नई दिल्ली, 23 अक्टूबर 2025: बैंकिंग सिस्टम में ग्राहकों की सुविधा को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, केंद्र सरकार ने बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 के तहत नामांकन से जुड़े प्रमुख प्रावधानों को 1 नवंबर 2025 से लागू करने की अधिसूचना जारी की है। यह बदलाव जमाकर्ताओं को अपनी पसंद के मुताबिक नामांकन चुनने की आजादी देगा, साथ ही दावा सेटलमेंट प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी और कुशल बनाएगा।
15 अप्रैल 2025 को राजपत्र में अधिसूचित किया गया था
अधिनियम को 15 अप्रैल 2025 को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किया गया था, जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक एक्ट 1934, बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1955 और बैंकिंग कंपनियों एक्विजिशन एक्ट्स 1970 व 1980 जैसे पांच कानूनों में कुल 19 संशोधन शामिल हैं। अधिसूचना के अनुसार, इन प्रावधानों को केंद्र सरकार ने धारा 10, 11, 12 और 13 के तहत 1 नवंबर से प्रभावी घोषित किया है। इससे पहले, 1 अगस्त 2025 को धारा 3 से 5 और 15 से 20 तक के कुछ हिस्सों को लागू किया जा चुका था।
बैंकिंग कानून संशोधन: सिर्फ क्रमिक नामांकन ही वैलिड होगा
इन नई सुविधाओं का फोकस डिपॉजिट अकाउंट्स, सेफ कस्टडी आइटम्स और सेफ्टी लॉकर कंटेंट्स पर है। सरल शब्दों में कहें तो, अब बैंक कस्टमर्स एक से ज्यादा लोगों को नामांकित कर सकेंगे, अधिकतम चार तक। यह Simultaneous nomination (एक साथ नामांकन) या Sequential nomination (क्रमिक नामांकन) के रूप में हो सकता है। उदाहरण के लिए, डिपॉजिट अकाउंट्स में आप चार नामित व्यक्तियों को हिस्सेदारी के प्रतिशत के साथ चुन सकते हैं, ताकि उनकी मौत के बाद फंड्स का वितरण साफ-सुथरा और निष्पक्ष हो। वहीं, सेफ कस्टडी या लॉकर के लिए सिर्फ क्रमिक नामांकन ही वैलिड होगा, जहां अगला नामित व्यक्ति तभी सक्रिय होगा जब पिछला चला जाए।
इससे जमाकर्ताओं को अपनी फैमिली या ट्रस्टेड लोगों के लिए प्लानिंग आसान हो जाएगी, और बैंकों में क्लेम सेटलमेंट की प्रक्रिया में एकरूपता आएगी। बैंकिंग कंपनी (नामांकन) नियम, 2025 में इन प्रक्रियाओं, जैसे नामांकन जोड़ना, रद्द करना या अपडेट करना, के स्टेप्स और फॉर्म्स का डिटेल दिया गया है, जो जल्द ही सभी बैंकों में लागू होगा।
कुल मिलाकर, यह संशोधन बैंकिंग सेक्टर में गवर्नेंस को मजबूत करने, रिपोर्टिंग में यूनिफॉर्मिटी लाने, डिपॉजिटर्स और इनवेस्टर्स की सेफ्टी बढ़ाने और सरकारी बैंकों की ऑडिट क्वालिटी सुधारने पर केंद्रित है। साथ ही, कोऑपरेटिव बैंकों में डायरेक्टर्स के टर्म को रेशनलाइज करने जैसे बदलाव भी इसमें हैं। ग्राहक सुविधा को बढ़ावा देने के इस प्रयास से आम आदमी को बैंकिंग ज्यादा यूजर-फ्रेंडली लगेगी, और फाइनेंशियल प्लानिंग में विश्वास बढ़ेगा।
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