मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 27% ओबीसी आरक्षण मामले में हाईकोर्ट के रजिस्ट्री अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय के आदेश की अवमानना की याचिका प्रस्तुत करने वाले अभ्यर्थी पर ₹25000 का जुर्माना लगाया है। इसके साथ ही यह भी निर्देशित किया है कि जब तक जुर्माना की राशि जमा नहीं हो जाती तब तक याचिका पर सुनवाई नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट में 10 ट्रांसफर याचिकाए लंबित
जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली सैकड़ो याचिकाएं लंबित हैं। इसके कारण सरकारी नौकरियों में केवल 14% आरक्षण लागू है और शेष 13% ओबीसी आरक्षण के पद होल्ड किए जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के पहले हाईकोर्ट में मामलों की दैनिक सुनवाई शुरू हो गई थी। अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है कि चुनाव के दबाव के कारण सरकार के महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में दैनिक सुनवाई को रोकने के लिए, सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिकाए दाखिल की। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 10 ट्रांसफर याचिकाए लंबित है जो TP(c)1120/23 से लिंक है। परिणाम स्वरुप हाईकोर्ट में दैनिक सुनवाई बंद कर दी गई थी। मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार किया जा रहा था।
सुप्रीम कोर्ट के समानांतर हाईकोर्ट में भी सुनवाई चाहते हैं
हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण के प्रकरणों की आखिरी बार दिनांक 04/8/23 को सुनवाई हुई थी उस समय हाईकोर्ट को बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रकरणों की सुनवाई न किए जाने का कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया गया है। तथा हाईकोर्ट अपने रिट क्षेत्राधिकार के तहत आगामी सुनवाई नियमित कर सकती है। इस दलील से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने मामलों की फाइनल सुनवाई के लिए दिनांक 4 सितंबर 2023 की तारीख निर्धारित की थी लेकिन रजिस्ट्री द्वारा मामला सूचीबद्ध नहीं किया गया। तब ओबीसी अभ्यर्थी श्री बृजेश कुमार शहवाल ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल श्री रामकुमार चौबे, श्री संदीप कुमार शर्मा तथा श्री हेमंत कुमार जोशी के विरुद्ध अवमानना याचिका क्रमांक 5594/23 प्रस्तुत कर दी गई।
इस याचिका की प्रारंभिक सुनवाई दिनांक 15/12/23 को चीफ जस्टिस श्री रवि मालिमठ तथा श्री विशाल मिश्रा की खंडपीठ द्वारा की गई। दिनांक 12/01/24 विस्तृत आदेश पारित किया गया तथा 25 हजार रुपए का भारी भरकम जुर्माना लगाकर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया गया। इसके साथ यह भी निर्देशित किया गया कि जब तक जुर्माना की दासी जमा नहीं की जाएगी तब तक याचिकाओं को सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा।
निष्कर्ष :-
- प्रकरणों का निर्देशानुसार सूचीबद्ध नहीं हो पाना, न्यायालय के आदेश की अवमानना नहीं है।
- प्रकरण के सूचीबद्ध हो जाने के बाद यदि कोई अधिवक्ता न्यायालय में उपस्थित नहीं होता तो यह प्रक्रिया भी न्यायालय की अवमानना नहीं है।
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