ज्योतिरादित्य सिंधिया ने नरेंद्र सिंह तोमर को ग्वालियर चंबल से खदेड़ दिया है। ग्वालियर पूर्व, जहां से नरेंद्र सिंह अपने सुपुत्र को चुनाव लड़वाना चाहते हैं; सिंधिया, आशीष अग्रवाल को प्रॉमिस कर चुके हैं। इतनी तनावपूर्ण स्थिति के बाद भी नरेंद्र सिंह तोमर, सुरखी पर हमला क्यों नहीं करते जबकि सब जानते हैं कि यदि सुरखी के जमीदार को खत्म कर दिया जाए तो जय विलास पैलेस की जड़ें हिल जाएंगी।
गोविंद सिंह राजपूत, कैबिनेट मंत्री तो दूर की बात चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे
हाई कोर्ट में गोविंद सिंह राजपूत के खिलाफ गंभीर मामला चल रहा है। राजकुमार सिंह की याचिका में केवल आरोप नहीं लगे हैं बल्कि डॉक्युमेंट्री एविडेंस भी है। याचिकाकर्ता ने 64 जमीनों की रजिस्ट्री और खसरे कोर्ट में पेश किए। इनका ब्योरा मंत्री के हलफनामे में नहीं है। यदि इस मामले में गोविंद सिंह राजपूत दोषी पाए जाते हैं तो उनका चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। पॉलिटिक्स में सब जानते हैं कि यदि गोविंद सिंह राजपूत, कैबिनेट मंत्री नहीं रहे तो जय विलास पैलेस के बगीचे सूख जाएंगे। सरकार जानबूझकर चुनाव आयोग को जानकारी नहीं दे रही है, क्योंकि यदि सरकार ने जानकारी दे दी तो याचिका में संलग्न किए गए डॉक्यूमेंट का वेरिफिकेशन हो जाएगा।
सिंधिया से बदला लेने, नरेंद्र सिंह तोमर के पास सबसे अच्छा मौका है
यह सबसे अच्छा मौका है जब सिंधिया की ताजा हमले से घायल नरेंद्र सिंह तोमर, कानून को अपना काम करने के लिए सरकारी दबाव से मुक्त करवा सकते हैं। सब जानते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो श्रीमंत महाराज साहब, न केवल चंबल पर अपने दावे को भूल जाएंगे बल्कि ग्वालियर पूर्व में नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे का प्रचार भी करेंगे।
नरेंद्र सिंह तोमर सुरखी पर हमला क्यों नहीं करते?
यह सबसे बड़ा प्रश्न है और इसके जवाब में वह पॉलिटिक्स छुपी हुई है जिसने दिग्विजय सिंह को बलवान और बाकी ठाकुरों को बर्बाद कर दिया है। मामला पार्टी का नहीं है, मामला गुटबाजी का भी नहीं है, मामला जातिवाद का है। नरेंद्र सिंह तोमर और गोविंद सिंह राजपूत, दोनों क्षत्रिय समाज से हैं। दिग्विजय सिंह इनके घोषित मुखिया हैं और एक अदृश्य शक्ति सबको नियंत्रित करती है। यही अदृश्य शक्ति, नरेंद्र सिंह तोमर और गोविंद सिंह राजपूत को एक दूसरे से दूर रखती है। ✒ उपदेश अवस्थी।