आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय, सादर प्रणाम। मैं एक जागरूक नागरिक के रूप में भोपाल समाचार डॉट कॉम “खुला खत” मंच के माध्यम से एक अत्यंत गंभीर विसंगति की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, जो कि कोविड-19 से जुड़ी सरकारी योजनाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यह विसंगति न केवल सामान्य नागरिकों के लिए परेशानी का कारण है, बल्कि यह सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों की भी अनदेखी प्रतीत होती है।
मुख्य मुद्दा: भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा कोविड काल में मृत व्यक्तियों/कर्मचारियों के लिए अनेक योजनाएं चलाई गईं, जैसे:
- मुख्यमंत्री कोविड-19 विशेष अनुग्रह योजना (म.प्र.)
- कोरोना योद्धा बीमा योजना (₹50 लाख)
- कोविड मृत्यु सहायता योजना (₹50,000)
- अनुकंपा नियुक्ति योजना
- विधवा/अनाथ बच्चों हेतु विशेष पेंशन योजना
इन सभी योजनाओं का उद्देश्य एक ही है, कोविड-19 से मृत व्यक्ति के परिवार को सम्मानपूर्वक सहायता देना। परंतु, दुख की बात है कि इन योजनाओं में अलग-अलग पात्रता शर्तें रखी गई हैं। एक ही मृत्यु के लिए अलग-अलग Death Summary, दस्तावेज़ और रिपोर्टें मांगी जा रही हैं। RT-PCR रिपोर्ट की अनिवार्यता, जबकि व्यक्ति अस्पताल में भर्ती था और HRCT या क्लिनिकल दस्तावेज हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन?
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में (Gaurav Kumar Bansal बनाम भारत सरकार, आदेश दिनांक 4 अक्टूबर 2021) स्पष्ट किया था कि:
कोविड मुआवज़े के लिए RT-PCR रिपोर्ट अनिवार्य नहीं है। यदि मृत्यु प्रमाण पत्र, मेडिकल रिकॉर्ड, या अस्पताल के दस्तावेज कोविड के अनुसार मृत्यु को दर्शाते हैं, तो वह पर्याप्त होंगे।
इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकारें मुआवज़ा देने के लिए:
- "मानवीय" दृष्टिकोण अपनाएं।
- प्रक्रियाओं को सरल और नागरिकों के हित में बनाएं।
- RT-PCR रिपोर्ट की बाध्यता खत्म करें।
विनम्र आग्रह:
क्या सरकार और प्रशासन एक ही कोविड मृत्यु के लिए एक समान दस्तावेज़ प्रणाली (Standardized Death Verification Format) लागू नहीं कर सकते? क्यों एक परिवार को अलग-अलग योजनाओं के लिए हर बार अलग दस्तावेज़ तैयार करना पड़ता है? क्या सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद RT-PCR की शर्तें योजनाओं में अब भी बनी रहना न्यायोचित है? सधन्यवाद। पत्र लेखक: भवेष श्रोति, नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश।
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