भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के भाग 5 के अध्याय 01 के अनुच्छेद 76 में भारत का एक महान्यायवादी होगा और यह एक संवैधानिक पद होगा। जब भारत सरकार कोई अधिनियम या कोई नियम, उपनियम ,विधि,बनाती है तब उनको एक विधि-विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है इसलिए वे एक महान्यायवादी की नियुक्ति करती है एवं इसी महान्यावादी को भारत का प्रथम विधि अधिकारी एवं भारत सरकार का कानूनी सलाहकार कहा जाता है।
महान्यावादी की नियुक्ति, योग्यता, त्यागपत्र और कार्यकाल जानिए:-
भारत के महान्यावादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है एवं इनको अपना त्यागपत्र भी राष्ट्रपति को देना होगा ओर इनका कार्यकाल भी राष्ट्रपति की इच्छा के अनुसार होता है अर्थात इनका कार्यकाल की कोई निश्चित सीमा अवधि नहीं होती है।
योग्यता:- महान्यावादी के पद के लिए सर्वप्रथम भारत का नागिरिक होना आवश्यक है, इसके बाद वह उस व्यक्ति 5 वर्षों तक एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय में न्यायधीश रहा हो, या किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्षा तक वकालत की हो।
भारत के महान्यायवादी की शक्तियां एवं कार्य
• भारत का महान्यावादी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है एवं सरकार का पक्ष रख सकता है।
• भारत का महान्यावादी भारत के किसी भी न्यायालय में सरकार की और से भाग ले सकता है।
• यह भारत सरकार का कानूनी सलाहकार होता है जब किसी भी विषय पर विधि बनाती है या कोई अधिनियम बनाता है तो सरकार को सलाह देता है एवं सरकार का पक्ष रखता है।
• भारत का महान्यावादी संसद की किसी भी समिति में भाग ले सकता है।
साधारण शब्दों में कहें तो भारत सरकार अर्थात, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद या संसद में कोई विधि निर्माण होता है तो सरकार महान्यावादी से ही विधि जानकारी लेगे।
नोट:- महान्यायवादी का पद भारत का सांसद नहीं होता है। इसलिए उसे संसद में वोट करने का अधिकार नहीं होता। यह अपनी सहयोग के लिए एक सलिसिटर जनरल रख सकता है अर्थात कानूनी सहायता के लिए अपना सहायक रख सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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