Criminal law:- क्या आरोपी को पुलिस जांच की अंतिम रिपोर्ट की प्रतिलिपि मिलनी चाहिए?

पुलिस को जब किसी अपराध के विषय में जानकारी प्राप्त होती है, तो संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज की जाती है। फिर पुलिस जांच करती है। जांच के बाद जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं, वह पूरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत की जाती है। इसे जांच की अंतिम रिपोर्ट (final report of Investigation) या पुलिस चालान (chargesheet) भी कहा जाता है। आइए जानते हैं कि पुलिस द्वारा न्यायालय में पेश किए जाने वाले चालान की प्रतिलिपि (copy of charge sheet) क्या आरोपी व्यक्ति को दी जानी चाहिए या नहीं: 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 261 की परिभाषा 

जब मजिस्ट्रेट को किसी अपराध की पुलिस जांच रिपोर्ट प्राप्त होती है, तब वह विचारण शुरू करने से पहले आरोपी व्यक्ति से पूछेगा कि क्या उसे पुलिस रिपोर्ट की प्रतिलिपि प्राप्त हुई है। यदि बीएनएसएस की धारा 230 के अंतर्गत नियमों का अनुपालन नहीं किया गया है, तो यह अनुपालन करना अनिवार्य है। अर्थात, आरोपी व्यक्ति को पुलिस जांच रिपोर्ट की प्रतिलिपि देना एक विधिक कर्तव्य है, क्योंकि बीएनएसएस की धारा 230 के अनुसार, मजिस्ट्रेट विचारण शुरू करने से पहले आरोपी से पूछेगा कि उसे पुलिस रिपोर्ट की प्रतिलिपि प्राप्त हुई है या नहीं। ऐसा इसलिए आवश्यक है, ताकि आरोपी व्यक्ति को पता चले कि पुलिस की जांच में क्या पाया गया और यदि वह पुलिस की जांच से असंतुष्ट है, तो वह न्यायालय में उसे चुनौती दे सके। निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया के लिए यह प्रथम एवं अनिवार्य कर्तव्य है।

पुलिस की जांच रिपोर्ट में कौन-कौन से डॉक्यूमेंट होने चाहिए 

पुलिस की जांच रिपोर्ट (जिसे आमतौर पर चालान या चार्जशीट कहा जाता है) में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के तहत कुछ विशिष्ट दस्तावेज शामिल किए जाते हैं, ताकि जांच प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो। ये दस्तावेज जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्यों और तथ्यों को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक होते हैं। नीचे पुलिस जांच रिपोर्ट में शामिल होने वाले प्रमुख दस्तावेजों की सूची दी गई है: 
प्राथमिकी (FIR): अपराध की प्रारंभिक शिकायत का लिखित दस्तावेज, जिसमें अपराध का विवरण, स्थान, समय, और शिकायतकर्ता की जानकारी शामिल होती है। यह जांच की शुरुआत का आधार होती है।
केस डायरी: जांच के दौरान पुलिस द्वारा बनाए गए दैनिक नोट्स, जिसमें जांच की प्रगति, पूछताछ, और साक्ष्य संग्रह का विवरण दर्ज होता है। यह BNSS की धारा 192 के तहत अनिवार्य है।
गवाहों के बयान: जांच के दौरान गवाहों से ली गई जानकारी और उनके लिखित या मौखिक बयान, जो BNSS की धारा 180 के तहत दर्ज किए जाते हैं। इसमें गवाहों के नाम, पते, और उनके बयानों का सार शामिल होता है।
साक्ष्य (सबूत): भौतिक साक्ष्य: अपराध स्थल से एकत्र की गई वस्तुएं, जैसे हथियार, कपड़े, या अन्य सामग्री, जिन्हें विश्लेषण के लिए फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजा जाता है। 
फोरेंसिक रिपोर्ट: डीएनए, उंगलियों के निशान, या अन्य वैज्ञानिक विश्लेषण की रिपोर्ट।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट: यदि अपराध में मृत्यु शामिल है, तो मृतक की मेडिकल जांच और कारणों का विवरण।
पंचनामा: अपराध स्थल का निरीक्षण, तलाशी, या जब्ती के दौरान तैयार किया गया दस्तावेज, जिसमें दो स्वतंत्र गवाहों (पंच) की उपस्थिति में विवरण दर्ज किया जाता है। इसमें अपराध स्थल का स्केच या फोटो भी शामिल हो सकते हैं।
आरोपी के बयान: यदि आरोपी ने कोई इकबालिया बयान दिया है, तो उसे BNSS की धारा 180 के तहत दर्ज किया जाता है। हालांकि, पुलिस हिरासत में दिए गए बयान को सबूत के रूप में सीमित उपयोग किया जा सकता है।
अपराध स्थल का विवरण: अपराध स्थल का निरीक्षण रिपोर्ट, जिसमें घटनास्थल का नक्शा, फोटोग्राफ, और अन्य प्रासंगिक विवरण शामिल होते हैं।
मेडिकल रिपोर्ट: यदि अपराध में शारीरिक चोट या बलात्कार जैसे मामले शामिल हैं, तो पीड़ित या आरोपी की मेडिकल जांच की रिपोर्ट। BNSS की धारा 53 के तहत यह अनिवार्य है।
अन्य प्रासंगिक दस्तावेज: जैसे कि जब्ती सूची (संपत्ति या सामग्री जो अपराध से संबंधित जब्त की गई हो), संदिग्धों की गिरफ्तारी का विवरण, और अन्य प्रासंगिक पत्राचार।
अंतिम रिपोर्ट (चालान): जांच के निष्कर्षों का सार, जिसमें यह उल्लेख होता है कि पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं या नहीं। यदि साक्ष्य मिले हैं, तो यह चार्जशीट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, और यदि नहीं, तो "क्लोजर रिपोर्ट" के रूप में।

अतिरिक्त नोट: BNSS, 2023 के तहत, धारा 230 के अनुसार, इन सभी दस्तावेजों की प्रतिलिपि आरोपी को प्रदान करना मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है, ताकि वह अपनी रक्षा के लिए उचित तैयारी कर सके।
यदि जांच में कोई लापरवाही होती है, जैसे कि आवश्यक दस्तावेजों का अभाव, तो यह निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, जांच में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सभी दस्तावेजों को समयबद्ध तरीके से मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।

Should the accused get a copy of the chargesheet? 

Under the Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS), 2023, Section 230, it is a legal obligation to provide the accused with a copy of the police investigation report (charge sheet) before the trial begins. This ensures transparency and enables the accused to understand the findings of the investigation, challenge any discrepancies, and prepare a defense. The magistrate must confirm whether the accused has received the report, as this is a fundamental requirement for a fair trial, safeguarding the principles of natural justice.
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