भोपाल के नाम को लेकर अक्सर विवाद हुआ करता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि भोपाल का असली नाम "भॊजपाल" है जिसे अफगानिस्तान से आए धोखेबाज दोस्त खान ने "भोपाल" बनाया। जबकि "भोपाल" उर्दू या फारसी शब्द नहीं है। पढ़िए पत्रकार एवं शोधार्थी श्री उपदेश अवस्थी की यह रिसर्च रिपोर्ट जो भोपाल के नाम को लेकर सभी ऐतिहासिक प्रश्नों का उत्तर देती है:-
भॊजपाल नाम कहां से आया
यह एक कल्पना है और इसका कोई प्राचीन अथवा ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता है। कहा जाता है कि राजा भोज ने तालाब की बाउंड्री वॉल बनवाई। तालाब की बाउंड्री वॉल को लोकल लैंग्वेज में "पाल" कहते हैं। इसलिए इस शहर का नाम राजा भोज की पाल अर्थात भॊजपाल हो गया। इस दावे के समर्थन में राजा भोज की तरफ से, उनके शासन का कोई डॉक्यूमेंट नहीं मिलता है। कोई शिलालेख नहीं मिलता। 11वीं शताब्दी में परमार वंश के अंत के बाद भी कोई शिलालेख या दस्तावेज नहीं मिलता। यह बात सही है कि राजा भोज जब बीमार हुए तो अपने इलाज के लिए यहां पर आए थे, परंतु उन्होंने इस क्षेत्र का नामकरण किया अथवा नाम बदला, ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है। बल्कि, जिस जगह पर आज भोपाल शहर मौजूद है, राजा भोज के तालाब के कारण वह स्थान पानी में डूबा हुआ था। अर्थात 11वीं शताब्दी में राजा भोज के समय इस जमीन पर इंसानों की कोई बस्ती ही नहीं थी।
किस ऐतिहासिक दस्तावेज में सबसे पहले भोपाल का उल्लेख मिलता है
मुग़लकालीन दस्तावेज़ों (16वीं–17वीं शताब्दी) में “भूपाल” और “भोपाल” दोनों नाम का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार प्रमाणित होता है कि भोपाल में इंसानों की पहली बस्ती 11वीं शताब्दी के बाद और 16वीं शताब्दी से पहले बनी थी। क्योंकि जब मुगल ने इस इलाकों को डॉक्यूमेंट किया तब भोपाल एक समृद्ध और सुंदर गांव बन चुका था, जो जगदीशपुरा के अंतर्गत आता था। जगदीशपुरा जिसका नाम बदलकर इस्लामनगर कर दिया गया था, वह एक समृद्ध हिंदू राज्य था। धोखेबाज दोस्त खान ने यहां के राजा नरसिंह देवड़ा की धोखे से हत्या करके, राज्य पर कब्जा कर लिया था। यहीं पर (जगदीशपुरा में) राजा भोज, परमार वंश, और गोंड साम्राज्य के अवशेष मिलते हैं।
भोपाल का नाम भोपाल कैसे पड़ा
आदिवासी कथाओं में यह प्रसंग मिलता है। जबलपुर अथवा आसपास की वन क्षेत्र में रहने वाला "भूपाल" एक उत्साही युवक था, जो अपने परिजनों की परेशानियों को दूर करना चाहता था। अक्सर जंगल में एक साधु से मिलने जाया करता था। वह साधु महात्मा से अपने लोगों की परेशानियों का समाधान पूछता था। इसी चर्चा के दौरान साधु महात्मा ने उसे बताया कि समाधान के लिए तुम सबको अपने परिवार के सहित यहां से पलायन करना होगा और जहां घने जंगल में बहती हुई एक नदी मिलेगी। जिसके आसपास कोई गांव बस्ती नहीं होगी। वहां अपनी बस्ती बसाना।
निर्देशानुसार युवक है ऐसे स्थान की तलाश में निकल गया और बाद में इसी युवक ने अपने परिवार एवं समाज के लोगों के साथ "कलियासोत नदी" के किनारे पहली बस्ती बसाई। इस बस्ती को "भूपाल की बस्ती" कहा जाने लगा और बाद में जब आबादी बढ़ गई तो इसे "भूपाल" गांव कहा जाने लगा। क्षेत्र की सुरक्षा के लिए गोंड राजाओं ने इस गांव को अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार भोपाल की स्थापना हुई। बाद में अपभ्रंश होकर यह गांव भोपाल हो गया। रानी कमलापति ने भोपाल गांव में अपना महल बनवाया था।
भोज ताल कहां पर है
राजा भोज जहां पर आए थे और उन्होंने जहां पर अपने इलाज के लिए, जल संग्रहण करने हेतु बाउंड्री वॉल बनवाई थी। वह गांव भोजपुर आज भी उनके ही नाम पर है। भॊजपाल (तालाब की बाउंड्री वॉल) भी वहीं पर है, जिसे आक्रमणकारी होशंगशाह ने तुड़वा दिया था। यह बाउंड्री वॉल इतनी बड़ी थी कि इसे तोड़ने में 2 वर्ष का समय लगा। और उनके द्वारा जो "भोजताल" बनवाया गया था। आज का भोपाल इस जमीन पर बना हुआ है। वर्तमान में जिसे भोपाल का बड़ा तालाब कहते हैं। वह राजा भोज के समय तालाब से ओवरफ्लो होकर जाने वाले पानी को खेतों में पहुंचने से रोकने के लिए बनाया गया मिट्टी का बांध था। भोपाल के पुराने लोग आज भी इस बात को दोहराते हैं "तालों में ताल भोपाल ताल, बाकी सब तलैया। रानी तो कमलापति, बाकी सब रनैया।" कहते हैं भोपाल का तालाब इतना बड़ा था कि, पूर्णिमा की रात हवाई जहाज से देखने पर चमकता हुआ चंद्रमा की तरह दिखाई देता था। रानी कमलापति का सौंदर्य भी बिल्कुल ऐसा ही था। © Updesh AWasthee
राजा भोज ने जो बनवाया था वह भोजपुर आज भी अपने पूरे अस्तित्व में है और दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
भोपाल रानी कमलापति का सबसे पसंदीदा शहर है। उन्होंने अपना अधिकतम जीवन और अंतिम समय यही पर बिताया है। रानी कमलापति भोपाल का गौरव है और इन दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जाना चाहिए।
इस इलाके में इंसानी बस्ती की स्थापना "भूपाल" ने की है जो अपने परिवार के साथ शांति और समृद्धि की तलाश में आया था। कृपया इस शहर की यही पहचान बने रहने दीजिए।
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