मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में घोषित किए गए पदोन्नति नियम 2025 को लेकर विवाद गहरा गया है। सामान्य, पिछड़ा, और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी संगठन (सपाक्स) ने इन नियमों को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। तब तक के लिए प्रमोशन नहीं लेकिन प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगा दी गई है।
प्रमोशन के नियम की किताब में सिर्फ सन बदल दिया है
सपाक्स का आरोप है कि नए नियम 2025 में वर्ष 2002 के नियमों को लगभग जस का तस रखा गया है, जो अनारक्षित वर्ग के साथ अन्याय करता है। संगठन के अध्यक्ष केपीएस तोमर ने कहा, "36 प्रतिशत आरक्षण के बाद भी आरक्षित वर्ग को अनारक्षित कोटे में शामिल कर लाभ देने का प्रावधान रखा गया है, जिससे आरक्षण का प्रतिशत अनुचित रूप से बढ़ जाता है।" उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में यथास्थिति बनाए रखने की बात कही गई है, लेकिन नए नियमों में इसकी अनदेखी की गई है।
हाई कोर्ट ने पूछा: 2002 और 2025 के नियमों के बीच क्या अंतर है
हाईकोर्ट ने सरकार से 2002 और 2025 के नियमों के बीच भिन्नता स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, मध्य प्रदेश के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने कोर्ट में अंडरटेकिंग दी है कि मामले के विचारण तक विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की कार्यवाही नहीं की जाएगी।
सपाक्स का कहना है कि नए नियमों में क्रीमी लेयर का कोई उल्लेख नहीं है, और पुराने नियमों के तहत गलत तरीके से पदोन्नत हुए अधिकारियों को पदावनत करने का प्रावधान भी शामिल नहीं किया गया। संगठन ने इसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन बताया है।
यह विवाद नौ साल से अटकी पदोन्नतियों को लेकर और गहरा गया है। सामान्य वर्ग के कर्मचारी संगठनों का मानना है कि नए नियम पुरानी नीति की पुनरावृत्ति मात्र हैं, जिसे वे "नई बोतल में पुरानी शराब" करार दे रहे हैं। इस मामले में हाईकोर्ट की अगली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी हैं, जो इस विवाद के भविष्य को तय कर सकती है।
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