बेंगलुरु, 30 अक्टूबर 2025: कर्नाटक के लिंगासुगुर में RSS कार्यक्रम में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारी प्रवीण कुमार केपी के निलंबन मामले में सरकार की किरकिरी हो गई है। कर्नाटक स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने गुरुवार को इस कार्रवाई पर अंतरिम स्टे लगा दिया। इसके अलावा हाई कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के उस आदेश को स्थगित कर दिया जिसके तहत सार्वजनिक स्थान पर शाखा को प्रतिबंधित किया गया था।
ट्रिब्यूनल ने संघ के स्वयंसेवक का निलंबन आपत्तिजनक माना
प्रवीण, जो पंचायत विकास अधिकारी के रूप में सेवा दे रहे हैं और साथ ही BJP विधायक मनप्पा डी वज्जल के पर्सनल असिस्टेंट भी हैं, ने 12 अक्टूबर को RSS की वर्दी पहनकर संगठन के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। इसके बाद राज्य सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया, जिसके खिलाफ उन्होंने ट्रिब्यूनल में अपील की थी। ट्रिब्यूनल की ज्यूडिशियल मेंबर एस वाई वटवती की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस अपील पर तुरंत सुनवाई करते हुए स्टे का आदेश पारित किया। बेंच ने राज्य सरकार को अपनी आपत्तियां दर्ज करने का निर्देश दिया है, जबकि मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को निर्धारित की गई है।
संघ की शाखा पर रोक वाला सरकारी आदेश भी स्थगित
इस बीच, RSS शाखाओं पर राज्य सरकार की कोशिशों को कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने भी झटका दिया है। 28 अक्टूबर को जस्टिस नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने सरकार के उस आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें बिना परमिशन के सरकारी जगहों, सड़कों या सार्वजनिक स्थलों पर RSS की शाखा लगाने और 10 से अधिक लोगों के जमावड़े पर रोक लगाई गई थी। कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या यह आदेश कुछ और उद्देश्य हासिल करने के लिए है? बेंच ने सरकार को दलीलें पेश करने के लिए सिर्फ एक दिन का समय दिया और होम डिपार्टमेंट, DGP तथा हुबली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किए।
कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध लगाया था
यह आदेश वास्तव में कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे के सुझाव से प्रेरित था, जिन्होंने हाल ही में सार्वजनिक जगहों पर RSS की गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। कैबिनेट ने 18 अक्टूबर को इस पर फैसला लेते हुए स्पष्ट किया कि बिना अनुमति के पथ संचलन या शाखाओं की अनुमति नहीं होगी। हालांकि, इस फैसले के खिलाफ हुबली की पुनश्चितना सेवा संस्था ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसकी पैरवी सीनियर एडवोकेट अशोक हरनहल्ली ने की।
सार्वजनिक स्थान पर संघ की शाखा, संवैधानिक अधिकार
हरनहल्ली ने तर्क दिया कि यह सरकारी ऑर्डर संविधान के मौलिक अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा के अधिकार, का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने कहा, "अगर कोई राजनीतिक पार्टी या समूह पार्क या मैदान में इकट्ठा होता है और 10 से ज्यादा लोग होते हैं, तो इसे गैर-कानूनी ठहराना क्या तर्कसंगत है? जब पहले से पुलिस एक्ट लागू है, तो नया आदेश क्यों?" कोर्ट ने ऑर्डर का विश्लेषण करते हुए स्पष्ट किया कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को किसी भी प्रशासनिक निर्देश से सीमित या छीना नहीं जा सकता। ऑर्डर में सड़कों, पार्कों, मैदानों और झीलों जैसे सार्वजनिक स्थलों पर बिना अनुमति के 10 या इससे अधिक लोगों के जमावड़े को अपराध घोषित करने का प्रावधान था, जिसे कोर्ट ने फिलहाल रोका दिया है।
कर्नाटक में RSS के बहाने लोकतंत्र को कंट्रोल करने की कोशिश
पिछले कुछ हफ्तों से कर्नाटक में RSS की गतिविधियों पर नियंत्रण की मांग तेज हो रही थी, जो राजनीतिक तनाव का रूप ले चुकी है। राज्य सरकार ने संघ की गतिविधियों को कंट्रोल करने के लिए नए नियम बनाने का प्रयास किया, लेकिन न्यायिक हस्तक्षेप ने इसे चुनौती दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न केवल RSS तक सीमित है, बल्कि लोकतंत्र में व्यक्तिगत अधिकारों और सरकारी विनियमन के बीच संतुलन की व्यापक बहस को जन्म देगा। प्रवीण कुमार की तस्वीर, जिसमें वे RSS कार्यक्रम में शामिल दिख रहे हैं, इस विवाद का प्रतीक बनी हुई है। मामला अभी लंबा खिंच सकता है, और अगले सुनवाईयों पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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