Legal general knowledge and law study notes
बहुत सारे लोक सेवक (शासकीय अधिकारी, कर्मचारी अथवा शान द्वारा अधिकृत प्राधिकारी) कई बार झूठा प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति बीमार नहीं लेकिन अस्पताल में भर्ती बता देते हैं। किसी ने काम नहीं किया लेकिन एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट बना देते हैं। ज्यादातर लोग नहीं जानते कि ऐसे अधिकारियों अथवा कर्मचारियों के खिलाफ न केवल अपराधिक प्रखंड दर्ज करवाया जा सकता है बल्कि न्यायालय द्वारा उन्हें कठोर दंड भी दिया जाता है।भारतीय दंड संहिता ,1860 की धारा 197 की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार का मिथ्या (जाली, झूठा) प्रमाण-पत्र जारी करता है या झूठे प्रमाण-पत्र पर हस्ताक्षर करता है। अथवा अवैध प्रमाण पत्र को कानूनी तौर पर वैध करता है। तब ऐसा करने वाला अधिकारी अथवा प्राधिकारी आईपीसी की धारा 197 के तहत अपराधी घोषित किया जाता है और न्यायालय द्वारा दंडित किया जाता है।
भारतीय दण्ड संहिता , 1860 की धारा 197 दण्ड का प्रावधान
इस धारा के अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय हैं, इस अपराध की सुनवाई उसी न्यायालय में होगी जिस न्यायालय में व्यक्ति द्वारा झूठे प्रमाण-पत्र के आरोप का विचारण चल रहा हैं अर्थात विचारणीय न्यायालय, सजा - इस अपराध के लिए वहीं सजा होगी जो सजा मुख्य आरोपी को हो रही है अर्थात किसी व्यक्ति ने लोक सेवक से धोखाधड़ी करने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया था उस प्रमाण पत्र बनाने वाले व्यक्ति को भी धोखाधड़ी के अपराध से दण्डित किया जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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