1965 में जब भारत में अकाल पड़ा था और अमेरिका ने भारत के लिए रवाना किया अनाज का जहाज रास्ते से ही वापस बुला लिया तब भारत के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने हरित क्रांति का प्रण लिया और आज भारत, दुनिया के सबसे बड़े अनाज एक्सपोर्टर्स में से एक है। एक बार फिर अमेरिका ने बिल्कुल वैसा ही हमला किया है। इस बार भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को तोड़ने के लिए टैरिफ लगा दिए गए हैं। इसलिए भारत सरकार ने 15 अगस्त को पंच प्रण लिए और इसके लिए सिर्फ 100 दिन का टारगेट तय किया है। 1965 का किस्सा लास्ट पैराग्राफ में मिलेगा लेकिन उससे पहले पढ़िए लेटेस्ट न्यूज़:-
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने 100 दिन का एजेंडा बताया
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने दूसरे लोकमत वैश्विक आर्थिक सम्मेलन में बताया कि, सरकार अगले 100 दिनों के परिवर्तनकारी एजेंडे पर काम कर रही है। सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से 15 अगस्त को किए गए आह्वान का पालन करेगी, जिसमें भारत को तेज गति से आगे ले जाने, 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के विजन को लागू करने, घोषित किए गए 'पंच प्रणों' का पालन करने और यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है कि प्रत्येक नागरिक 2047 तक भारत को एक समृद्ध और विकसित राष्ट्र बनाने का दायित्व अपने ऊपर ले।
उन्होंने कहा कि इस प्रयास में 140 करोड़ भारतीय एक टीम, एक परिवार के तौर पर एकजुट होकर औपनिवेशिक मानसिकता को मिटाएंगे, भारत के समृद्ध इतिहास, संस्कृति और परंपरा का सम्मान करेंगे और राष्ट्र की एकता और अखंडता पर ध्यान केंद्रित करेंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत को एक विकसित राष्ट्र बनने से नहीं रोक सकती। उन्होंने कहा कि भारत ने संयुक्त अरब अमीरात, मॉरीशस, ईएफटीए समूह के चार देशों (स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, लिकटेंस्टीन, आइसलैंड) और यूनाइटेड किंगडम के साथ संतुलित, निष्पक्ष और समतामूलक मुक्त व्यापार समझौते किए हैं और अन्य समझौतों पर भी तेजी से प्रगति कर रहा है।
1965 में अमेरिका ने भारत के साथ क्या किया था
उसे समय भारत में अकाल पड़ा था। वैसे भी भारत में अनाज का उत्पादन कम होता था इसलिए भारत खाद्य सहायता के लिए अमेरिका पर निर्भर था। पब्लिक लॉ 480 के तहत अमेरिका ने भारत को गेहूं देने का वादा किया था लेकिन गेहूं से भरे हुए जहाज को आधे रास्ते से वापस बुला लिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि अमेरिका ने वियतनाम पर हमला कर दिया था और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री हैं इस अवसर पर शांति की अपील कर दी थी। अमेरिका इस बात से नाराज हो गया था। अमेरिका का कहना था कि यदि वह गेहूं नहीं देंगे तो भारत भूख से मर जाएगा। ऐसे देश को आंख बंद करके हमारा समर्थन करना चाहिए। शांति की अपील करके उसने अमेरिका का विरोध किया है।
इस घटना भारत पर गहरा प्रभाव छोड़ा। प्रधानमंत्री ने अमेरिका से क्षमा याचना नहीं की। मदद भी नहीं मांगी बल्कि हरित क्रांति का संकल्प लिया और जनता से सप्ताह में एक दिन अनाज नहीं खाने की अपील की। परिणाम स्वरुप लोगों ने अपने इष्ट देव के नाम पर सप्ताह में एक दिन का चुनाव उपवास के लिए कर लिया। आज भी भारत में करोड़ों लोग प्रधानमंत्री की 1965 वाली अपील के अनुसार उपवास करते हैं और सप्ताह में एक दिन अनाज का सेवन नहीं करते।
एक बार फिर अमेरिका ने, भारत की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था पर हमला किया है। भारत सरकार ने अमेरिका का नाम लिए बिना अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा लाल बहादुर शास्त्री ने किया था। अब देखना यह है कि क्या भारत की नागरिकों ने जिस प्रकार लाल बहादुर शास्त्री की अपील का समर्थन किया था। भारत सरकार के अभियान को वैसा समर्थन मिल पाएगा।