MP-CIC Arvind Kumar Shukla के खिलाफ हाई कोर्ट का आदेश अपास्त

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की डिवीजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पूर्व राज्य मुख्य सूचना आयुक्त अरविंद कुमार शुक्ला (Arvind Kumar Shukla, Chief Information Commissioner) के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों और 40,000 रुपये के जुर्माने (fine) को रद्द कर दिया है। यह मामला WA-1442/2025 के तहत 19 जून 2025 को माननीय एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा (Justice Sanjeev Sachdeva) और जस्टिस विनय सराफ (Justice Vinay Saraf) की खंडपीठ ने सुना।

मामले का विवरण: क्या थी पूरी कहानी?

5 मार्च 2025 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने रिट पिटिशन नंबर 29100/2023 में फैसला सुनाते हुए मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग (Madhya Pradesh State Information Commission) के तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त अरविंद कुमार शुक्ला के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। कोर्ट ने उनके कार्यकाल के दौरान दिए गए आदेशों पर सवाल उठाए और संबंधित विभाग से 40,000 रुपये का जुर्माना वसूलने का निर्देश दिया था। 

Section 21 of RTI Act

इस फैसले के खिलाफ अरविंद कुमार शुक्ला ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील (Writ Appeal No. 1442/2025) दायर की। अपील में उनके वकील प्रवीण दुबे (Advocate Praveen Dubey) ने तर्क दिया कि सूचना आयुक्त के आदेश RTI एक्ट की धारा 21 (Section 21 of RTI Act) के तहत "good faith" में पारित किए गए थे। इस धारा के अनुसार, सूचना आयुक्त के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई (legal proceedings) शुरू नहीं की जा सकती, यदि आदेश निष्ठापूर्वक और आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में दिए गए हों। 

हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने नियम विरुद्ध आदेश दिया था

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपील पर सुनवाई के बाद पाया कि सिंगल बेंच ने अरविंद कुमार शुक्ला को नोटिस (notice) जारी किए बिना ही उनके खिलाफ टिप्पणियां और जुर्माना लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने यह भी माना कि सूचना आयुक्त के आदेश "bonafide" और "good faith" में पारित किए गए थे। 
इस आधार पर, हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2025 के आदेश को आंशिक रूप से रद्द (set aside) कर दिया। कोर्ट ने न केवल अरविंद कुमार शुक्ला के खिलाफ की गई टिप्पणियों को हटाया, बल्कि 40,000 रुपये का जुर्माना वसूलने के निर्देश को भी अपास्त (quashed) कर दिया। 

कोर्ट का महत्वपूर्ण बयान

फैसले में एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा, "Orders passed by the CIC were in good faith and in bonafide discharge of the official duties." कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला मूल रिट पिटिशन के गुण-दोष (merits) को प्रभावित नहीं करेगा, क्योंकि विभाग ने भी उक्त आदेश के खिलाफ अलग से अपील दायर की है।

RTI एक्ट और सूचना आयुक्त की भूमिका पर प्रभाव

यह फैसला RTI एक्ट के तहत सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को मजबूत करता है। धारा 21 सूचना आयुक्तों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में कानूनी संरक्षण (legal protection) प्रदान करती है, बशर्ते उनके आदेश निष्ठापूर्वक और बिना किसी दुर्भावना के पारित किए गए हों। यह मामला भविष्य में सूचना आयोग (Information Commission) के अधिकारियों के लिए एक मिसाल बन सकता है। 

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