ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसका नाम राज्य विधिज्ञ परिषद (नामावली) में दर्ज है वह समस्त राज्यों के न्यायालयों में (उच्चतम न्यायालय भी),कोई भी अर्ध न्यायिक संस्था (प्रशासनिक विभाग) या व्यक्ति जो साक्ष्य देने के लिए वैध हो, कोई भी प्राधिकारी जिसके समक्ष लागू विधि के अनुसार वकील को पूछने का अधिकार हो उनके समक्ष वकालत करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है। लेकिन सवाल यह है की क्या अधिवक्ता को विधिक व्यवसाय करने का अधिकार मौलिक अधिकार भी होता है या मात्र संवैधानिक ही है, जानिए महत्वपूर्ण जजमेंट।
जमशेद अंसारी बनाम इलाहाबाद उच्च न्यायालय (निर्णय वर्ष 2016):-
उक्त मामले में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि विधि व्यवसाय करने का अधिकार जो अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 30 में संवैधानिक अधिकार होने के साथ वकीलों का भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) (छ) के अंतर्गत मौलिक अधिकार भी है एवं अधिवक्ताओं को किसी भी न्यायालय, अधिकरणों (प्रशासनिक विभागों), प्राधिकरणों और व्यक्तियों के समक्ष वकालत करने से नहीं रोका जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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