सावन के महीने में शिव, साधना को भूल जाएं, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती है लेकिन मध्य प्रदेश में विदिशा लोकसभा से सांसद एवं केंद्रीय मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, अपनी पत्नी श्रीमती साधना सिंह चौहान को भूल गए। पिछले 33 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ। दरअसल, इसमें शिवराज की कोई गलती नहीं है। जूनागढ़ का वास्तु ही कुछ ऐसा है। यहां के नवाब भी अपनी पत्नी और बच्चे को भूलकर पाकिस्तान चले गए थे। यह भारतीय इतिहास की एक ऐसी कहानी है जिसे हमेशा पढ़ते रहना चाहिए क्योंकि इसमें एक नहीं दर्जनों सबक छुपे हुए हैं। तो चलिए शुरू करते हैं:-
JUNAGADH STORY - जूनागढ़ की संक्षिप्त जानकारी
जो लोग जूनागढ़ की रियासत के बारे में नहीं जानते उनकी सामान्य जानकारी के लिए यह बताना उचित होगा कि, जूनागढ़, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित एक रियासत थी, जिसकी स्थापना 1735 में शेर खान बाबी ने की थी। इसका क्षेत्रफल लगभग 3,337 वर्ग मील और जनसंख्या करीब 6.7 लाख थी, जिसमें 90% हिंदू थे, जबकि शासक मुस्लिम थे। फिर भी राज पाठ में कोई दिक्कत नहीं थी। राजा को किसी प्रकार का खतरा नहीं था और ना ही राजा की तरफ से प्रजा का शोषण किया जाता था। यह भारत की सबसे धनवान रियासतों में से एक थी।
JUNAGADH HISTORY - शाहनवाज भुट्टो ने नवाब को बिगाड़ दिया
जूनागढ़ के अंतिम नवाब, मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय (1911-1948), की कहानी के अंदर बहुत सारे Life Lessons छुपे हुए हैं जो आज भी उपयोगी है और प्रत्येक व्यक्ति को याद रखना चाहिए। हाबत खानजी तृतीय 11 वर्ष की आयु में नवाब बना दिया गया था। जुल्फिकारअली भुट्टो के पिता शाहनवाज भुट्टो जूनागढ़ रियासत के प्रधानमंत्री (दीवान) थे। उन्होंने बड़ी चतुराई के साथ 11 साल के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी की आदतों को बिगाड़ना शुरू किया। उन्हें सनकी और डरपोक बना दिया। उनका शिकार करने एवं दुर्लभ कुत्ते पालने का शौक लगा दिया, और पूरा प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। जूनागढ़ में नवाब केवल एक रबर स्टैंप थे। उनके परिवार में कोई भी नहीं था जो शाहनवाज भुट्टो की चालबाजी का जवाब दे सकता हो।
JUNAGADH HISTORY - शाहनवाज भुट्टो ने नवाब को बदनाम किया
1947 में जब ब्रिटिश सरकार ने सभी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के लिए स्वतंत्र कर दिया तो शाहनवाज भुट्टो ने ठीक 15 अगस्त 1947 वाले दिन नवाब से जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा करवा दी। उम्र में बड़े हो जाने के बावजूद जूनागढ़ के नवाब पूरी तरह से शाहनवाज भुट्टो के कंट्रोल में थे और शाहनवाज भुट्टो ने उन्हें कई प्रकार के अज्ञात शत्रुओं से भयभीत कर रखा था। सिर्फ इतना ही नहीं था। शाहनवाज भुट्टो बड़ी चतुराई के साथ प्रजा के बीच अपने नवाब को बदनाम करते रहते थे। जब उन्होंने जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलने का ऐलान करवाया तो लोगों को यह बताया कि, नवाब को डर है कि यदि जूनागढ़ का विलय भारत में कर दिया गया तो भारत की सरकार उनके कुत्तों को मार देगी। जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने उनसे वादा किया है कि पाकिस्तान में शामिल होने पर उनके कुत्तों को सुरक्षित रखा जाएगा।
JUNAGADH HISTORY - शाहनवाज भुट्टो द्वारा दिए गए तनाव में नवाब अपनी पत्नी को ही भूल गए
जब भारत सरकार ने जूनागढ़ के बॉर्डर पर अपनी फोर्स भेज दी तो क्टूबर 1947 के अंत में वह एक विशेष विमान से अपना सारा खजाना लेकर पाकिस्तान चले गए। उनके विशेष विमान में उनके खजाने के अलावा उनकी पत्नियां, बच्चे, और दुर्लभ नस्ल के कुत्ते भी शामिल थे। तनाव इतना अधिक था कि वह अपनी एक पत्नी और बच्चे को जूनागढ़ में भूलकर पाकिस्तान रवाना हो गए।
पाकिस्तान में जूनागढ़ के नवाब को उनके पालतू कुत्तों के साथ इस प्रकार आजाद किया गया कि वह लावारिस हो गए। उनकी जिंदगी मुफलिसी में बीती और मौत गुमनामी में हुई। जबकि उनके दीवान शाहनवाज भुट्टो, पाकिस्तान की पॉलिटिक्स के पावरफुल आदमी बने। उनका बेटा जुल्फिकार भुट्टो पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बना।
MORAL OF THE STORY
कहानी का निष्कर्ष यह है कि, यदि लाइफ में सब कुछ आसानी से मिलता जा रहा है, तो सावधान होने की जरूरत है। जीवन का पूरा पूर्वार्थ यदि आसान है तो इस बात की बहुत संभावना है कि उत्तरार्ध में काफी मुश्किल होगी। कभी किसी एक व्यक्ति पर डिपेंड नहीं होना चाहिए। सलाहकार और आदेश का पालन करने वाला एक ही व्यक्ति नहीं होना चाहिए। बिजनेस हो या पॉलिटिक्स, सफलता के लिए अपनी कैबिनेट होना जरूरी है। अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करना चाहिए और जो भी व्यक्ति आपके प्रति वफादार होने की बात कर रहा है। बड़ी चतुराई के साथ उसकी प्रतिबद्धता का परीक्षण करते रहना चाहिए।