प्रति, श्रीमान मल्लिकार्जुन खड़गे जी राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस नई दिल्ली। महोदय, गहन विचार विमर्श और पार्टी द्वारा हाशिए पर धकेले जाने के बाद लगता है कि समय कठोर निर्णय लेने का है। 2019 में पार्टी ने मुझे भिंड दतिया लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया था। हारने के बाद कोई उम्मीदवार क्षेत्र में वापस लौट कर नही जाता, लेकिन पार्टी को मजबूत करने की लग्न थी तो खुद को पुरी तरह झोंक दिया। निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आने के बाद भी आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए, संघर्ष जारी रखा। प्रदेश के वरिष्ठ नेतृत्व ने कहा कि अगले लोकसभा की तैयारी करो तुम्हे फिर मौका देंगे।
इन पांच वर्षों में मध्यप्रदेश में उप चुनाव, विधानसभा के आम चुनाव हुए सभी में कहा कि तुम हमारे लोकसभा उम्मीदवार हो तुम्हें लोकसभा लड़ना है, मैंने कोई टिकट नही मांगा। पांच साल जब क्षेत्र में संघर्ष की बात थी तो कोई नही था, लेकिन जैसे ही वर्तमान लोकसभा चुनाव आए तो मेरा टिकट काट दिया गया। उसके बाद पार्टी ने संगठन में जिम्मेदारी देने की बात कही गई। जोकि आज दिनांक तक भी पूरी नहीं की गई। टिकट कटने के बाद से ही न तो प्रदेश संगठन के बड़े नेताओं ने कोई बात की और न प्रत्याशी ने, क्षेत्र के कार्यक्रमों में भी नही बुलाया जा रहा है।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस में नेताओ ने मेरी राजनैतिक हत्या की जिम्मेदारी ले रखी है और दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंक दिया है।
मेरा क्या कुसूर था. यही कि पार्टी के लिए दिन रात मेहनत की, ग्रुप बाजी करके कांग्रेस में ही कांग्रेस को नहीं निपटाया। कांग्रेस में जो भीतरघात करता है उसी को सबसे ज्यादा पूछा जाता है। जो मेरे चरित्र में नहीं है। पार्टी दलितों आदिवासियों, महिलाओं पिछड़ों के सम्मान और हक की बात करती है। लेकिन मेरे हक पर ही डांका डाल दिया।
इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि कांग्रेस की कथनी और करनी में कोई समानता नही है। दलित समाज केवल इस्तेमाल करने और फेंक देने के लिए है। महिलाओं की बात करे तो पूरे प्रदेश में केवल एक महिला को टिकट दिया है, ओबीसी की जातिगत जन की बात करने वाली पार्टी ने 29 सीटो में से केवल 5 सीट ओबीसी को दी है।
जब आप पार्टी के अंदर दलितों आदिवासियों, महिलाओं, ओबीसी वर्ग को हिस्सेदारी नही दे सकते तो किस मुँह से देश की जनता आप पर विश्वास करेगी। इतने साल पार्टी में काम करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि पार्टी की कोई नीति रीति नहीं है न ही इक्षाशक्ति। मैंने एक माह इंतजार किया लेकिन जहाँ मान सम्मान नही है उस जगह को छोड़ देना ही उचित है। अतः मैं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूँ। सधन्यवाद, भवदीय, देवाशीष जरारिया।
देवाशीष जरारिया - बसपा में शामिल
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