हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है। वजह? हमारे चूल्हों से निकलता धुआं, खेतों में जलाई जाने वाली पराली, और गाड़ियों से उत्सर्जित धुआं - यानी Black Carbon. Delhi की एक रिसर्च संस्था Climate Trends की नई report के अनुसार, पिछले 20 सालों में Himalayan Glaciers की सतह का तापमान औसतन 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ - इसका मुख्य कारण है हवा में घुलता Black Carbon, जो Air Pollution का एक बड़ा हिस्सा है।
23 में से 19 साल हिमालय पर हमला होता रहा
Black Carbon दिखने में धुएं जैसा है, लेकिन इसका असर किसी धीमे जहर की तरह होता है। यह बर्फ पर जमकर उसकी reflectivity (चमक) को कम करता है, जिससे सूरज की गर्मी बर्फ में समा जाती है और Snow Melt तेजी से होता है। Report में NASA के 23 साल (2000-2023) के satellite data का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्ष बताते हैं कि 2000 से 2019 तक Black Carbon की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई, जिसके चलते Himalayan Glaciers लगातार सिकुड़ते गए। 2019 के बाद इसकी गति कुछ धीमी जरूर हुई है, लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका है।
भारत सहित नेपाल, भूटान और बांग्लादेश भी प्रभावित होंगे
विशेषज्ञों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में Black Carbon अधिक जमा होता है, वहाँ बर्फ की मोटाई सबसे तेजी से घट रही है। इससे नदियों के water levels पर असर पड़ रहा है, जिससे भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों में लगभग दो अरब लोगों की water security खतरे में पड़ सकती है।
Report की मुख्य लेखक, डॉ. पलक बलियान कहती हैं, “पूर्वी Himalayas में Black Carbon की मात्रा सबसे अधिक है, क्योंकि वह क्षेत्र घनी आबादी वाला है और वहाँ biomass burning की घटनाएँ आम हैं।”
अच्छी खबर यह है कि Black Carbon वातावरण में ज्यादा समय तक नहीं टिकता। अगर अभी इसकी मात्रा को कम किया जाए - जैसे कि चूल्हों में clean fuel का उपयोग, पराली जलाने पर रोक, और transport sector में emissions को नियंत्रित करना - तो कुछ ही सालों में सकारात्मक परिणाम दिख सकते हैं।
Climate Trends की डायरेक्टर आरती खोसला कहती हैं, “यह एक ऐसा मुद्दा है, जहाँ हम Climate Change और Air Pollution - दोनों को एक साथ target कर सकते हैं। इसमें सफलता जल्दी मिल सकती है।”
निष्कर्ष यह है कि Himalayan Glaciers अब उतने ठंडे नहीं रहे। अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो आने वाले वर्षों में water crisis और गंभीर होगा। इसका असर सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं रहेगा - मैदानी क्षेत्रों की जिंदगी भी Climate Change की चपेट में आएगी।