मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों के लिए एक नियम बदलने की तैयारी शुरू हो गई है। इसका फायदा सरकारी कर्मचारियों को भी होगा और कम से कम 10000 सरकारी कर्मचारियों की सेवा समाप्त होने से बच जाएगी। यह नियम राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पहले ही बदल चुका है। अब मध्य प्रदेश में परिवर्तन की तैयारी चल रही है।
सरकारी नौकरियों में दो बच्चों की पाबंदी खत्म कर दी जाएगी
भोपाल के प्रतिष्ठित पत्रकार श्री अनिल गुप्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार सरकारी नौकरियों में 'दो बच्चों की पाबंदी' की पुरानी शर्त को हटाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। 26 जनवरी 2001 को लागू हुई इस नीति को समाप्त करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक, जल्द ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा। इससे नौकरीपेशा अधिकारियों और कर्मचारियों को राहत मिलेगी, क्योंकि तीसरा बच्चा होने पर अब उन्हें नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जा सकेगा।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था
मंत्रालय के उच्चाधिकारियों का कहना है कि यह कदम उच्च स्तर से मिले निर्देशों के बाद उठाया जा रहा है। विभिन्न परिस्थितियों का आकलन करने के बाद अब कैबिनेट स्तर पर सहमति बन गई है। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अलग-अलग मंचों पर राज्य सरकार को कई बार इस दिशा में संकेत दिए थे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में जनसंख्या नीति पर बोलते हुए कहा था कि भारत की पॉलिसी के तहत कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए, लेकिन इससे ज्यादा नहीं, क्योंकि इससे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे संसाधनों पर बोझ बढ़ता है। सूत्र बताते हैं कि भागवत के इस बयान ने ही इस बदलाव की प्रक्रिया को गति दी।
पुराने केसों का क्या होगा?
नई व्यवस्था लागू होने के बाद तीसरी संतान से जुड़े लंबित केसों को स्वतः बंद मान लिया जाएगा। चाहे वे न्यायालयों में हों या विभागीय जांचों में, इन पर अब कोई कार्रवाई नहीं होगी। हालांकि, 2001 के बाद जिन कर्मचारियों पर इस आधार पर पहले ही एक्शन लिया जा चुका है या वे नौकरी से निकाल दिए गए हैं, उनके मामलों पर कोई पुनर्विचार नहीं होगा। यह फैसला सख्ती से लागू रहेगा।
कौन से विभाग सबसे ज्यादा प्रभावित?
इस बदलाव से सबसे ज्यादा असर मेडिकल एजुकेशन, हेल्थ, स्कूल एजुकेशन और हायर एजुकेशन विभागों पर पड़ेगा। अनुमान के मुताबिक, ऐसे केसों की संख्या 8 से 10 हजार के बीच हो सकती है। मेडिकल एजुकेशन विभाग की तो करीब 12 शिकायतें सामान्य प्रशासन विभाग तक पहुंच चुकी हैं, जिनका फैसला बाकी है। इतिहास में एक जज की नौकरी भी इसी शर्त के चलते गई थी।
पड़ोसी राज्यों ने पहले ही हटा लिया
मप्र के पड़ोसी राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने यह पाबंदी पहले ही समाप्त कर दी है। राजस्थान ने 11 मई 2016 को, जबकि छत्तीसगढ़ ने 14 जुलाई 2017 को इस नीति को खत्म किया। अब वहां तीन बच्चों वाले लोग भी सरकारी नौकरियों में बेधड़क काम कर रहे हैं।
प्रजनन दर का आंकड़ा: मप्र राष्ट्रीय औसत से ऊपर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार, मप्र की टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) 2.9 है, जो शहरी इलाकों में 2.1 और ग्रामीण क्षेत्रों में 2.8 के आसपास है। यह राष्ट्रीय औसत 2.1 से काफी अधिक है। देश में बिहार टॉप पर है, जहां टीएफआर 3.0 है, यानी एक महिला औसतन तीन बच्चों को जन्म देती है। उसके बाद मप्र और मेघालय (2.9), उत्तर प्रदेश (2.4), झारखंड (2.3) तथा मणिपुर (2.2) जैसे राज्य हैं।
राज्य में भोपाल की प्रजनन दर सबसे कम 2.0 है, जबकि पन्ना (4.1), शिवपुरी (4.0) और बड़वानी (3.9) जैसे जिलों में यह सबसे ज्यादा है। यह बदलाव जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन की नई सोच को दर्शाता है, लेकिन पुरानी कार्रवाइयों को बरकरार रखने से कई परिवारों को निराशा हाथ लग सकती है। सरकार का अगला कदम कैबिनेट मीटिंग पर टिका है।