़ाती हैं और Google जैसी Big Tech कंपनियाँ भी इससे खूब मुनाफ़ा कमाती हैं। उनके मुताबिक अब समय आ गया है कि इस “पैसे से बनाए गए भ्रम” पर सख्त कार्रवाई की जाए।
ये ऐड्स सिर्फ़ मार्केटिंग नहीं, रणनीति हैं
Climainfo की शोधकर्ता रेनाता रिबेरो का कहना है कि तेल कंपनियाँ COP30 को लेकर बेहद बेचैन हैं, क्योंकि यही वह मंच है जहाँ दुनिया फ़ैसला करेगी कि फ़ॉसिल फ़्यूल का भविष्य क्या होगा। इसीलिए Google Ads पर इतना पैसा लगाया गया।
उनके शब्दों में, “ये ऐड्स तेल कंपनियों की आख़िरी कोशिशें हैं। वे जानती हैं कि यह वह पल है जब दुनिया तय करेगी कि एनर्जी ट्रांज़िशन की राह कितनी तेज़ होगी।”
जानकारी पर हमला, भरोसे पर वार
C3DS के ट्रैविस कोएन ने चेतावनी दी कि ग्रीनवॉशिंग अब सिर्फ़ मार्केटिंग नहीं, बल्कि जलवायु सूचना की विश्वसनीयता पर सीधा हमला है। गलत और भ्रामक विज्ञापन लोगों को यह यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि तेल कंपनियाँ बदलाव का हिस्सा हैं, जबकि असल में वे तय फैसलों को धीमा करने की कोशिश में लगी हैं।
ACT Climate Labs की फ्लोरेंसिया लुजानी ने साफ़ कहा कि अब फ़ॉसिल फ्यूल विज्ञापनों को बैन करने की ज़रूरत है, क्योंकि कोई दूसरा सेक्टर ऐसा नहीं है जिसने दशकों तक जलवायु संकट को बढ़ाने और उससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों को छुपाने का काम किया हो।
रिपोर्ट में क्या-क्या मिला
रिसर्च में 42 कंपनियों के Google Ads का डेटा शामिल है, जिनमें 24 तेल कंपनियाँ हैं।
विश्लेषण में यह भी पाया गया कि कैसे हर बड़ी कंपनी COP30 से पहले अपनी इमेज चमकाने की कोशिश कर रही है, ताकि दुनिया के सामने “क्लीन” और “क्लाइमेट-फ्रेंडली” दिख सके, जबकि जमीन पर उनकी नीतियाँ पुरानी ही हैं।
आगे क्या?
COP30 में जहाँ एक तरफ़ देश जलवायु फंडिंग, ऊर्जा बदलाव और उत्सर्जन कटौती पर बात कर रहे हैं, वहीं डिजिटल दुनिया एक अलग युद्ध का मैदान बन गई है।
यह रिपोर्ट यही याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई सिर्फ़ प्रदूषण और नीतियों की नहीं, बल्कि भरोसे और सही जानकारी की लड़ाई भी है।
ब्राज़ील में पेड़-पौधों की छाँव और अमेज़न की धड़कन के बीच COP30 चल रहा है, और बाहर डिजिटल दुनिया में Big Oil अपनी आख़िरी चालें खेल रहा है।
अब गेंद सरकारों और नियामकों के पाले में है कि वे इस ग्रीनवॉश को रोकते हैं या इसे जलवायु संवाद का नया सामान्य बनने देते हैं। रिपोर्ट: निशांत सक्सेना
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