केरल की हाईकोर्ट ने मुस्लिम समाज में बहु विवाह के अधिकार का युक्तियुक्तकरण कर दिया है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी मुसलमान को एक से अधिक निकाह करने का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने मुस्लिम समाज के धार्मिक नेताओं और प्रबुद्ध जनों से अपील की है कि, वह इस प्रथा को बंद करने के लिए अभियान शुरू करें और सरकार को निर्देश दिए हैं की बहु विवाह से पीड़ित महिलाओं की रक्षा के लिए कदम उठाए।
बहुविवाह की शिकार महिलाओं की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य
हाई कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के अधिकांश लोग एक पत्नी वाले परिवार को मान्यता देते हैं। भले ही उनके पास एक से अधिक पत्तियों और परिवारों के पालन पोषण के ही लिए पर्याप्त धन होता है। यही पवित्र कुरान की भी सच्ची भावना है। मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग जो पवित्र कुरान की आयतों को बुलाकर बहु विवाह प्रथा का पालन कर रहे हैं उन्हें मुस्लिम समुदाय के धार्मिक नेताओं और समाज के प्रबुद्ध वर्ग द्वारा शिक्षित किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में बहु विवाह, शिक्षा की कमी और Muslim customary laws की जानकारी के अभाव के कारण होता है। हाई कोर्ट ने सरकार को परामर्श दिया कि उन्हें बहुविवाह (polygamy) की शिकार महिलाओं की रक्षा करना चाहिए। राज्य सरकार का यह कर्तव्य भी है कि यदि कोई अंधा व्यक्ति जो मस्जिद के सामने भी मांग रहा है और मुसलमान भी है लेकिन मूल सिद्धांतों की जानकारी के बिना बार-बार निकाह करता जा रहा है उसे उचित परामर्श दिया जाए। उपरोक्त तमाम टिप्पणियां केरल उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हीकृष्णन द्वारा की गई।
हाई कोर्ट के सामने एक मामला प्रस्तुत हुआ था। इसमें एक महिला ने अपने पति से भरण पोषण की मांग की है। मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट हुआ कि महिला का पति, अपनी आंखों से नहीं देख सकता और मस्जिद के सामने भीख मांग कर जीवन यापन करता है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे व्यक्ति को भरण पोषण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, लेकिन समाज का सिस्टम ठीक किया जा सकता है। इसके लिए सरकार, मुस्लिम समाज के धार्मिक नेता और मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को मिलकर काम करना पड़ेगा।