रतिराम श्रीवास, टीकमगढ़। राजनीतिक गलियारों में इन दिनों टीकमगढ़ ज़िले का जतारा विधानसभा क्षेत्र सुर्खियों में है। कारण है कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी की महासचिव किरन अहिरवार द्वारा बम्होरिकला और चंदेरा थानों की पुलिस कार्यप्रणाली पर सीधा हमला। किरन अहिरवार ने साफ चेतावनी दी है कि यदि दोनों थाना प्रभारियों का जल्द तबादला नहीं किया गया, तो वे एसपी कार्यालय के सामने बड़ा आंदोलन करेंगी।
यह वही किरन अहिरवार हैं, जो 2023 के विधानसभा चुनाव में महज 11216 वोटों के मामूली अंतर से बीजेपी विधायक हरिशंकर खटीक से पराजित हुई थीं। उस समय भी यह चुनाव दलित वर्ग की दो मजबूत राजनीतिक आवाजों के बीच मुकाबले के रूप में देखा गया था। अब, पराजय के बाद भी किरन अहिरवार अपनी राजनीतिक सक्रियता और आक्रामक तेवरों से जतारा क्षेत्र में विपक्ष की सबसे बड़ी आवाज बनकर उभरी हैं।
थाना प्रभारियों को लेकर उठा बवंडर
किरन अहिरवार का आरोप है कि बम्होरिकला थाना प्रभारी नीतू खटीक और चंदेरा थाना प्रभारी रश्मि जैन क्षेत्र में मनमानी कर रही हैं। किरन ने यह भी दावा किया है कि थानों में फर्जी प्रकरण पंजीबद्ध किए जा रहे हैं और आम जनता को न्याय मिलने के बजाय प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है।
गौरतलब है कि रश्मि जैन को हाल ही में गृह मंत्री से उत्कृष्ट सेवा के लिए सम्मानित भी किया गया है, जिससे इस मुद्दे में प्रशासनिक संवेदनशीलता और बढ़ जाती है। वहीं, नीतू खटीक की जातिगत पृष्ठभूमि को देखते हुए स्थानीय राजनीति में उनके नाम को लेकर पहले भी चर्चाएं होती रही हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप बनाम प्रशासनिक स्वायत्तता
किरन अहिरवार द्वारा थाना प्रभारियों के तबादले की मांग को कुछ लोग राजनीतिक दबाव मान रहे हैं, तो कुछ इसे जनहित में उठाया गया जरूरी कदम बता रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है –
"क्या अब पुलिस थानों में पदस्थापन नेताओं के इशारे पर होगा?"
यदि ऐसा होता है तो यह पुलिस की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर सीधा हमला है।
इस पूरे प्रकरण में विधायक हरिशंकर खटीक ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह मुद्दा आगामी चुनावों की जमीन तैयार कर रहा है – जहाँ दलित नेतृत्व, महिला सशक्तिकरण और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे केंद्र में होंगे।
किरन अहिरवार की रणनीति क्या कहती है?
किरन अहिरवार चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। चाहे सामाजिक मुद्दों को उठाना हो या महिला सुरक्षा को लेकर आवाज़ बुलंद करना – वे बीजेपी सरकार और खासतौर पर स्थानीय प्रशासन को खुली चुनौती देती रही हैं। पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर उनकी यह सीधी टक्कर आगामी नगर निकाय या विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा भी मानी जा रही है।
जतारा का यह मामला अब प्रशासनिक नहीं, बल्कि पूरी तरह राजनीतिक रंग ले चुका है। किरन अहिरवार ने अपनी हार के बावजूद यह जता दिया है कि वे क्षेत्र की राजनीति में अब भी बड़ी भूमिका में हैं। वहीं एसपी कार्यालय की चुप्पी और थाना प्रभारियों के ट्रांसफर पर सस्पेंस यह संकेत देता है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और तूल पकड़ सकता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या पुलिस कप्तान जनहित और निष्पक्षता की राह चुनते हैं या राजनीतिक दबाव में प्रशासनिक निर्णय लिए जाते हैं।
आपको याद दिला दे जनपद पलेरा महेबा चक्र 2 मे गाँधी जयंती के अवसर पर कांग्रेस पार्टी द्वारा दशहरा मिलन समारोह का आयोजन किया गया था, कॉग्रेस के मंच से किरण अहिरवार ने कहा था की 15 दिवस मे दोनों थाना प्रभारियों को नहीं हटाया गया तो धरना प्रदर्शन करेंगे इसी बात को लेकर एक बार एस पी से मिली एसपी कार्यालय से फिर 15 दिन का आश्वाशन मिला