BHOPAL में अपर-मौसूँन के कारण संक्रमण का खतरा, पढ़िए बच्चों को बचाने के लिए क्या करें

मध्य भारत में अक्टूबर में मॉनसून लगभग समाप्ति की ओर होता है, लेकिन इस साल (2025) कुछ इलाकों में अपर-मौसूँन बारिश या दुर्लभ वर्षा की संभावना बनी हुई है। दिन का तापमान अब 30-32 °C के आसपास हो सकता है, रातें हल्की-ठंडी लेकिन नमी बनी रह सकती है। इसके कारण भोपाल में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। इस न्यूज़ में हम आपको बता रहे हैं कि, किस प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ गया है और बच्चों को बचाने के लिए क्या करना चाहिए। ताकि दीपावली पर कोई अप्रिय स्थिति ना बने। जो लोग "अपर-मौसूँन" नहीं जानते उनके लिए "अपर-मौसूँन क्या होता है" नॉलेज भी है।

भोपाल में दीपावली के अवसर पर संभावित मौसमी बीमारी

बारिश के बाद जल-जमाव, नमी बढ़ने से मच्छर-जनित रोग (जैसे डेंगू बुखार, हड्डी तोड़ बुखार, मलेरिया) का खतरा बढ़ दया है। समकालीन अध्ययन बताते हैं कि मॉनसून-उपरोक्त बारिश का मौसम ऐसे रोगों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाता है। नमी अधिक होने और तापमान में उतार-चढ़ाव होने से वायरल फ्लू/सर्दी-खाँसी भी अंदर-बाहर में आसानी से फैल सकती है। बारिश और पानी जमा होने से जल-जनित रोग जैसे पेट दर्द, दस्त, टाइफॉइड आदि बढ़ सकते हैं। 

भोपाल में दीपावली पर मौसमी बीमारी से बचने का तरीका

  • घर और आसपास खुले पानी के टैंक, जमाव वाले कबाड़, गीले स्टैंडिंग पानी सुनिश्चित करें कि वहां मच्छर न पनपें। पानी जल्दी बदला जाए।
  • शाम-बाद या बारिश के बाद बाहर निकलते समय मच्छरदानी, रिपेलेंट लॉशन, हल्के-पुराने कपड़े (लंबी आस्तीन) का प्रयोग करें।
  • तय-समय पर घरेलू स्वच्छता रखें – घर के बाहर गीले कपड़े-गाय-पशु-औजार सड़े न रहें।
  • खाने-पीने की स्वच्छता विशेष रूप से देखें: उबला पानी पीएँ, बाहर का तेलिया/अनजान स्रोत का खाना सावधानी से लें।
  • यदि बुखार, थकान, अचानक वार्म-बदर-शरीर में दर्द जैसी समस्या हो तो समय पर डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि मच्छर-जनित रोगों में समय पर इलाज बेहद अहम है। 

अपर-मौसून क्या होता है

जब दक्षिण-पश्चिम मानसून (South-West Monsoon) जो जून से सितंबर तक भारत में बारिश लाता है, धीरे-धीरे वापस लौटने लगता है, तब जो अवधि आती है उसे अपर-मौसून कहा जाता है। यह लगभग सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के प्रारंभ तक चलता है।

समय और दिशा

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून पहले उत्तर-पश्चिम भारत (राजस्थान, पंजाब, हरियाणा) से हटना शुरू करता है।
  • फिर यह मध्य भारत (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र) से होकर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी भारत की ओर पीछे हटता है।
  • अंततः यह दक्षिण भारत के तटीय इलाकों (तमिलनाडु, आंध्र, पुडुचेरी, केरल) में वापसी के दौरान हल्की-मध्यम बारिश कराता है।

अपर-मौसून की मुख्य विशेषताएँ

हवा की दिशा बदल जाती है, दक्षिण-पश्चिम की जगह उत्तर-पूर्वी हवाएँ (North-East Winds) चलने लगती हैं।
बारिश कम होती है, लेकिन कुछ इलाकों में गर्जन-तूफान वाली बारिश (Thunder Showers) हो सकती है।
तापमान में उतार-चढ़ाव शुरू हो जाता है, दिन में हल्की गर्मी और रात में ठंडक बढ़ने लगती है।
नमी (Humidity) अब भी बनी रहती है, जिससे वायरल इंफेक्शन और मच्छरों का खतरा बढ़ जाता है।

कहाँ पर सबसे ज़्यादा असर दिखता है?

उत्तर और मध्य भारत में: बारिश लगभग रुक जाती है, लेकिन हवा ठंडी और शुष्क हो जाती है।
दक्षिण-पूर्व भारत (विशेषकर तमिलनाडु, पुडुचेरी, दक्षिण आंध्र): इस समय भारी वर्षा होती है, क्योंकि यहाँ “नॉर्थ-ईस्ट मॉनसून” सक्रिय हो जाता है। इसलिए इसे “तमिलनाडु मॉनसून” भी कहा जाता है।

स्वास्थ्य पर असर
अपर-मौसून के दौरान तापमान, नमी और हवा की दिशा में तेज़ बदलाव के कारण:
  1. सर्दी-जुकाम, वायरल बुखार, डेंगू, मलेरिया जैसी मौसमी बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। 
  2. त्वचा संक्रमण और फंगल इंफेक्शन भी अधिक होते हैं क्योंकि नमी बनी रहती है।

सावधानी के उपाय

  1. बदलते मौसम में शरीर को ढककर रखें, ठंडी हवा से बचें।
  2. पानी उबालकर पिएँ, मच्छरों से सुरक्षा रखें।
  3. रात में तापमान गिरने पर हल्का गर्म कपड़ा पहनें।
  4. बच्चों और बुजुर्गों को अचानक ठंडी या नमी वाली हवा से बचाएँ।
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