भोपाल निवासी वीके नसवा ने हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश में एक जनहित याचिका दाखिल की थी। इसमें उन्होंने दावा किया था कि संविधान में राज्य का नाम मध्य प्रदेश लिखा हुआ है। जबकि लाखों अधिकारी और कर्मचारी सरकारी दस्तावेजों में "एमपी" लिखते हैं। यह संविधान का उल्लंघन है। हाई कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता की सभी दलीलों को ध्यानपूर्वक सुना और फैसला सुना दिया है।
नाम के शॉर्ट फॉर्म का उपयोग संविधान का उल्लंघन?
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय साराफ की डिवीजन बेंच ने कहा कि पूरी दुनिया में नामों को छोटा करके बोलने और लिखने की परंपरा रही है। जैसे ‘United States of America’ को USA और ‘United Kingdom’ को UK कहा जाता है वैसे ही ‘मध्य प्रदेश’ को ‘MP’ कहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि आधुनिक जमाने में संचार और लेखन की प्रक्रिया में समय और जगह बचाने के लिए संक्षिप्त रूपों का इस्तेमाल जरूरी हो गया है। सरकारी कार्यों से लेकर गाड़ी के पंजीकरण और टैक्स सिस्टम तक में राज्यों के कोड और शॉर्ट फॉर्म का उपयोग सामान्य हो गया है। यह सिर्फ एक व्यावहारिक तरीका है न कि किसी संविधान का उल्लंघन।
याचिका में जनहित क्या है, हाईकोर्ट ने पूछा
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि इस याचिका में जनहित क्या है। सिर्फ इस आधार पर कि लोग ‘एमपी’ कहते हैं इसे संविधान का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं अदालत का समय व्यर्थ करती हैं और व्यावहारिक दृष्टिकोण को नजरअंदाज करती हैं।