अशोक नगर में सरकारी खर्चे पर सिंधिया परिवार की वीर गाथाएं: Bhopal Samachar

सिंधिया राज परिवार की आखिरी राजधानी ग्वालियर थी। भारत में लोकतंत्र की स्थापना के 70 साल बाद ग्वालियर के स्वयंभू महाराज श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर पर एक बार फिर अपना पॉलीटिकल डोमिनेशन स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इधर अशोकनगर में सरकारी खर्चे पर सिंधिया परिवार की वीर गाथाएं प्रदर्शित करने के लिए अधिकारियों को निर्देशित कर दिया गया है। 

अशोकनगर की वास्तुकला में राज परिवार की वीर गाथाएं झलकनी चाहिए: सिंधिया

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अशोकनगर के विकास कार्यों की समीक्षा बैठक को संबोधित किया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के मीडिया सेंटर से मिली जानकारी में लिखा है कि, केन्द्रीय मंत्री सिंधिया ने अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए कि सभी वास्तुकलाओं में ग्वालियर सहित मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक वीर गाथाओं की छवि दिखनी चाहिए। सौंदर्यीकरण में मध्य प्रदेश द्वारा विभिन्न काल खंडों में लड़ी गई लड़ाइयों, उनके संघर्षों और विजय गाथाओं की कहानी झलकनी चाहिए। इन कलाओं से स्पष्ट रूप से वीर योद्धाओं की महान गाथाओं को संदेश मिलने चाहिए। 

अशोक नगर के इतिहास में सिंधिया को किस प्रकार से याद करें

ऐतिहासिक प्रसंग नंबर वन: 1818 में सिंधिया ने बिना किसी कारण के चंदेरी पर कब्जा कर लिया था। राजा मोर प्रहलाद को बानपुर भागना पड़ा, लेकिन चंदेरी लोग आज भी उनको एवं उनके पुत्र राजवर्धन सिंह को चंदेरी का राजा कहते हैं। 1843 में मोर प्रह्लाद की मृत्यु के बाद मर्दन सिंह को बानपुर मिला, लेकिन सिंधिया को यह भी मंजूर नहीं था। 1844 के महाराजपुर युद्ध के बाद सिंधिया ने बानपुर पर ब्रिटिश अधिकारी की आपराधिक अधिकारिता थोप दी। अप्रैल 1857 में सिंधिया के इशारे पर ब्रिटिश अधिकारियों ने नानकपुर की जमीनें (मूल रूप से बानपुर की) जब्त कर लीं। इसके जवाब में राजवर्धन सिंह मर्दन सिंह ने तलवार उठा ली। 1857 में वैसे भी क्रांति शुरू हो गई थी। संघर्ष का ऐलान कर दिया। वह सफल होने वाले थे लेकिन तभी अंग्रेजों की मदद करने के लिए सिंधिया की सेना आ गई। 

ऐतिहासिक प्रसंग नंबर दो: 

चंदेरी पर कब्जा करने के बाद सिंधिया ने एक अच्छे राजा की तरह उसका पालन पोषण नहीं किया बल्कि राजा मर्दन सिंह को अपना राजा मनाने और उनका समर्थन करने के बदले में दंडित किया गया। 896-97 और 1899-1900 में अकाल पड़ गया। हजारों लोग भूख से मार रहे थे परंतु महाराज सिंधिया ने पर्याप्त राहत नहीं भेजी। हालांकि दिखावे के लिए कुछ राहत कार्य शुरू किए गए थे। 
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