सबसे ज्यादा पति-पत्नी और पिता-पुत्र के बारे में कानूनी प्रावधान की चर्चा होती है परंतु आज दीपावली की भाई दूज के अवसर पर हम आपको बताते हैं कि भारतीय न्याय संहिता में कुछ धाराएं और प्रावधान ऐसे हैं जो भाई-बहन को प्रभावित करते हैं।
BNS: भाई बहन को प्रभावित करने वाली धाराएं
Kidnapping from lawful guardianship मामले में अब बहन के साथ भाई को भी संरक्षण मिल गया है। धारा 137(1)(b) में, व्यपहरण (Kidnapping) के संदर्भ में IPC के पुराने प्रावधान को बदला गया है। IPC में पुरुष बच्चे के लिए 16 वर्ष और महिला बच्चे के लिए 18 वर्ष की अलग-अलग उम्र सीमा थी, जिसे BNS की धारा 137(1)(b) में 'किसी बच्चे' (any child) के साथ बदल दिया गया है। इस प्रकार, 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों (लड़कों और लड़कियों) को समान कानूनी सुरक्षा मिलती है।
Kidnapping from lawful guardianship की परिभाषा
इसका मतलब हुआ कि यदि 18 साल से कम उम्र की किसी भी बच्चे को उसके पेरेंट्स की अनुमति के बिना कोई व्यक्ति अपने साथ ले जाता है, फिर चाहे वह कोई रिश्तेदार ही क्यों ना हो, फिर चाहे बच्चों की सहमति ही क्यों ना हो, तो यह “Kidnapping from lawful guardianship” कहलाता है। इस प्रकार भारतीय न्याय संहिता में भाई और बहन के बीच में भेदभाव को खत्म कर दिया गया है।
Procuration of child
भारतीय दंड संहिता में केवल लड़की को ही संरक्षित किया गया था परंतु भारतीय न्याय संहिता की धारा 96 में 'नाबालिग लड़की' (minor girl) शब्दों को 'बच्चे' (child) से बदल दिया गया है। यह बदलाव पीड़ित के संबंध में लैंगिक तटस्थता लाता है और 18 वर्ष से कम उम्र के लड़के और लड़की दोनों को अवैध संबंध बनाने के लिए मजबूर किए जाने या बहकाए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है।
Failure to care for a helpless person
यदि भाई की उम्र अधिक है और उसके ऊपर अपनी बहन (जो युवावस्था, मानसिक अस्वस्थता या शारीरिक कमजोरी के कारण असहाय है) के पालन पोषण की जिम्मेदारी है। तब ऐसी स्थिति में यदि वह अपना विधि द्वारा निर्धारित कर्तव्य पूरा नहीं करता है तो अपराधी माना जाएगा और दंडित किया जाएगा। यह प्रावधान समान रूप से बहन के ऊपर भी लागू होता है। इस प्रकार अब भाई और बहन दोनों की जिम्मेदारी है कि जो भी बड़ा है वह अपने से छोटे का ध्यान रखेगा और उसकी मदद करेगा।
Harbouring Offender
भाई बहन के बीच में अटूट प्रेम होता है और भारत में यह अटूट प्रेम उस समय सबसे ज्यादा दिखाई देता है जब भाई के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज हो जाए। गिरफ्तारी से बचने के लिए भाई अक्सर अपनी विवाहित बहन के घर जाकर छुप जाता है। माना जाता है कि, अपराधी को छिपाने (Harbouring Offender) से संबंधित धारा 249 और 253 में अपवाद के तहत बहन को अपने भाई को गिरफ्तारी से बचने और छुपाने का अधिकार मिल जाता है। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। यह अपवाद केवल पत्नी और यदि पत्नी के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है तो पति के लिए लाभदायक होता है। पति-पत्नी के अलावा किसी तीसरे रिश्ते को इस अपवाद का लाभ नहीं मिलता। यानी अपने फरार भाई को घर में छुपाना भी एक अपराध है।
भाई को अपनी बहन की रक्षा का कानूनी अधिकार
एक भाई को अपनी बहन की रक्षा करने का अधिकार है, क्योंकि भारतीय न्याय संहिता आत्मरक्षा के अधिकार को हर व्यक्ति के लिए विस्तारित करती है, न कि केवल स्वयं की रक्षा तक सीमित रखती है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) में निजी प्रतिरक्षा (Right of Private Defence) का अधिकार निम्नलिखित रूप से वर्णित है:
1. निजी प्रतिरक्षा का सामान्य अधिकार (General Right of Private Defence)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 35 यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है, (धारा 37 में निहित प्रतिबंधों के अधीन), कि वह रक्षा करे:
• (a) अपने स्वयं के शरीर की, और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की, मानव शरीर को प्रभावित करने वाले किसी भी अपराध के विरुद्ध।
• (b) संपत्ति की भी रक्षा का अधिकार दिया गया है।
चूँकि बहन "किसी अन्य व्यक्ति" की श्रेणी में आती है, इसलिए भाई को अपनी बहन के शरीर को किसी भी ऐसे अपराध से बचाने का कानूनी अधिकार प्राप्त है जो मानव शरीर को प्रभावित करता हो।
2. आत्मरक्षा के अधिकार की सीमाएँ और दायरा
यह अधिकार असीमित नहीं है, और यह BNS की धारा 37 में निर्दिष्ट प्रतिबंधों के अधीन है:
A. प्रतिबंध (Restrictions - धारा 37)
आत्मरक्षा का अधिकार निम्नलिखित मामलों में मौजूद नहीं होता है:
• यदि लोक प्राधिकारियों (public authorities) के संरक्षण का सहारा लेने के लिए समय है [37(1)(c), 350]।
• आत्मरक्षा के उद्देश्य के लिए जितना आवश्यक है उससे अधिक हानि पहुँचाने तक यह अधिकार किसी भी मामले में विस्तारित नहीं होता है [37(2), 350]।
B. मृत्यु कारित करने तक अधिकार का विस्तार (Right extending to causing death - धारा 38)
धारा 35 के तहत रक्षा का अधिकार, धारा 37 में निर्दिष्ट प्रतिबंधों के अधीन, हमलावर की स्वेच्छा से मृत्यु कारित करने या कोई अन्य हानि पहुँचाने तक विस्तारित होता है, यदि हमला निम्नलिखित प्रकार का हो:
• ऐसा हमला जिससे यह आशंका हो कि अन्यथा मृत्यु हो जाएगी [39(a), 352(a)]।
• ऐसा हमला जिससे यह आशंका हो कि अन्यथा घोर उपहति (grievous hurt) होगी [39(b), 353(b)]।
• बलात्संग (rape) करने के इरादे से किया गया हमला [40(c), 353(c)]।
• अपहरण (kidnapping) या व्यपहरण (abducting) करने के इरादे से किया गया हमला [40(e), 353(e)]।
• एसिड फेंकने या देने का कृत्य या प्रयास जिससे घोर उपहति की आशंका हो [41(g), 354(g)]।
यदि आपकी बहन पर उपरोक्त में से कोई भी गंभीर हमला हो रहा है, तो भाई को अपनी बहन की रक्षा में, हमलावर की मृत्यु कारित करने का अधिकार प्राप्त है।
C. मृत्यु के अलावा अन्य हानि (Harm other than death - धारा 39)
यदि हमला धारा 38 में निर्दिष्ट विवरणों में से नहीं है, तो शरीर की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार हमलावर की स्वेच्छा से मृत्यु कारित करने तक विस्तारित नहीं होता, बल्कि यह धारा 37 में निर्दिष्ट प्रतिबंधों के अधीन, मृत्यु के अलावा कोई अन्य हानि पहुँचाने तक विस्तारित होता है।
संक्षेप में, कानून भाई-बहन के रिश्ते में सुरक्षा को प्राथमिकता देता है, लेकिन इसका प्रयोग केवल खतरे की सीमा तक ही किया जाना चाहिए। ✍️लेखक: उपदेश अवस्थी, पत्रकार एवं विधि सलाहकार। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article.
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