Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 का अध्याय-11 लोक व्यवस्था एवं शांति बनाए रखने की शक्ति कार्यपालक मजिस्ट्रेट (SDM) एवं जिला मजिस्ट्रेट (DM) को प्रदान करता है। अध्याय का खंड (ख) लोक-न्यूसेंस से संबंधित BNSS की धारा-152 के आदेश जारी करने का नियम बताता है। BNSS की धारा 152 से धारा 162 तक लोक-न्यूसेंस से संबंधित नियमों का उल्लेख किया गया है। पिछले लेख में BNSS की धारा 158 में बताया गया था कि किसी विशेष जांच के लिए मजिस्ट्रेट किसी विशेषज्ञ व्यक्ति को बुला सकता है। बुलाए गए व्यक्ति के खर्च एवं व्यय, और उसके द्वारा बनाई गई रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में किस धारा के अंतर्गत पेश किया जाएगा, जानिए।
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 की धारा 159 की परिभाषा
- कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित आदेश देने की शक्ति
- Power of Executive Magistrate to make order in writing.
मजिस्ट्रेट किसी भी विशेषज्ञ (BNSS की धारा-158 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति) को स्थानीय अन्वेषण (Local Investigation) के लिए निम्नलिखित निर्देश दे सकता है:-
(A). उस व्यक्ति को लिखित रूप में ऐसा आदेश देगा जो उसके मार्गदर्शन के लिए आवश्यक हो।
(B). यह लिखित आदेश में उल्लेख करेगा कि उसकी नियुक्ति का खर्च एवं व्यय (Expenses) किसके द्वारा वहन किया जाएगा।
(2). विशेषज्ञ की जांच से प्राप्त रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
(3). मजिस्ट्रेट ऐसे विशेषज्ञ का परीक्षण (tests) भी करा सकता है, और इसका खर्च किसके द्वारा वहन किया जाएगा, इसके लिए भी लिखित आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाएंगे।
निजी विशेषज्ञ का मतलब:
यह जरूरी नहीं कि वह विशेषज्ञ सरकारी संस्था से जुड़ा हो। अदालत निजी क्षेत्र के किसी योग्य विशेषज्ञ की सेवा भी ले सकती है यदि:
- मामला तकनीकी या वैज्ञानिक है,
- सरकारी विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं है,
- निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय के लिए ऐसा जरूरी हो।
- उदाहरण के रूप में:
- डॉक्टरी राय के लिए अदालत निजी डॉक्टर से रिपोर्ट मँगवा सकती है।
- हस्तलेखन या दस्तखत मिलान के लिए प्राइवेट हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की मदद ली जा सकती है।
- फॉरेंसिक ऑडिट या साइबर जांच में भी निजी एक्सपर्ट की रिपोर्ट पर विचार किया जा सकता है।
लेकिन ध्यान दें:
- न्यायालय को यह देखना होगा कि विशेषज्ञ निष्पक्ष है, और उसकी रिपोर्ट अदालत के निर्णय में सहायक है।
- प्रतिपक्ष को भी यह अधिकार है कि वह उस विशेषज्ञ से क्रॉस एग्जामिनेशन (जिरह) कर सके।
प्रासंगिक न्यायालय निर्णय: State of Himachal Pradesh vs. Jai Lal & Ors (1999 SC)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञ की राय सिर्फ एक "राय" होती है, अंतिम प्रमाण नहीं, परंतु न्यायालय उसे स्वीकार कर सकती है यदि वह विश्वसनीय हो। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।