मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कुछ लोग इतिहास की अधूरी जानकारी को ही पूरी जानकारी मानकर हजारों साल प्राचीन भोपाल का नाम बदलकर "भोजपाल" करने के लिए प्रदर्शन करते रहते हैं। आज शनिवार को छुट्टी के दिन शहर के 14 चौराहों पर प्रदर्शन किया गया। एक बार फिर जनता से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश की गई। हालांकि इस बार भी प्रदर्शनकारी सफल नहीं हो पाए।
प्रदर्शनकारियों की दलील
भोजपाल ही इस शहर का असली नाम है, जिसे अब भोपाल कहा जाने लगा है। अब लोगों की मांग पर इसे दोबारा से पुराने रूप में बदलकर भोजपाल कर देना चाहिए। इससे इतिहास, सांस्कृतिक परंपरा और राजा भोज की नगरी की विरासत जुड़ी हुई है। बैरागढ़ के चंचल चौराहे से शुरू होकर प्रदर्शन रैली, वीआईपी रोड स्थित राजा भोज की प्रतिमा पर पहुंची। लोग हाथों में बैनर और पोस्टर लेकर खड़े नजर आए। ‘भोपाल नहीं, भोजपाल चाहिए’ जैसे नारे लगाते रहे। इस प्रकार उन्होंने जनता से समर्थन प्राप्त करने की एक बार फिर कोशिश की। प्रदर्शन करने वालों का मानना है कि यह नाम बदलने से राजधानी की पहचान और गौरव दोनों मजबूत होंगे।भोजपाल स्थानीय इतिहास और परंपरा का प्रतीक है। इसीलिए राजधानी का सही नाम भोजपाल होना चाहिए।
भॊजपाल नाम कहां से आया
यह एक कल्पना है और इसका कोई प्राचीन अथवा ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता है। कहा जाता है कि राजा भोज ने यहां पर तालाब की बाउंड्री वॉल बनवाई। तालाब की बाउंड्री वॉल को लोकल लैंग्वेज में "पाल" कहते हैं। इसलिए इस शहर का नाम राजा भोज की पाल अर्थात भॊजपाल हो गया। इस दावे के समर्थन में राजा भोज की तरफ से, उनके शासन का कोई डॉक्यूमेंट नहीं मिलता है। यह बात सही है कि राजा भोज जब बीमार हुए तो अपने इलाज के लिए यहां पर आए थे, परंतु उन्होंने इस क्षेत्र का नामकरण किया अथवा नाम बदला, ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
भोपाल का नाम भोपाल कैसे पड़ा
भोपाल के इतिहास का अध्ययन करने वाले पत्रकार श्री उपदेश अवस्थी बताते हैं कि, आदिवासी कथाओं में यह प्रसंग मिलता है। जबलपुर अथवा आसपास की वन क्षेत्र में रहने वाला "भूपाल सिंह" एक उत्साही युवक जो अपने परिजनों की परेशानियों को दूर करना चाहता था। अक्सर जंगल में एक साधु से मिलने जाया करता था। वह साधु महात्मा से अपने लोगों की परेशानियों का समाधान पूछता था। इसी चर्चा के दौरान साधु महात्मा ने उसे बताया कि समाधान के लिए तुम सबको अपने परिवार के सहित यहां से माइग्रेट करना होगा और जहां घने जंगल में बहती हुई एक नदी मिलेगी। इसके आसपास कोई गांव बस्ती नहीं होगी। वहां अपनी बस्ती बसाना। निर्देशानुसार युवक है ऐसे स्थान की तलाश में निकल गया और बाद में इसी युवक ने अपने परिवार एवं समाज के लोगों के साथ कलियासोत नदी के किनारे पहली बस्ती बसाई। इस बस्ती को भूपाल की बस्ती कहा जाने लगा और बाद में जब आबादी बढ़ गई तो इसे भूपाल गांव कहा जाने लगा। क्षेत्र की सुरक्षा के लिए गोंड राजाओं ने इस गांव को अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार भोपाल की स्थापना हुई। बाद में अपभ्रंश होकर यह गांव भोपाल हो गया। रानी कमलापति ने भोपाल गांव में अपना महल बनवाया था। राजा भोज जहां पर आए थे और उन्होंने जहां पर अपने इलाज के लिए, जल संग्रहण करने हेतु बाउंड्री वॉल बनवाई थी। वह गांव भोजपुर आज भी उनके ही नाम पर है।