मध्य प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने बताया कि दक्षिण अमेरिका के जिस देश को आज "सूरीनाम" के नाम से पुकारा जाता है असल में ‘श्रीराम’ कहलाता था, लेकिन समय के साथ उसका उच्चारण बदल गया। इसके साथ ही विद्यार्थियों में इस बात पर डिबेट शुरू हो गई है। चलिए अपन भी फैक्ट चेक कर लेते हैं, ताकि स्टूडेंट की हेल्प हो सके और Gen-Z को भी फैक्ट पता चल सके।
डॉ मोहन यादव को सूरीनाम की राजदूत ने बताया था
मध्य प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव आज MANIT BHOPAL (मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) में शनिवार को ‘तूर्यनाद-25’ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि दक्षिण अमेरिका का एक देश है सूरीनाम, जिसका असली नाम ‘श्रीराम’ था। उन्होंने बताया कि उज्जैन में आयोजित कालिदास समारोह में सूरीनाम की राजदूत आई थीं। जब उनसे पूछा गया कि आपके देश का सही नाम क्या है, तो उन्होंने खड़े होकर कहा कि हमारे देश का नाम श्रीराम है। समय के साथ उच्चारण में बदलाव होने से यह ‘सूरीनाम’ बन गया।
सूरीनाम का इतिहास
सूरीनाम (Suriname) दक्षिण अमेरिका का एक छोटा-सा देश है, लेकिन इसका इतिहास कई संस्कृतियों और उपनिवेशों से जुड़ा हुआ है।
1. प्राचीन काल और आदिवासी जनजातियाँ
यूरोपियों के आने से पहले सूरीनाम में अरावक (Arawak) और कैरीब (Carib) जनजातियाँ रहती थीं। ये लोग खेती, मछली पकड़ने और शिकार से जीवनयापन करते थे।
2. यूरोपीय उपनिवेश: 17वीं सदी
1499 में स्पेनिश खोजकर्ताओं ने सबसे पहले इस इलाके का दौरा किया, लेकिन स्थायी उपनिवेश नहीं बनाया।बाद में ब्रिटिश और डच यहाँ पहुँचे। 1650 के आसपास ब्रिटेन ने यहाँ बस्ती बसाई, लेकिन 1667 की ब्रेडा संधि (Treaty of Breda) के तहत सूरीनाम को नीदरलैंड (Dutch) को सौंप दिया गया। इसी के बाद से यह "डच गयाना" (Dutch Guiana) कहलाने लगा।
3. गुलाम प्रथा और प्लांटेशन अर्थव्यवस्था
डच उपनिवेशकों ने गन्ना, कॉफी, कोको और कपास की खेती शुरू की। अफ्रीका से हजारों गुलाम लाकर यहाँ बागानों में काम करवाया गया। कठोर जीवन और अत्याचारों के कारण कई गुलाम भागकर जंगलों में चले गए और उन्होंने मरून (Maroons) समुदाय बनाए, जिन्होंने अपनी स्वतंत्र संस्कृति विकसित की।
4. गुलामी की समाप्ति और भारतीयों का आगमन
1863 में नीदरलैंड ने सूरीनाम में गुलामी समाप्त की लेकिन बागानों में श्रमिकों की कमी हो गई, तो डच सरकार ने भारत, इंडोनेशिया (जावा) और चीन से मजदूर बुलाए। 1873 से लेकर 1916 तक हजारों भारतीय गिरमिटिया मजदूर यहाँ लाए गए। इसी वजह से आज सूरीनाम में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में हैं (करीब 27–30%)।
5. 20वीं सदी: स्वशासन और स्वतंत्रता की ओर
1954 में सूरीनाम को नीदरलैंड साम्राज्य के भीतर आंतरिक स्वशासन मिला। 1973 में डच सरकार ने घोषणा की कि सूरीनाम को स्वतंत्रता दी जाएगी। 25 नवंबर 1975 को सूरीनाम आधिकारिक तौर पर स्वतंत्र देश बन गया।
6. स्वतंत्रता के बाद
स्वतंत्रता के तुरंत बाद कई लोग (खासकर भारतीय और क्रियोल समुदाय) नीदरलैंड चले गए। 1980 में सेना के सरदार डेज़ी बाउटर्से (Dési Bouterse) ने तख्तापलट किया और लंबे समय तक राजनीति में प्रभाव बनाए रखा। 1990 के दशक से सूरीनाम ने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई, हालांकि राजनीतिक अस्थिरता बनी रही।
7. आज का सूरीनाम
- राजधानी: पैरामारिबो (Paramaribo)
- आधिकारिक भाषा: डच
- जनसंख्या: भारतीय, जावानी (इंडोनेशियाई मूल), अफ्रीकी, यूरोपीय और आदिवासी मिश्रित।
यहाँ की संस्कृति भारतीय, अफ्रीकी, डच और इंडोनेशियाई परंपराओं का संगम है।
सूरीनाम के नाम की कहानी
16वीं–17वीं सदी में जब स्पेनिश, डच और ब्रिटिश खोजकर्ता आए, तो उन्होंने नदी और आसपास की भूमि को “Suriname River” कहा। क्योंकि इस नदी के आसपास “सुरिनन” (Surinen / Surinen) जनजाति के लोग रहते थे। ब्रिटिश के विद्वान अक्सर उच्चारण में गड़बड़ी करते थे। उन्होंने Surinen को Surineme समझा और लिख दिया। डच उपनिवेश काल में इसका आधिकारिक नाम “Suriname” घोषित कर दिया गया।
कुछ स्रोतों में पाया गया है कि नाम “Surinam”, “Surinamo”, “Sername” आदि विभिन्न उच्चारणों और लेखन रूपों में इस्तेमाल हुआ, जो समय-समय पर बदलता गया। “लोक व्याख्याएँ” (folk etymologies) भी हैं जैसे कि अंग्रेज़ों ने Lord Willoughby द्वारा Surrey के नाम पर “Surryham” जैसा नामकरण किया हो लेकिन ये कम विश्वसनीय मानी जाती हैं क्योंकि प्रमाण कम हैं।
तो क्या सूरीनाम की राजदूत ने डॉक्टर मोहन यादव को गलत बताया था
दक्षिण अमेरिका के देश "सूरीनाम" के नाम के बारे में कई उच्चारण और व्याख्याएं मिलती हैं परंतु कहीं पर भी "श्री राम" नहीं मिलता, लेकिन "सूरीनाम" का "श्री राम" से बड़ा स्ट्रांग कनेक्शन मिलता है। 873 से 1916 तक लगभग 34,000 भारतीय नागरिक, मजदूरी करने के लिए सूरीनाम पहुंचे। इन्हें “गिरमिटिया” कहा गया, क्योंकि उनके अनुबंध पर अंग्रेज़ी में “Agreement” लिखा था, मजदूरों को अंग्रेजी तो आती नहीं थी, लेकिन वह भी अंग्रेज विद्वानों की तरह हर चीज का ऐसा नाम रख देते थे, जिसका उच्चारण करने में उनका सुविधा होती हो। इसलिए "एग्रीमेंट" का उच्चारण बिगड़कर “गिरमिट” बन गया। और एग्रीमेंट के अंतर्गत मजदूरी करने वाले स्वयं को "गिरमिटिया" बताने लगे।
अधिकतर मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से आए थे, इसलिए वे हिंदू थे, और मजदूरी के बाद प्रत्येक शाम श्री रामचरितमानस का पाठ किया करते थे। "सूरीनाम" देश में आज भी 30% भारतीय निवास करते हैं और वह भगवान श्री राम की पूजा करते हैं। इसलिए जिस इलाके में "गिरमिटिया" रहते थे उसे इलाके को दूसरे लोग "श्री राम" के नाम से पुकारने लगे। फैक्ट चेकर: हिमांशु अवस्थी।
सोर्स:-
How the Hindus Came to Suriname (Hinduism Today): October 1, 1993
A Cultural Narrative on the Twice Migrated Hindustanis of the Netherlands (MEA / CARIM-India RR2013/23) July 4,2013