भारत में कक्षा 9 के विद्यार्थी की औसत आयु 15 वर्ष होती है। 14 वर्ष की उम्र में विद्यार्थी कक्षा 9 में एडमिशन लेता है लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 11 वर्षीय बालक आरव सिंह पटेल को कक्षा 9 में एडमिशन देने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि, संविधान के अनुच्छेद 21-ए में प्रदत्त शिक्षा के अधिकार को सीबीएससी नियमों में निर्धारित आयु सीमा के आधार पर सीमित नहीं किया जा सकता।
CBSE का आयु सीमा संबंधी नियम संविधान के विरुद्ध
जबलपुर निवासी आरव सिंह पटेल का जन्म 19 मार्च 2014 को हुआ। उनकी असाधारण बुद्धि को देखते हुए उनके माता-पिता ने सीबीएससी द्वारा निर्धारित आयु से कम उम्र में ही सेंट कॉन्वेंट स्कूल, रांझी में प्रवेश दिलवाया। आरव ने कक्षा 1 से 8 तक सभी विषयों में 'ए' ग्रेड प्राप्त की। इसके बाद भी, कक्षा 9 में प्रवेश देने से स्कूल ने इनकार कर दिया। आरव सिंह के माता-पिता ने सीबीएससी सहित अन्य प्राधिकरणों से प्रवेश की अनुमति मांगी, लेकिन सीबीएससी नियमों का हवाला देकर प्रवेश देने से स्पष्ट इनकार कर दिया गया। तब, आरव के माता-पिता ने आरपीएस लॉ एसोसिएट्स के माध्यम से हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 13186/2025 दायर की, जिसमें बालक के नैसर्गिक और संवैधानिक अधिकारों को संरक्षित करने तथा उनकी असाधारण प्रतिभा को ध्यान में रखते हुए मौजूदा नियमों को शिथिल कर कक्षा 9 में प्रवेश देने का अनुरोध किया गया।
CBSE के तर्क:
- मध्य प्रदेश राज्य एनईपी 2020 का पालन कर रहा है, जिसके खंड 4.1 में विशेष आयु सीमा का प्रावधान है।याचिकाकर्ता आयु मानदंड को पूरा नहीं करता है, इसलिए उसे कक्षा IX में प्रवेश नहीं दिया जा सकता है।
- सीबीएसई की परीक्षा उप-नियमों के खंड 6.1 (iii) के अनुसार, एक छात्र किसी भी कक्षा में प्रवेश के लिए तभी पात्र होता है जब वह राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित आयु सीमा की आवश्यकता को पूरा करता हो।
- आयु में छूट देने का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि यह एनईपी 2020 तैयार करते समय सरकार द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय है।
याचिकाकर्ता के वकील की दलील
- पटना उच्च न्यायालय ने एक समान मामले (समीर राज बनाम भारत संघ और अन्य) में 11.01.2024 को फैसला सुनाया था, जिसमें एक अल्पायु लेकिन असाधारण रूप से मेधावी उम्मीदवार को बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी।
- कक्षा IX में प्रवेश से इनकार करना एक मेधावी छात्र के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार (शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 का खंड 4.1 प्रकृति में मार्गदर्शक (directory) है, अनिवार्य (mandatory) नहीं, और असाधारण परिस्थितियों में आयु में छूट दी जा सकती है।
- आईक्यू परीक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें डॉक्टरों ने उसे असाधारण गुणों वाला और एक शानदार छात्र बताया है। रिपोर्ट में उसके मल्टीपल इंटेलिजेंस (इंटरपर्सनल पहलू, विश्लेषणात्मक सोच, प्रकृति प्रेम, संगीत ध्वनि में शक्ति) और औसत से अधिक IQ, CQ (रचनात्मक भागफल), और AQ (प्रतिकूलता भागफल) का उल्लेख है।
शिक्षा के लिए आयु सीमा का निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 21-ए का उल्लंघन
हाईकोर्ट ने पहली सुनवाई में सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और आरव सिंह का मनोवैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण करवाकर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। रिपोर्ट में पाया गया कि याचिकाकर्ता सामान्य बच्चों से भिन्न, यानी असाधारण प्रतिभा और बुद्धि वाला है। जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने याचिका की अंतिम सुनवाई की। याचिका का निराकरण करते हुए आदेश दिया गया कि प्राचार्य (प्रतिवादी क्रमांक 6) याचिकाकर्ता को कक्षा 9 में अस्थायी प्रवेश प्रदान करें, बालक की दैनिक गतिविधियों की निगरानी करें, और सभी दस्तावेजों के साथ 15 दिनों के भीतर सीबीएससी चेयरमैन को सूचित करें। चेयरमैन याचिकाकर्ता के प्रवेश के संबंध में अंतिम निर्णय लेंगे।