कोर्ट या अधिकारी के समक्ष साक्ष्य पेश नहीं करने वाले व्यक्ति के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी जानिए

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 388 एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 349 में बताया गया है कि न्यायालय किसी भी साक्षी को या किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में उत्तर देने या किसी भी प्रकार के दस्तावेज पेश करने के लिए बुलाता है तब व्यक्ति उत्तर देने या दस्तावेज पेश करने से इंकार नहीं कर सकता है अगर वह ऐसा करता है तो उसे वहीं विचारणीय न्यायालय सात दिनों के कारावास से दण्डित करेगा। 

लेकिन अगर कोई साक्षी या व्यक्ति किसी उचित कारण से उत्तर देने या दस्तावेज पेश करने में असमर्थ है तो उसे इसकी सूचना मजिस्ट्रेट को ठोस साक्ष्य के साथ देना होगाए परन्तु अगर कोई व्यक्ति वैध रूप से साक्ष्य देने के लिए या उत्तर देने के लिए जरूरी है और वह दस्तावेज या उत्तर नहीं देता है तो उसके खिलाफ एक नई धारा एवं कानून के अंतर्गत शिकायत दर्ज होगी जानिए।

भारतीय नागरिक संहिता, 2023 की धारा 210 एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 175 की परिभाषा 

जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के समक्ष या किसी न्यायालय में कोई दस्तावेज इसके अंतर्गत कोई कागजात, रिपोर्ट, आडियो, वीडियो, फोटो आदि पेश करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य है और वह पेश नहीं करता है या छुपा लेता है तब वह व्यक्ति BNS की धारा 210 एवं IPC की धारा 175 के अंतर्गत दोषी होगा।

नोट:- यहां कोई भी व्यक्ति के अंतर्गत "कोई सरकारी कर्मचारी या अधिकारी" भी हो सकता है जैसे कि किसी पुलिस अधिकारी को न्यायालय या अपने सीनियर अधिकारी को दस्तावेज पेश करने है लेकिन वह इन दस्तावेजों को पेश नहीं करता है या लोप कर देता है तब वह पुलिस अधिकारी भी इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।

आरोपी को अपने खिलाफ सबूत देने के लिए न्यायालय बाध्य नहीं कर सकता है जानिए :- 

राम रखा बनाम सत्पन्त मामले मे उड़ीसा हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी को उसके खिलाफ कोई दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख या उत्तर देने के लिए न्यायालय बाध्य नहीं कर सकता है क्योंकि ऐसा करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

Bharatiya Nyaya Sanhita Section 210 or Indian Penal Code Section 175 Provision of punishment

यह अपराध, आसंज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं अर्थात पुलिस थाने में इस अपराध के खिलाफ सीधी एफआईआर दर्ज नहीं होगी, इस अपराध के लिए कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष या उस न्यायालय में जहां उस अपराध का विचारण चल रहा है परिवाद (शिकायत) दर्ज हो सकती हैं। इस अपराध की सुनवाई कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा या उसी न्यायालय में जहा उस अपराध का विचारण चल रहा है की जाती ह। इस अपराध के लिए सजा दो भागों में दी जाती है 

1. राजस्व अधिकारी, पुलिस अधिकारी के समक्ष दस्तावेज न पेश करने पर एक माह का सादा कारावास या पांच सौ रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
2.  न्यायालय के समक्ष कोई दस्तावेज पेश न करने पर अधिकतम छ: माह कारावास या एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

नोट:- नए कानून भारतीय न्याय संहिता, 2023 में दण्ड जुर्माना पाँच सौ से बढ़ाकर 5000/- रुपये एवं एक हजार से बढ़ाकर 10000/- रुपये कर दिया गया है।

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