LAW NOTES- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39-क, भारत की न्याय प्रतिष्ठा के लिए कितना महत्वपूर्ण है, पढ़िए

Article 39A- Directive Principles of State Policy

भारत देश में समाज का एक बहुत बड़ा तबका निर्धन और गरीब है तथा अपनी निर्धनता के कारण न्याय से वंचित रहता है। यदि न्याय एवं न्यायालयों के प्रति आम आदमी की आस्था कायम रखना है तो सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए समान न्याय के सिद्धांत की नीति राज्य को लागू करना होगा जानिए।

भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 39(क) की परिभाषा

भारतीय संविधान के 42 वे संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया अनुच्छेद 39(क) राज्य को यह निर्देश देता हैं कि राज्य विधिक व्यवस्था में इस प्रकार काम करे कि सभी नागरिकों को आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण न्याय से वंचित न रखा जाए एवं विधि (क़ानून) बनाकर निर्धन व्यक्तियों को निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करे।

निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करना मूल अधिकार भी है, जानिए

राजू उर्फ रमाकांत बनाम स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश - उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि-
1. निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करना व्यक्ति का मूल अधिकार है।
2. निःशुल्क विधिक सहायता विचारण एवं अपीलों दोनों स्तरों पर उपलब्ध होगी।
3. न्यायालय द्वारा इस बात का समाधान कर लिया जाना चाहिए कि व्यक्ति निःशुल्क विधिक सहायता के लिए पात्र हैं या नहीं।

Article 39A: Equal justice and free legal aid

नोट:- सुखदास बनाम अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र - मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि दाण्डिक मामलों में आरोपी को भी निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।

"कुल मिलाकर कहे तो अनुच्छेद 39(क) का नीति निदेशक तत्व निशुल्क विधिक सहायता आज भारतीयों का एक मौलिक अधिकार बन गया है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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