ग्वालियर। दुष्कर्म के एक मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर एकल पीठ ने रेप पीड़ित लड़की, उसके पिता और उसके भाई को 6 माह कारावास की सजा सुनाई। आरोप है कि तीनों ने मिलकर भ्रूण के जैविक पिता की पहचान छिपाकर अजन्मे बच्चे की हत्या की। पीड़िता व उसके पिता ने मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रगनेंग्सी एक्ट 1971 के खिलाफ जाकर कार्य किया।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार घटना का विवरण
दतिया के सिविल लाइन थाने में वर्ष 2021 में एक युवती ने खुद को नाबालिग बताते हुए सोनू परिहार के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था। पुलिस ने उसे आठ फरवरी 2021 को गिरफ्तार कर लिया, तभी से वह जेल में बंद है। युवती व उसके पिता के जिला न्यायालय में बयान दर्ज होने के बाद सोनू ने कोर्ट में जमानत याचिका दायर की। इसमें बताया कि युवती नाबालिग नहीं है और उसने आरोपों की पुष्टि भी नहीं की है।
हाईकोर्ट में झूठ बोलकर भ्रूण हत्या करवा दी
सोनू की जमानत याचिका दायर होने से पहले युवती व उसके पिता की ओर से गर्भपात की अनुमति के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने उसे नाबालिग मानते हुए उसे गर्भपात की अनुमति दे दी। जब सोनू ने जमानत याचिका में युवती और उसके पिता का झूठ सामने आने पर यह कहते हुए अवमानना का केस दर्ज किया कि दोनों ने झूठ बोलकर एक अजन्मे बच्चे की हत्या करा दी है। दुख भी व्यक्त किया था। इस पूरे मामले में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। भ्रूण का डीएनए किया गया तो सोनू भ्रूण का जैविक पिता नहीं निकला।
जेल में निर्दोष बंद था, जिसने संबंध बनाए वह तो घर में ही था
कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने भ्रूण के जैविक पिता की तलाश की। पुलिस ने इस मामले से जुड़े लोगों के बयान दर्ज किए। दुष्कर्म पीड़िता की सहेली ने बताया कि उसने पीड़िता को उसके चचेरे भाई के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा था। पुलिस ने चचेरे भाई के खून के नमूने लिए। साथ ही एक और संदिग्ध परिचित का डीएन लिया गया। पुलिस ने दो डीएनए सैंपल जांच के लिए भेजे थे। इसमें चचेरे भाई का डीएनए व भ्रूण का डीएनए का मिलान हुआ। भ्रूण का उसका चचेरा भाई ही जैविक पिता निकला, जबकि आरोप सोनू परिहार पर लगा दिया।
दुष्कर्म के मामले में बयान बदलने वालों को हाई कोर्ट से सजा
दतिया पुलिस ने दुष्कर्म पीड़िता, उसके पिता, भाई को बुधवार को हाई कोर्ट में पेश किया। पुलिस तीनों को गिरफ्तारी वारंट पर लेकर आई थी। जब कोर्ट के सामने इन्हें पेश किया गया तो तीनों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया। तीनों के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि परिस्थितियों के चलते उन्हें अलग-अलग कदम उठाने पड़े। उनके प्रति उदार तरीका अपनाया जाए।
कोर्ट ने कहा कि तीनों अदालत में अपने आरोपों से मुकर गए। उसके बाद दोबारा मौका दिया गया, लेकिन पिता, भाई व पीड़िता ने गंभीरता नहीं दिखाई और कोर्ट में उपस्थित ही नहीं हुए। जब आए तब अपने वक्तव्य बदलते रहे। ऐसे लोगों के प्रति उदार तरीका नहीं अपनाया जा सकता है। इन्होंने कोर्ट की अवमानना की है, एक्ट 1971 का दुरुपयोग भी किया गया है। कोर्ट ने तीनों छह महीने की सजा सुनाते हुए जेल भेजने का आदेश दिया। प्रिसिंपल रजिस्ट्रार को निर्देशित किया कि पूरी कार्रवाई कर उन्हें जेल भेजा जाए। शासन की ओर से पैरवी अधिवक्ता सीपी सिंह ने की।