हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश ने एक कर्मचारी विवाद का निपटारा करते हुए स्पष्ट किया कि, भ्रष्टाचार के कारण बर्खास्त कर दिए गए कर्मचारी की ग्रेच्युटी को जप्त नहीं किया जा सकता है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि, किसी भी विभाग द्वारा निर्धारित किए गए निर्देश, विनियम ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 पर लागू नहीं होते। ग्रेच्युटी का भुगतान केवल अधिनियम के अनुसार ही रोका जा सकता है। किसी विभागीय नियम अथवा निर्देश के आधार पर ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं रोका जा सकता है।
बबीता बनाम मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक
बबीता के पति मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक में नौकरी करते थे। इस दौरान उनके ऊपर ₹100000 के गबन का आरोप लगा।। जांच में बबीता के पति भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए। बैंक ने उनसे ₹100000 वापस जमा करवाया और उनको सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ डिपार्टमेंट में अपील दाखिल की। उनकी अपील को खारिज कर दिया गया। इसके बाद बबीता के पति की मृत्यु हो गई। बबीता ने अपने पति की ग्रेच्युटी के लिए आवेदन किया तो बैंक ने यह बताते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि, ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (1972 का अधिनियम) की धारा 4(6)(बी) के साथ बैंक के सेवा विनियम (विनियम) के खंड 72(ई) के तहत बर्खास्तगी के मामलों में यह देय नहीं है।
बबीता ने हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की। बबीता के वकील ने हाई कोर्ट को बताया कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम की धारा 4(6) में इस प्रकार का प्रावधान है:-
a) अगर किसी कर्मचारी की सेवाएं किसी अनुशासनहीनता, दंगा, हिंसा, या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे कारणों से बर्खास्त (Dismissed) की गई हैं, तो नियोक्ता उसके द्वारा की गई क्षति (Loss) की भरपाई तक की ग्रेच्युटी राशि रोक सकता है।
उदाहरण: अगर कर्मचारी ने कंपनी की मशीन या वाहन को नुकसान पहुंचाया है, तो उतनी राशि की ग्रेच्युटी काटी जा सकती है।
b) अगर कर्मचारी को किसी नैतिक अधमता (moral turpitude) वाले अपराध में या कंपनी के अनुशासन या सुरक्षा नियमों का गंभीर उल्लंघन करने के कारण बर्खास्त किया गया है, तो नियोक्ता उसकी पूरी ग्रेच्युटी जब्त कर सकता है।
उदाहरण: अगर किसी कर्मचारी ने कंपनी की गोपनीय जानकारी चोरी की, गबन किया, या आपराधिक गतिविधि की, तो पूरी ग्रेच्युटी जब्त की जा सकती है।
बैंक के वकील की दलील
मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक के अधिवक्ता ने हाई कोर्ट को बताया कि ग्रेच्युटी अधिनियम की धारा 4(1) और धारा 4(6) बी(ii) के तहत कर्मचारी की ग्रेच्युटी की राशि को पूरी तरह से जप्त किया जा सकता है क्योंकि कर्मचारी के कार्य में नैतिक अधमता शामिल थी। जो उसके द्वारा ऑन ड्यूटी की गई थी।
कर्मचारी के वकील की दलील
बबीता के वकील ने बताया की सेवा विनियमों की धारा 72 के प्रावधान में स्पष्ट है कि, वित्तीय हानि के मामले को छोड़कर कदाचार के कारण बर्खास्त किए गए किसी भी कर्मचारी की ग्रेच्युटी जप्त नहीं की जा सकती है। क्योंकि कर्मचारियों द्वारा गबन की राशि एक लाख रुपए जमा करवा दी गई थी, इसलिए बैंक को कोई नुकसान नहीं हुआ है। ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाना चाहिए।
बर्खास्त कर्मचारियों की ग्रेच्युटी मामले में हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक जैन ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि बैंक द्वारा बनाए गए कार्यकारी निर्देश, विनियम ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के स्थान पर लागू नहीं हो सकते। यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया बनाम सी.जी. अजय बाबू एम मामले में स्पष्ट हुआ है कि, यदि कर्मचारी के खिलाफ सेवा नियमों के तहत कार्रवाई की गई है और भ्रष्टाचार के लिए कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं करवाया गया है तो, ऐसा कर्मचारी नैतिक अधमता के आरोप से मुक्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में धारा 4(6)(बी)(ii) लागू नहीं होती और इस धारा के तहत ग्रेच्युटी जब्त नहीं की जा सकती।
"चूंकि कर्मचारी के विरुद्ध कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया गया, इसलिए बैंक ग्रेच्युटी के भुगतान से इनकार करने के लिए अधिनियम की धारा 4(6) का सहारा नहीं ले सकता। वह अधिक से अधिक बैंक को हुए नुकसान की सीमा तक ग्रेच्युटी जब्त कर सकता है। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि कथित गबन की राशि कर्मचारी द्वारा बैंक को वापस कर दी गई। इसलिए याचिकाकर्ता के मृत पति को देय ग्रेच्युटी से कोई वसूली भी नहीं की जा सकती।"
WP 21393 of 2021: Section 4(6)(b)(ii) of the Payment of Gratuity Regulations Act, 1972. Babita versus Central madhya Pradesh Gramin Bank. Judgement date 6 October 2025.