MP के सरकारी स्कूलों में CCLE को बढ़ावा दिया जायेगा, जानिए इसके अंतर्गत क्या होता है जानिए

मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों में CCLE (Continuous and Comprehensive Learning and Evaluation) गतिविधियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। कंटीन्यूअस एण्ड कंप्रेसिव लर्निंग एंड इवेलुएशन क्या होता है, इस समाचार में इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।

CCLE के तहत मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में क्या होगा

भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यार्थियों के लिये 21वीं शताब्दी के कौशल अर्जित करने पर जोर दिया गया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश शासन का स्कूल शिक्षा विभाग, सरकारी हाई और हायर सेकण्डरी स्कूलों में सीसीएलई कार्यक्रम अर्थात "सतत् एवं व्यापक अधिगम एवं मूल्यांकन" कार्यक्रम के रूप में संचालित कर रहा है। सीसीएलई गतिविधियों के अंतर्गत प्रति सप्ताह होने वाले लेखन कौशल, वक्तव्य कौशल, प्रश्नोत्तरी कौशल, दृश्य और प्रदर्शन कला पर केन्द्रित गतिविधियां विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में मदद करती हैं। नये शैक्षणिक सत्र 2025-26 में ग्रीष्म अवकाश के बाद बाल सभा प्रत्येक शनिवार को पूर्वानुसार प्रथम 3 कालखण्ड में संचालित होगी। वर्ष 2024-25 में सीसीएलई गतिविधियों की राज्य स्तर पर मॉनिटरिंग के लिये विमर्श पोर्टल पर मॉड्यूल निर्माण किया गया था।

Continuous and Comprehensive Learning and Evaluation क्या होता है 

कन्टीन्यूअस एण्ड कॉम्प्रिहेन्सिव लर्निंग एण्ड इवैल्यूएशन (Continuous and Comprehensive Learning and Evaluation) का तात्पर्य एक ऐसी शैक्षिक प्रणाली से है, जिसमें सीखने (लर्निंग) और मूल्यांकन (इवैल्यूएशन) दोनों को निरंतर (continuous) और व्यापक (comprehensive) तरीके से लागू किया जाता है। यह मुख्य रूप से भारत में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा विकसित कन्टीन्यूअस एण्ड कॉम्प्रिहेन्सिव इवैल्यूएशन (CCE) प्रणाली का विस्तार है, जिसमें सीखने की प्रक्रिया को मूल्यांकन के साथ जोड़ा जाता है ताकि छात्रों का समग्र विकास हो सके। 

कन्टीन्यूअस (निरंतर):

सीखना: छात्रों को पूरे शैक्षणिक सत्र के दौरान नियमित रूप से नई अवधारणाएँ, कौशल, और ज्ञान सिखाया जाता है। यह कक्षा में चर्चा, प्रोजेक्ट्स, गतिविधियों, और अभ्यास के माध्यम से होता है।
मूल्यांकन: मूल्यांकन केवल अंतिम परीक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नियमित अंतराल पर होता है। इसमें कक्षा में प्रश्नोत्तरी, असाइनमेंट, प्रोजेक्ट्स, मौखिक परीक्षा, और अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं।

कॉम्प्रिहेन्सिव (व्यापक):

सीखना: यह न केवल शैक्षिक विषयों (जैसे गणित, विज्ञान) तक सीमित है, बल्कि सह-शैक्षिक क्षेत्रों जैसे जीवन कौशल, नैतिक मूल्य, शारीरिक शिक्षा, कला, और सामाजिक व्यवहार को भी शामिल करता है।
मूल्यांकन: छात्रों का मूल्यांकन उनके शैक्षिक (scholastic) और सह-शैक्षिक (co-scholastic) प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है। इसमें बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक, और शारीरिक विकास को मापा जाता है।

मुख्य विशेषताएँ:

निरंतर सीखना और मूल्यांकन: शिक्षक और छात्र दोनों सत्र के दौरान लगातार सीखने और सुधार की प्रक्रिया में शामिल रहते हैं। उदाहरण के लिए, फॉर्मेटिव असेसमेंट (Formative Assessment) के माध्यम से शिक्षक कमजोरियों को पहचानते हैं और तुरंत सुधारात्मक कदम उठाते हैं।
ग्रेडिंग प्रणाली: अंकों के बजाय ग्रेड का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रतिस्पर्धा और तनाव कम होता है।
फीडबैक: शिक्षक और छात्रों को नियमित फीडबैक मिलता है, जिससे सीखने की प्रक्रिया में सुधार होता है।
समग्र विकास: यह प्रणाली केवल अकादमिक प्रदर्शन पर केंद्रित नहीं है, बल्कि छात्रों के व्यक्तित्व, रचनात्मकता, और सामाजिक कौशलों को भी बढ़ावा देती है।

लर्निंग और इवैल्यूएशन के क्षेत्र:

शैक्षिक (Scholastic):
  • विषय-विशिष्ट ज्ञान (जैसे गणित, विज्ञान, भाषा)।
  • लिखित और मौखिक परीक्षाएँ, प्रोजेक्ट्स, और कक्षा में भागीदारी।

सह-शैक्षिक (Co-Scholastic):
  • जीवन कौशल (Life Skills): समस्या-समाधान, निर्णय लेना, संचार।
  • रवैया और मूल्य (Attitudes and Values): सहानुभूति, नैतिकता, और सामाजिक जिम्मेदारी।
  • रचनात्मक और शारीरिक गतिविधियाँ: कला, संगीत, खेल, और योग।

छात्रों के लिए लाभ:
  • सीखने की प्रक्रिया को रोचक और तनावमुक्त बनाता है।
  • व्यक्तिगत कमजोरियों को समय रहते सुधारने का मौका देता है।
  • समग्र व्यक्तित्व विकास को प्रोत्साहित करता है।

शिक्षकों के लिए लाभ:
  • छात्रों की प्रगति पर निरंतर नजर रखने में मदद करता है।
  • शिक्षण विधियों को छात्रों की जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करने में सहायता मिलती है।

अभिभावकों के लिए लाभ:
  • बच्चों की प्रगति के बारे में नियमित जानकारी मिलती है।
  • सह-शैक्षिक गतिविधियों में बच्चों की रुचि को समझने का मौका मिलता है।

सीमाएँ:
  • शिक्षकों पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ सकता है।
  • सभी स्कूलों में एकसमान लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • कुछ मामलों में, मूल्यांकन की व्यक्तिपरकता (subjectivity) के कारण निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।

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