कलेक्टर महोदय, आरटीआई आवेदन बार-बार लगाने वालों की सूची तैयार करने का आपका विचार स्वागत योग्य है। परंतु कुछ और सूचियों की जरूरत है:-
- एक सूची उन भ्रष्ट अधिकारियों की भी बनाएँ, जिनके दफ्तरों में बार-बार आरटीआई आवेदन लगाए जाते हैं।
- एक सूची उन भ्रष्ट कामों की भी बनाएँ, जिनकी जानकारी को बार-बार आरटीआई में छिपाने का प्रयास किया जाता है।
- एक सूची उन अधिकारियों की भी जारी करें, जो कहते हैं कि आरटीआई की वजह से “विकास कार्य” रुक रहे हैं।
- एक सूची उन अधिकारियों की भी बनानी चाहिए, जो आरटीआई लगाकर ब्लैकमेल करने वालों के विरुद्ध बीएनएस की धारा 351 के तहत एफआईआर दर्ज नहीं कराते। जबकि बीएनएस में एफआईआर दर्ज कराने के स्पष्ट प्रावधान हैं।
और एक सूची उन अधिकारियों की भी बननी चाहिए, जिनके पक्ष में कुछ तथाकथित आरटीआई आवेदक “संतुष्टि का प्रमाण पत्र” देकर, सूचना आयोग में अपीलों को खारिज करवाने का खेल खेलते हैं।
म.प्र. में सूचना आयुक्त रहते हुए मैंने कुछ आरटीआई आवेदक और अधिकारी के मैच फिक्सिंग के खेल को बेहद करीब से देखा और संभवतः मैं देश में एकमात्र सूचना आयुक्त रहा जिसने आरटीआई आवेदक के संतुष्टि प्रमाण पत्र के बावजूद अधिकारियों के विरुद्ध पेनल्टी लगाने की कार्रवाई की।
मुझे इस बात की भी छोटी-सी जिज्ञासा है कि वे कौन-से ऐसे पावन, पुनीत विकास कार्य हैं जिनके लेकर हमारे ईमानदार अधिकारी ब्लैकमेल हो रहे हैं।
वैसे, प्रशासन का इतना कीमती समय इतनी सारी सूचियाँ बनाने में नष्ट न हो, इसका एक सरल उपाय भी है:-
पिछले 19 वर्षों से आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 4 में स्पष्ट प्रावधान है कि सभी सार्वजनिक जानकारियाँ स्वतः पब्लिक डोमेन में उपलब्ध कराई जाएँ। अगर यह प्रावधान पूरी ईमानदारी से लागू कर दिया जाए, तो आरटीआई का टंटा ही खत्म हो जाएगा।
हाँ, ये बात अलग है कि जब प्रशासन के सारे कामकाज पारदर्शिता से पब्लिक के सामने आने लगेंगे, तो जिस “विकास कार्य” में तेजी लाने की बात की जाती है, वहाँ शायद मंदी का माहौल बन जाए। खैर, आप सूची बनाएँ। ये जो पब्लिक है सब जानती हैं 😎
सूचियों के इंतजार में।
राहुल सिंह, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त
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