INDORE NEWS- डॉ. नीना अग्रवाल दोषी घोषित, उपभोक्ता फोरम ने जुर्माना लगाया

Bhopal Samachar
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Dr Neena Agrawal Indore को Best Lady Gynaecologist In Indore कहा जाता है परंतु उपभोक्ता फॉर्म ने उन्हें प्रसव प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही का दोषी घोषित किया है। कहा है कि डॉक्टर नीना अग्रवाल लापरवाही के कारण एक बच्चा पिछले 15 साल से जिंदा लाश की तरह बिस्तर पर पड़ा हुआ है। उपभोक्ता फोरम ने डॉ नीना अग्रवाल और इंश्योरेंस कंपनी पर 45 लाख रुपए से अधिक का मुआवजा, पीड़ित परिवार को अदा करने के आदेश दिए हैं। इस मामले में डॉक्टर अग्रवाल की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। 

डॉ नीना अग्रवाल ने शुरू से इलाज किया था

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के अधिवक्ता श्री शांतनु मित्तल एवं श्री अंकुर श्रीवास्तव ने बताया कि, मामला 2006 का है। पीड़ित महिला आकृति बंसल प्रेंग्नेट थीं। CHL Apollo Hospital में उनका ट्रीटमेंट शुरू हुआ। ट्रीटमेंट डॉ. नीना अग्रवाल ने किया। इसके बाद डॉक्टर के कहने पर गर्भवती को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। आकृति 12 से 13 घंटे तक लेबर पैन में रही, तब स्पेशलिस्ट डॉक्टर वहां नहीं थे। आखिर में लेबर रूम में उनको शिफ्ट कर दिया। तब कहा था कि नॉर्मल डिलीवरी की संभावना है।

डॉ नीना अग्रवाल ने फोन पर डिलीवरी करवा दी

स्पेशलिस्ट डॉक्टर लेबर रूम में भी नहीं थे। डॉक्टर ने फोन पर स्टाफ को निर्देश दिए कि डिलीवरी कैसे कराई जानी चाहिए। जब डिलीवरी के दौरान बच्चा फंस गया तो वेंटोस (वेक्यूम के जरिए बच्चे को बाहर खींचा जाता है) और फॉरसेप (चिमटे जैसा होता है, जिससे बच्चे का सिर पकड़कर खींचा जाता है) का इस्तेमाल किया गया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट और नेशनल फोरम का भी ये कहना है कि अगर इस तरह का प्रोसेस किया जाता है तो मरीज या मरीज के साथ जो भी व्यक्ति है उनकी लिखित अनुमति होना जरूरी है। इसके बावजूद बिना अनुमति यह प्रोसेस किया गया।

लेबर रूम में ऑक्सीजन सिलेंडर भी नहीं था

जब बच्चा बाहर निकला तो वो रोया नहीं। लेबर रूम में ऑक्सीजन सिलेंडर भी नहीं था। नर्स भागी और ICU से ऑक्सीजन मास्क और सिलेंडर लाई। ऑक्सीजन दिया, लेकिन इस प्रक्रिया में 3 से 5 मिनट का समय लग गया। यह किसी की जिंदगी बचाने के लिए मेडिकल दुनिया में बहुत बड़ा टाइम पीरियड माना गया है। 

प्रसव प्रक्रिया में लापरवाही के कारण बच्चा सेरेब्रल पॉल्सी नाम की बीमारी से पीड़ित हो गया

इस लापरवाही का नतीजा ये हुआ कि इतने समय तक बच्चे के दिमाग में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाई। फॉरसेप (चिमटे) से बच्चे को खींचने के कारण उसके सिर पर खून का थक्का या झिल्ली जम गई थी। ब्रेन तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचने से नवजात को जन्म से ही सेरेब्रल पॉल्सी नाम की बीमारी हो गई। ये बीमारी लाइलाज है। इसे सिर्फ कंट्रोल किया जा सकता है, ठीक नहीं किया जा सकता। 

2008 में केस लगाया था 2023 में फैसला आया

2008 तक डॉक्टर्स कहते रहे कि बच्चा ठीक हो जाएगा। जब बच्चे के माता-पिता को लगा कि अब ठीक होने की संभावना नहीं है, तो उन्होंने अस्पताल के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में केस कर दिया। 2023 में प्रकरण में उपभोक्ता फोरम का फैसला आया। मां और बच्चे के प्रति न्याय करते हुए उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष बीके पालोदा ने तत्कालीन सीएचएल हॉस्पिटल प्रबंधन, डॉ. नीना अग्रवाल और बीमा कंपनी को 45 लाख से ज्यादा का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। ब्याज सहित मुआवजा रकम चुकाना होगी।' 

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