Hindu Culture में विवाह संस्कार (Rites) होता है, इसलिए इसमें Divorce का कोई विधान नहीं है। Hindu Marriage Act ,1955 भी इस बात पर जोर देता है कि Married Couples का relationship बना रहे। परंतु कभी-कभी Circumstances विषम हो जाती है। ऐसी स्थिति में जब Husband and Wife में से किसी एक को ऐसा लगता है कि उसे कुछ समय के लिए अलग रहना चाहिए, लेकिन वह Divorce नहीं चाहते तब Judicial Separation के लिए Application किया जाता है।
What is judicial separation and can it be a ground for divorce
जब दोनों में से किसी एक पक्ष की इच्छा पर न्यायालय पृथक्करण (Separation) की Decree (आज्ञप्ति, order) पारित कर देता उसे Judicial Separation कहते हैं। ऐसे न्याय-निर्णय (Adjudication) के बाद Husband and Wife अलग-अलग रहने लगते हैं, एवं न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation), विवाह विच्छेद (divorce) नहीं होता है लेकिन Judicial Separation, divorce का आधार (Base) बन सकता है।
Hindu Marriage Act, 1955 की धारा-10 की परिभाषा
इस धारा में Judicial Separation के आधारों (Bases) का उल्लेख किया गया हैं, जिसके अंतर्गत Husband or Wife में से कोई एक भी याचिका दायर (Petition filed) कर Judicial Separation की Decree प्राप्त कर सकता हैं। अगर Petitioner विवाह-विच्छेद ( divorce)अर्थात तलाक के आधारों को सिद्ध नहीं कर पाता है और वे Base न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) के लिए पर्याप्त है तब Court (न्यायालय) Judicial Separation की Decree (Preliminary Adjudication) प्रदान कर सकता है। भले ही याचिकादाता (petitioner) ने ऐसी मांग नहीं भी की हो तब भी।
अर्थात व्यक्ति divorce से पहले wife, husband से या Husband, Wife से Judicial Separation द्वारा अलग-अलग रह सकते हैं और बाद में यही Divorce का Base हो सकता है इस प्रकार Divorce एवं Judicial Separation दोनों अलग अलग होंगे।
पाठकों से अपील: कानून की यह व्यवस्था उन विवाहित दंपतियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है जिनके बीच में तनाव की स्थिति बन गई है। किसी भी प्रकार का बड़ा फैसला लेने से पहले अच्छा होगा कि "ज्यूडिशियल सेपरेशन" का प्रयोग करें। इसके काफी अच्छे परिणाम आते हैं। रिश्ता टूटने से बच जाता है। कृपया इस जानकारी को ऐसे सभी व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर करें, जिसमें कोई ऐसा महिला या पुरुष मौजूद है जिसके वैवाहिक जीवन में तनाव की स्थिति है। नीला ड्रम और मेघालय में हनीमून, या फिर सीधे तलाक की अर्जी लगाने से, कानून की यह व्यवस्था काफी बेहतर है।
✍️लेखक: बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार, होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।